अब्दुल हमीद
चित्र:Disamb2.jpg अब्दुल हमीद | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अब्दुल हमीद (बहुविकल्पी) |
अब्दुल हमीद
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पूरा नाम | वीर अब्दुल हमीद |
जन्म | 1 जुलाई, 1933 |
जन्म भूमि | धरमपुर गांव, ग़ाज़ीपुर ज़िला, उत्तर प्रदेश |
स्थान | तरनतारन साहब ज़िला, पंजाब |
अभिभावक | पिता- मोहम्मद उस्मान |
सेना | भारतीय थल सेना |
रैंक | कंपनी क्वाटरमास्टर हवलदार |
यूनिट | 4 ग्रेनेडियर |
सेवा काल | 1954–1965 |
युद्ध | भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965) |
सम्मान | महावीर चक्र, परमवीर चक्र |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 28 जनवरी 2000 को भारतीय डाक विभाग द्वारा वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया गया। इस डाक टिकट पर रिकाईललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हामिद का रेखा चित्र उदाहरण की तरह बना हुआ है। |
वीर अब्दुल हमीद (अंग्रेज़ी: Abdul Hamid, जन्म: 1 जुलाई, 1933, ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश; शहादत: 10 सितम्बर, 1965) भारतीय सेना के प्रसिद्ध सिपाही थे, जिन्होंने अपने सेवा काल में सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल से सम्मान प्राप्त किया था। उन्हें 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए महावीर चक्र और परमवीर चक्र प्राप्त हुआ था।
जीवन परिचय
अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश में ग़ाज़ीपुर ज़िले के धरमपुर गांव के एक मुस्लिम दर्जी परिवार में 1 जुलाई, 1933 को हुआ। आजीविका के लिए कपड़ों की सिलाई का काम करने वाले मोहम्मद उस्मान के पुत्र अब्दुल हमीद की रुचि अपने इस पारिवारिक कार्य में बिलकुल नहीं थी। कुश्ती के दाँव पेंचों में रुचि रखने वाले पिता का प्रभाव अब्दुल हमीद पर भी था। लाठी चलाना, कुश्ती का अभ्यास करना, पानी से उफनती नदी को पार करना, गुलेल से निशाना लगाना एक ग्रामीण बालक के रूप में इन सभी क्षेत्रों में हमीद पारंगत थे। उनका एक बड़ा गुण था, सब की यथासंभव सहायता करने को तत्पर रहना। किसी अन्याय को सहन करना उनको नहीं भाता था। यही कारण है कि एक बार जब किसी ग़रीब किसान की फसल बलपूर्वक काटकर ले जाने के लिए ज़मींदार के 50 के लगभग गुंडे उस किसान के खेत पर पहुंचे तो हमीद ने उनको ललकारा और उनको बिना अपना मन्तव्य पूरा किये ही लौटना पड़ा। इसी प्रकार बाढ़ प्रभावित गाँव की नदी में डूबती दो युवतियों के प्राण बचाकर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया।[1]
सेना में भर्ती
21 वर्ष के अब्दुल हमीद जीवन यापन के लिए रेलवे में भर्ती होने के लिए गये, परन्तु उनके संस्कार उन्हें प्रेरित कर रहे थे, सेना में भर्ती होकर देश सेवा के लिए। अतः उन्होंने एक सैनिक के रूप में 1954 में अपना कार्य प्रारम्भ किया। हमीद 27 दिसंबर, 1954 को ग्रेनेडियर्स इन्फैन्ट्री रेजिमेंट में शामिल किये गये थे। जम्मू काश्मीर में तैनात अब्दुल हमीद पाकिस्तान से आने वाले घुसपैठियों की खबर तो लेते हुए मजा चखाते रहते थे, ऐसे ही एक आतंकवादी डाकू इनायत अली को जब उन्होंने पकड़वाया तो प्रोत्साहन स्वरूप उनको प्रोन्नति देकर सेना में लांस नायक बना दिया गया। 1962 में जब चीन ने भारत की पीठ में छुरा भोंका तो अब्दुल हमीद उस समय नेफा में तैनात थे, उनको अपने अरमान पूरे करने का विशेष अवसर नहीं मिला। उनका अरमान था कोई विशेष पराक्रम दिखाते हुए शत्रु को मार गिराना।
भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965)
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अधिक समय नहीं बीता और 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। अब्दुल हमीद को पुनः सुअवसर प्राप्त हुआ अपनी जन्मभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाने का। मोर्चे पर जाने से पूर्व, उनके अपने भाई को कहे शब्द ‘पल्टन में उनकी बहुत इज्जत होती है जिन के पास कोई चक्र होता है, देखना झुन्नन हम जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र ज़रूर लेकर लौटेंगे।” उनके स्वप्नों को अभिव्यक्त करते हैं।
उनकी भविष्यवाणी पूर्ण हुई और 10 सितम्बर 1965 को जब पाकिस्तान की सेना अपने कुत्सित इरादों के साथ अमृतसर को घेर कर उसको अपने नियंत्रण में लेने को तैयार थी, अब्दुल हमीद ने पाक सेना को अपने अभेद्य पैटन टैंकों के साथ आगे बढ़ते देखा। अपने प्राणों की चिंता न करते हुए अब्दुल हमीद ने अपनी तोप युक्त जीप को टीले के समीप खड़ा किया और गोले बरसाते हुए शत्रु के तीन टैंक ध्वस्त कर डाले। पाक अधिकारी क्रोध और आश्चर्य में थे, उनके मिशन में बाधक अब्दुल हमीद पर उनकी नज़र पड़ी और उनको घेर कर गोलों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। इससे पूर्व कि वो उनका एक और टैंक समाप्त कर पाते, दुश्मन की गोलाबारी से वो शहादत हो गये। अब्दुल हमीद का शौर्य और बलिदान ने सेना के शेष जवानों में जोश का संचार किया और दुश्मन को खदेड दिया गया।
शहादत पर नमन
[[चित्र:Abdul-Hameed-PVC.jpg|thumb|वीर अब्दुल हमीद के सम्मान में जारी डाक टिकट]] 32 वर्ष की आयु में ही अपने प्राणों को देश पर न्यौछावर करने वाले इस वीर को उसकी शहादत पर नमन किया जाता है। उन्होंने अपनी अद्भुत वीरता से पाकिस्तानी शत्रुओं के खतरनाक, कुत्सित इरादों को तो ध्वस्त करते हुए अपना नाम इतिहास में सदा के लिए स्वर्णाक्षरों में अंकित कराया साथ ही एक सन्देश भी दिया कि केवल साधनों के बलबूते युद्ध नहीं जीता जाता। अपने भाई से किया वायदा उन्होंने पूर्ण किया और मरणोपरांत उनको सबसे बड़े सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो उनकी पत्नी श्रीमती रसूली बीबी ने प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त भी उनको समर सेवा पदक, सैन्य सेवा पदक और रक्षा पदक प्रदान किये गए।
सम्मान और पुरस्कार
28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग द्वारा वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया गया। इस डाक टिकट पर रिकाईललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हामिद का रेखा चित्र उदाहरण की तरह बना हुआ है। चौथी ग्रेनेडियर्स ने अब्दुल हमीद की स्मृति में उनकी क़ब्र पर एक समाधि का निर्माण किया है। हर साल उनकी शहादत के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है। उत्तर निवासी उनके नाम से गांव में एक डिस्पेंसरी, पुस्तकालय और स्कूल चलाते हैं। सैन्य डाक सेवा ने 10 सितंबर, 1979 को उनके सम्मान में एक विशेष आवरण जारी किया है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अब्दुल हमीद के बलिदान दिवस (हिंदी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 27 जून, 2013।
- ↑ पैटन टैंकों को उड़ाने वाले अब्दुल हामिद... (हिंदी) युवा देश। अभिगमन तिथि: 27 जून, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
- वीर अब्दुल हमीद की शहादत को आईये सलाम करे
- शहादत अब्दुल हमीद की कहानी अब पर्दे पर
- Paramveer Chakra Vijeta Veer Abdul Hameed (यू-ट्यूब लिंक)
- PARAMVEER ABDUL HAMEED SHAHEED DIWAS (यू-ट्यूब लिंक)
- SHAHEED ABDUL HAMEED JAYANTI (यू-ट्यूब लिंक)
- वीर अब्दुल हमीद का पाठ हटाना दुर्भाग्यपूर्ण : रसूलन बीबी