भारतीय थल सेना: Difference between revisions

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thumb|250px|भारतीय थलसेना का ध्वज भारतीय थल सेना के प्रशासनिक एवं सामरिक कार्य संचालन का नियंत्रण थल सेनाध्यक्ष करता है। सेना को अधिकतर थल सेना ही समझा जाता है, यह ठीक भी है क्योंकि रक्षा-पक्ति में थल सेना का ही प्रथम तथा प्रधान स्थान है। इस समय लगभग 13 लाख सैनिक-असैनिक थल सेना में भिन्न-भिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि 1948 में सेना में लगभग 2,00,000 सैनिक थे। थल सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में है।

थल सेनाध्यक्ष की सहायता के लिए थलसेना के वाइस चीफ, तथा चीफ स्टाफ अफसर होते हैं। इनमें डिप्टी चीफ आफ आर्मी स्टाफ, एडजुटेंट-जनरल, क्वार्टर मास्टर-जनरल, मास्टर-जनरल आफ़ आर्डनेन्स और सेना सचिव तथा इंजीनियर-इन-चीफ सम्मिलित हैं। थल सेना 6 कमानों में संगठित है- (1) पश्चिमी कमान (मुख्यालय: शिमला) (2) पूर्वी कमान (कोलकाता) (3) उत्तरी कमान (उधमपुर) (4) दक्षिणी कमान (पुणे) (5) मध्य कमान (लखनऊ) एवं (6) दक्षिणी-पश्चिमी कमान (जयपुर)। दक्षिण-पश्चिम कमान का गठन 15 अप्रैल, 2005 को किया गया। इसका मुख्यालय जयपुर में स्थापित किया गया है। यह थल सेना की सबसे बड़ी कमान है।

इतिहास

भारतीय थल सेना के उद्भव का भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत से क़रीबी संबंध है। प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिक वीरता से लड़े और इस युद्ध में ब्रिटिश सफलता में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया। इसके बावजूद अंग्रेज़ों ने भारतीय सेना को भारतीय नेतृत्व उपलब्ध कराने का कड़ा प्रतिरोध किय। लेकिन 1,10,000 भारतीय जवानों की सेना द्वारा युद्ध में 12 विक्टोरिया क्रॉस जीते जाने से अंग्रेज़ों पर इस बात के लिए दबाव बढ़ रहा था कि भारतीय सेना के अधिकारी कैडर में भारतीयों को भर्ती किया जाए। पहला प्रमुख बदलाव लगभग 1919-1920 में भारतीय राजनीतिक नेतृत्व द्वारा सेना के भारतीयकरण की सतत मांग की प्रतिक्रिया के तौर पर आया। परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड के सैंडहर्स्ट स्थित रॉयल मिलिट्री अकैडमी में उपयुक्त भारतीयों के लिए 10 पद आरक्षित किए गए। लगातार बढ़ते राजनीतिक दबाव ने ब्रिटिश सत्ता को 1 अक्तूबर 1932 को भारतीय सेना के भावी अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए देहरादून में इंडियन मिलिट्री अकैडमी (आई. एम. ए) की स्थापना करने पर मजबूर किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बहुत से भारतीय अधिकारी और सिपाही मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़े, इसमें भारतीय सेना की टुकड़ियों को बेहतरीन लड़ाकू क्षमता के प्रदर्शन के लिए पहचान मिली। इस दौरान भारतीय सेना के अधिकारियों और सिपाहियों को दिए गए 31 विक्टोरिया क्रॉस में से 28 भारतीयों को मिले।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद थल सेना, नौसेना और वायु सेना में बहुत से विद्रोह हुए। इससे सैन्य एवं आर्थिक रूप से थक चुके ब्रिटेन को विश्वास हो गया कि भारत पर अपने औपनिवेशिक शासन को क़ायम रखने के लिए वह भारतीय सेना पर निर्भर नहीं रह सकता। अंग्रेज़ों द्वारा उपमहाद्वीप को छोड़ने के निर्णय में यह अनुभूति एक महत्त्वपूर्ण कारक रही।

स्वंतत्र भारत में थल सेना की भूमिका

15 अगस्त 1947 में भारत के आज़ाद होने के बाद से थल सेना ने देश के मामलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शांतिकाल के दौरान उसने नागरिक शासन की सहायता की है और पाकिस्तानचीन के साथ चार प्रमुख युद्ध भी लड़े हैं। देश के भीतर उपद्रवों से भी सेना को निपटना पड़ता है।

भारत की आज़ादी के समय ही भारतीय थल सेना को शुरुआती चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 15 अगस्त 1947 को देश के भारत और पाकिस्तान में बंट जाने के कारण भारतीय थल सेना का भी विभाजन हुआ। चल व अचल संपत्ति और साथ ही जनसंख्या का भी दोनों देशों के बीच बंटवारा हुआ। विभाजन अभूतपूर्व हतयाकांडों और लाखों शरणार्थियों के आवागमन का प्रत्यक्षदर्शी रहा। इससे नागरिक प्रशासन चरमरा गया। ऐसे समय में सेना ने स्थिति को नियंत्रित किया और दो महीने में ही दंगे से क्षत-विपक्ष हुए पंजाब में सामान्य स्थिति बहाल की।

भारत का मिसाइल भंडार
क्रम नाम स्थिति रेंज
(किलोमिटर)
पैलोड
(किलोमिटर)
मूल विशेष
1 पृथ्वी 150 सक्रिय 150 1000 भारत-रूस रशियन एसए-2 से
2 पृथ्वी 250 सक्रिय 250 500-750 भारत-रूस रशियन एसए-2 से
3 धनुष विकास/परीक्षण 250 1000 भारत पृथ्वी से
4 सागरिका विकास/परीक्षण 250-350 500 भारत पृथ्वी से
5 पृथ्वी 350 विकास 600-750 500-1000 भारत-रूस रसियन एसए-2 से
6 अग्नि-1 सक्रिय 700-800 1000 भारत-फ्रांस-अमेरिका आख़िरी परीक्षण-09.01.2003
7 अग्नि-2 सक्रिय 1500-2000 1000 भारत-फ्रांस-अमेरिका आख़िरी परीक्षण-29.08.2004
8 अग्नि-3 विकास 3000 1500 भारत परीक्षण सफल-12.04.2007
9 शौर्य विकास/परीक्षण 600 भारत प्रथम परीक्षण- 12.11.2008

रियासतों का एकीकरण

विभाजन के बाद 575 रियासतों को भारतीय संघ में संगठित किया जाना था। जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर की रियासतों के अलावा बाक़ी सभी ने भारतीय संघ में विलय को स्वीकार कर लिया था। जूनागढ़ और हैदराबाद को भारतीय संघ में मिलाने के लिए तैयार करने के लिए सेना को तैनात किया गया। अक्तूबर 1947 में ऑपरेशन गुलमर्ग द्वारा पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने की कोशिश की थी। महाराजा हरि सिंह द्वारा भारत के साथ विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने और भारतीय थल सेना द्वारा घुसपैठियों के साथ संघर्ष से यह कोशिश नाकाम कर दी गई। कई महीनों तक संघर्ष करने के बाद आख़िरकार 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम लागू किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की निगरानी में छंब से लद्दाख तक एक युद्ध विराम रेखा (सीज़ फ़ायर लाइन, सी.एफ. एल.) खींची गई। इसे बाद में नियंत्रण रेखा का नाम दिया गया। हालांकि तब तक कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के क़ब्ज़े में चला गया था।

प्रमुख कार्यवाहियाँ

यद्यपि ब्रिटिश व फ़्राँसीसी अपने भारतीय उपनिवेशों को छोड़कर जा चुके थे, फिर भी भारत की आज़ादी के 14 साल बाद भी पुर्तग़ालियों ने गोवा, दमन, दीव, अंजीदीव द्वीपों और दादरा व नगर हवेली के उपनिवेशों पर अपना शासन क़ायम रखा था। इन उपनिवेशों को भारत को स्थानांतरिक किए जाने में सेना के हस्तक्षेप की आवश्यकता थी। थल सेना को अक्तूबर-नवंबर 1962 में चीनी आक्रमण, चीन के साथ नाटू ला में टकराव, 1965 में पाकिस्तान के साथ 22 दिवसीय टकराव और 1971 में बांग्लादेश युद्ध और 1999 में कारगिल टकराव से जूझना पड़ा।

आंतरिक उपद्रव

बाहरी आक्रमणों से निपटने के अलावा थल सेना को देश के भीतर व्याप्त अशांति को नियंत्रित करना पड़ा। 14 अगस्त 1947 को ए. ज़ेड. फ़ीजो ने नागालैंड को स्वतंत्र घोषित कर दिया। 22 मार्च, 1956 को विद्रोहियों ने नागा केंद्रीय सरकार बना ली। 1966 के आरंभ में मिज़ों लोगों ने नागाओं का अनुसरण किया और अपनी सरकार बना ली। हथियार जुटाने के लिए मिज़ों नेशनल आर्मी ने राज्य पुलिस के बहुत से शस्त्रागारों पर धावा बोला। इस विद्रोह को दबाने के लिए सेना को भेजा गया। उसने उपद्रव विरोधी दीर्घ कार्यवाही शुरू की, जो एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर के साथ 1980 के दशक में समाप्त हुई।

पंजाब के खालिस्तान आंदोलन की परिणति ऑपरेशन ब्लू स्टार में हुई, जिसे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छुपे आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए शुरू किया गया।

नवंबर 1990 में यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रंट ऑफ़ असम (उल्फा) द्वारा पैदा की गई समस्याओं से निपटने के लिए सेना को बुलाया गया। अभी भी सेना पूर्वोत्तर में उपद्रवकारी गतिविधियों से जूझने में लगी है।

संगठन

thumb|250px|भारतीय थलसेना 1947 से अब तक के वर्षों ने भारतीय थल सेना को आगे बढ़ते हुए एक कुशल युद्ध व्यवस्था में विकसित होते देखा है। सैन्य कर्मियों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ सेना ने प्रक्षेपास्त्र समेत स्वयं को आधुनिक वैज्ञानिक हथियारों से सुसज्जित किया है। विश्व की चौथी सबसे बड़ी भारतीय थल सेना में नियमित सैन्य कर्मियों के अलावा आरक्षित सेना, क्षेत्रीय सेना और नेशनल कैडेट कॉर्प्स है।

भारतीय थल सेना चीफ़ आर्मी स्टाफ़ (सी.ओ.ए.एस) के अंतर्गत कार्य करती है, जो इसकी कमान, नियंत्रण और प्रशासन के लिए उत्तरदायी है। स्वतंत्र भारत के पहले थल सेना प्रमुख सर रॉबर्ट लॉकहार्ट थे। उस समय सेना प्रमुख को कमांडर-इन-चीफ़ कहा जाता था। जनरल के.एम. करिअप्पा 15 जनवरी 1949 को कमांडर-इन-चीफ़ बने और इस प्रकार वह इस पद पर पहुँचने वाले पहले भारतीय थे। 1 अप्रॅल 1955 से सेना प्रमुख को थल सेना अध्यक्ष (चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़, सी.ओ.ए.एस) नाम से जाना जाने लगा। जनरल महाराज राजेंद्र सिंह जी प्रथम थल सेनाध्यक्ष थे। 1 जनवरी 1973 को सैम होरमुसजी फ़्रमजी जमशेदजी मानेकशॉ भारत के पहले फ़ील्ड मार्शल बने।

कुशल प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए थल सेना को पाँच कमानों में बाँटा गया है। इसके पश्चिमी कमान, जिसका मुख्यालय चंडी मंदिर में है, पूर्वी कमान, जिसका मुख्यालय कोलकाता भूतपूर्व (कलकत्ता) में है, लखनऊ में केंद्रीय कमान, ऊधमपुर में उत्तरी कमान और दक्षिणी कमान, जिसका कार्यालय पुणे में शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक का प्रमुख एक लेफ़्टिनेंट जनरल होता है, जो थल सेना के उपाध्यक्ष के समकक्ष होता है। प्रत्येक कमान को कॉर्प्स, डिविज़न, ब्रिगेड, बटालियन, कंपनी, पलटन और विभाग में उपविभाजित किया जाता है। शस्त्रागार, पैदल सेना तोपख़ाना डिविज़न थल सेना के लड़ाकू अंग हैं। सिग्नल कॉर्प्स और इंजीनियर्स सेना के सहायक अंग हैं। थल सेना प्रशिक्षण कमान का मुख्यालय शिमला में है। कॉम्बैट कॉलेज इंदौर के पास मउ (एम.एच.ओ.डब्ल्यू., यानी मिलिट्री हेडक्वार्टर्स ऑफ़, वॉर) में है।

शांति प्रयास

अपनी विदेश नीति के अनुरूप भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति बहाल करने के विभिन्न अभियानों में भाग लिया है। पहली बार नवंबर 1950 और 1953 में भारत ने कोरिया में संयुक्त राष्ट्र संघ के न्यूट्रल नेशन्स रिपार्टिएशन कमीशन (एन.एन.आर.सी.) में भाग लिया। उसने कोरिया में युद्धबंदियों के प्रत्यावर्तन के लिए अपनी टुकडियाँ कोरिया भेजीं। नवंबर 1998 में भारतीय थल सेना ने लेबनान में संयुक्त राष्ट्र की अतंरिम सेना में अपनी पैदल सेना की एक बटालियन भेजी। भारत आज भी इस सेना का हिस्सा बना हुआ है। वैश्विक समुदाय का एक ज़िम्मेदार सदस्य होने के नाते अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा क़ायम करने की दिशा में यह भारतीय थल सेना का एक प्रयास है।

संयुक्त राष्ट्र के शांति बहाल करने के प्रयासों में भाग लेने के अलावा भारतीय थल सेना ने सहायता मांग रहे अपने पड़ोसी देशों की भी सहायता की है। 1987 के मध्य में श्रीलंका ने उत्तरी तमिल उग्रवादियों के ख़िलाफ़ श्रीलंकाई सशस्त्र सेनाओं द्वारा की जा रही कार्यवाही और बाद में इन उग्रवादियों द्वारा समर्पण का निरीक्षण करने के लिए भारतीय थल सेना की सहायता मांगी। यह शांति बहाल करनी की सबसे बड़ी चुनौती थी। प्रमुख उग्रवादी गुट लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एल.टी.टी.ई.) ने जमकर प्रतिरोध किया और भारतीय शांति सेना को उसे दबाने में समय लगा और उसके बहुत से सदस्यों की मृत्यु भी हुई। लेकिन भारतीय शांति सेना एल.टी.टी.ई. को उस बिंदु तक ले आई, जहाँ से राजनीतिक प्रक्रिया शुरू की जा सके। अपना अभियान पूरा करने के बाद भारतीय शांति सेना 24 मार्च 1990 को श्रीलंका से वापस बुला ली गई. 3 नवंबर 1988 को भारतीय सशस्त्र सेना ने मालदीव में हुए एक सैन्य विद्रोह को दबाने में वहाँ की सरकार की सहायता के लिए एक अभियान शुरू किया। भारतीय सशस्त्र सेना तीन दिन के अभियान के बाद सामान्य स्थिति बहाल करने में कामयाब रही।

भारतीय अधिकारियों और सैनिकों ने अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते समय अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया है और बहुत से वीरता पुरस्कार जीते हैं। परमवीर चक्र भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। महावीर चक्र, कीर्ति चक्र और वीर चक्र अन्य पुरस्कार हैं। सेना ने हमेशा ही प्रशासन की सहायता की है। उसने भूकंप, बाढ़, सूखे और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सरकार को सहयोग दिया है। सांप्रदायिक दंगों और राजनीतिक अशांति को नियंत्रित करने में भी सेना बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। आर्मी वाइव्ज़ वेलफ़ेयर एसोसिएशन (ए.डब्ल्यू.डब्ल्यू.ए.) सैन्य अधिकारियों की पत्नियों द्वारा चलाई जा रही संस्था है। यह संस्था युद्ध एवं शांतिकाल के दौरान प्रशासन को सहायता देती है। प्रमुख शहरों में सेना के अपने अस्पताल भी है।


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