इख़्तियारुद्दीन मुहम्मद: Difference between revisions
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वापस लौटते समय उसकी फ़ौज नष्ट हो गई। इख़्तियारुद्दीन अपने साथ दस हज़ार घुड़सवार ले गया था, जब वह वापस लौटा तो उसके पास सिर्फ़ सौ घुड़सवार ही बचे थे। इस हार ने उसको भीतर से तोड़ दिया और उसका साहस भी भंग कर दिया। वह शोक लांछना से पीड़ित होकर 1206 ई. में मर गया। | वापस लौटते समय उसकी फ़ौज नष्ट हो गई। इख़्तियारुद्दीन अपने साथ दस हज़ार घुड़सवार ले गया था, जब वह वापस लौटा तो उसके पास सिर्फ़ सौ घुड़सवार ही बचे थे। इस हार ने उसको भीतर से तोड़ दिया और उसका साहस भी भंग कर दिया। वह शोक लांछना से पीड़ित होकर 1206 ई. में मर गया। |
Revision as of 10:20, 13 March 2011
बख़्तियार ख़िलजी का लड़का तथा बंगाल का पहला मुसलमान विजेता। वह इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार ख़िलजी के नाम से भी जाना जाता है।
साहसी व्यक्तित्व
उसका व्यक्तित्व बाहर से देखने में अधिक प्रभावशाली नहीं था, परन्तु वह बड़ा साहसी और महत्त्वकांक्षी था। उसने बिहार पर हमला करके उसकी राजधानी उड्यन्तपुर पर अधिकार कर लिया और वहाँ के महाविहार में रहने वाले सभी बौद्ध भिक्षुओं का वध कर डाला। उसने 1192 ई. में बिहार को जीत लिया। इसके बाद ही, सम्भवत: 1193 ई. में, किंवा निश्चित रूप से 1202 ई. से पहले, उसने अचानक नदिया पर हमला बोल दिया, जो उस समय अन्तिम सेन राजा लक्ष्मण सेन की राजधानी था। लक्ष्मण सेन पूर्वी बंगाल की ओर भाग गया। बख़्तियार ख़िलजी, मुहम्मद ग़ोरी की ओर से बंगाल का सूबेदार बनकर गौड़ में रहने लगा।
हार तथा क्षति
इस सफलता से इख़्तियारुद्दीन मुहम्मद की महत्त्वाकांक्षा और भी बढ़ गई और उसने एक बड़ी मुसलमानी फ़ौज लेकर कामरूप (आसाम) और तिब्बत की ओर क़ूच किया। बंगाल से निकलकर उसकी फ़ौज किस दिशा में आगे बढ़ी, उसका निश्चित लक्ष्य क्या था, यह संदिग्ध है। पन्द्रह दिन क़ूच करने के बाद उसने जिस राज्य पर हमला किया था, उसकी सेना से मुक़ाबला हुआ। युद्ध में उसकी हार हुई और उसे भारी क्षति भी उठानी पड़ी।
मृत्यु
वापस लौटते समय उसकी फ़ौज नष्ट हो गई। इख़्तियारुद्दीन अपने साथ दस हज़ार घुड़सवार ले गया था, जब वह वापस लौटा तो उसके पास सिर्फ़ सौ घुड़सवार ही बचे थे। इस हार ने उसको भीतर से तोड़ दिया और उसका साहस भी भंग कर दिया। वह शोक लांछना से पीड़ित होकर 1206 ई. में मर गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ