आजीवक: Difference between revisions
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Revision as of 08:17, 21 March 2011
- आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना गोशाला ने की थी, जो गौतम बुद्ध का समकालीन था।
- उनके विचार 'सामंज फल सुत्त' तथा 'भगवतीसूत्र' में मिलते हैं।
- आजीवक पुरुषार्थ में विश्वास नहीं करते थे।
- वे नियति को मनुष्य की सभी अवस्थाओं के लिए उत्तरदायी ठहराते थे।
- उनके नियतिवाद में पुरुष के बल या वीर्य (पराक्रम) का कोई स्थान नहीं था।
- वे पाप या पुण्य का कोई हेतु या कारण नहीं मानते थे।
- आजीवकों का सम्प्रदाय कभी इतना विशाल नहीं हुआ कि राजनीति पर उसका कोई प्रभाव पड़ता, हालाँकि अशोक के काल में उनका समुदाय महत्त्वपूर्ण माना जाता था।
- अशोक के पोते ने गया के निकट बराबर पहाड़ियों में निर्मित तीन ग़ुफ़ा मन्दिर आजीवकों को दान कर दिये थे।
हिन्दी | जीवन निर्वाह में कुछ निश्चित नियमों का पालन करने वाला, जैन साधु। |
-व्याकरण | पुल्लिंग। |
-उदाहरण | दिव्यावदान की एक कथा के अनुसार आजीवक परिव्राजक बिन्दुसार की सभा को सुशोभित करते थे। बौद्ध साहित्य के 'चुल्लनिद्देस' मे आजीवक, निगंठ, जटिल बलदेव आदि श्रावकों के साथ वासुदेव को पूजने वाले वासुदेवकों का भी उल्लेख हुआ है। |
-विशेष | आजीवक के संदर्भ में अनेक प्रकार की भ्रांतियां हैं। कुछ विद्वान का मत है कि आरजीवक एक धर्म है औ वे इसे एक धर्म के ही रूप में देखते हैं तथा कुछ इसे एक जीवनशैली के रूप में देखते हैं।[1] |
-विलोम | |
-पर्यायवाची | अनुव्रत, जैन साधु, केश लुंचक, क्षपण, क्षपणक, जीवक, मुँहबँधा, श्रावक। |
संस्कृत | आजीव् + ण्वुल् |
अन्य ग्रंथ | |
संबंधित शब्द | आजीव। |
संबंधित लेख |
अन्य शब्दों के अर्थ के लिए देखें शब्द संदर्भ कोश
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