केशवरायपाटन: Difference between revisions
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Revision as of 05:00, 11 April 2011
केशवरायपाटन प्राचीन नगर राजस्थान के कोटा शहर से 22 किलोमीटर दूर चम्बल नदी के तट पर अवस्थित है। वर्तमान पाटन ही प्राचीन आश्रम पट्टन है।
इतिहास
कुछ प्राचीन मतों के अनुसार चन्द्रवंशी राजा हस्ती (जिन्होंने हस्तिनापुर बसाया) के चचेरे भाई रितदेव ने इसे बसाया था। यहाँ पाण्डवों के द्वारा अज्ञातवास में कुछ समय शरण लेने का उल्लेख भी मिला है।
वास्तुकला
हम्मीर महाकाव्य से ज्ञात होता है कि रणथम्भौर के चौहान राजा जेत्रसिंह वृद्धावस्था में अपने पुत्र हम्मीर को राज्य देकर पत्नी सहित यहाँ मंदिर की पूजा हेतु आये थे। यहाँ के प्राचीन मंदिर के गिर जाने पर बूँदी नरेश राजा शत्रुसाल हाड़ा ने एक बड़ा मंदिर 1641 ई. में फिर बनवाया था। इस मंदिर में केशवराय (विष्णु) की चतुर्भुजी सफ़ेद पाषाण की मूर्ति प्रतिष्ठित है, जिसको शत्रुसाल मथुरा से लाये थे। यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है।
धार्मिक स्थल
पत्थर की बारीक कटाई, तक्षणकला का श्रेष्ठ नमूना मण्डोवर व शिखर पर उकेरी आकृतियाँ मनमोहक हैं। मंदिर के गर्भगृह में, बड़ी संख्या में मंदिर से भी प्राचीन प्रतिमाओं का संकलन है। इसकी बाहरी दीवारों पर प्राचीन प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। यह चम्बल नदी का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यहाँ कार्तिक माह में प्रसिद्ध मेला लगता है। केशवराय का यह मंदिर बाहर से देखने पर अलौकिक दिखाई देता है। मंदिर निर्माण की शैली उत्कृष्ट एवं तक्षण कला बेजोड़ है। यहाँ राजराजेश्वर मंदिर (शैव) भी प्राचीनकालीन महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
चमत्कारिक शिला
इस नगर में जैन मुनि सुव्रतनाथ की 2500 वर्ष प्राचीन एक चमत्कारिक प्रतिमा है, जो सम्वत 336 में प्रतिष्ठित की गई थी। यह एक शिला फलक पर है। इसकी पॉलिश मौर्य व मध्यवर्ती कुषाण काल की सिद्ध होती है। इसके आलावा यहाँ तेरहवीं शताब्दी की और भी प्रतिमायें हैं। यह मंदिर भूमिदेवरा नामक जैन मंदिर भी कहलाता है। इसमें स्थित मूर्ति को मोहम्मद गौरी द्वारा क्षतिग्रस्त किया गया था। जिसकी पुष्टि कर्नल टॉड, दशरथ शर्मा इत्यादि विद्वान करते हैं। एक अन्य श्वेत शिला फलक पर पद्मप्रभु की खड़गासन मूर्ति है, जो मूर्तिकला की दृष्टि से बहुत आकर्षक है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ