रथ का मेला वृन्दावन: Difference between revisions

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'''रथ का मेला वृन्दावन / Rath ka mela Vrindavan'''
'''रथ का मेला वृन्दावन / Rath ka mela Vrindavan'''



Revision as of 07:04, 27 April 2010

[[चित्र:Rath-Yatra-Rang-Ji-Temple-Vrindavan-Mathura-5.jpg|thumb|रथ का मेला वृन्दावन]] रथ का मेला वृन्दावन / Rath ka mela Vrindavan

होली समाप्त होते ही चैत्र शु0 2 से वृन्दावन में रंग जी के मन्दिर का प्रसिद्ध रथ मेला प्रारम्भ हो जाता है। प्रतिदिन विभिन्न सोने–चांदी के वाहनों पर रंगजी की सवारी निकलती है। चैत्र शुक्ल 9 रथ का मेला तथा दसवीं को भव्य आतिशबाजी होती है। यह बहुत बड़ा मेला होता है।


वृन्दावन में रंग नाथ जी मन्दिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है, जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है। यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मन्दिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहाँ स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जलूस के साथ संगीत, सुगन्ध सामग्री और मशालें रहती हैं। जिस दिन रथ प्रयोग मे लाया जाता है, उस दिन अष्टधातु की मूर्ति रथ के मध्य स्थापित की जाती है। इसके दोनों ओर चौरधारी ब्राह्मण खड़े रहते हैं। भीड़ के साथ सेठ लोग भी जब-तब रथ के रस्से को पकड कर खींचतें हैं। लगभग ढ़ाई घन्टे के अन्तराल में काफी जोर लगाकर यह दूरी पार कर ली जाती है। अगामी दिन शाम की बेला में आतिशबाजी का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। आसपास के दर्शनार्थियों की भीड़ भी इस अवसर पर एकत्र होती है। अन्य दिनों जब रथ प्रयोग में नहीं आता तो भगवान की यात्रा के लिए कई वाहन रहते हैं- कभी जड़ाऊ पालकी तो कभी पुण्य कोठी, तो कभी सिंहासन होता है। कभी कदम्ब तो कभी कल्पवृक्ष रहता है। कभी-कभी किसी उपदेवता को भी वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे- सूरज, गरुड़, हनुमान या शेषनाग। कभी घोड़ा, हाथी, सिंह, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे चतुष्पद भी प्रयोग में लाये जाते हैं।

वीथिका

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