कर्णप्रयाग: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{पुनरीक्षण}} {{tocright}} कर्णप्रयाग का नाम कर्ण पर है जो [[म...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
Line 12: | Line 12: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक स्थान}} | |||
[[Category:उत्तराखंड]] | [[Category:उत्तराखंड]] | ||
[[Category:उत्तराखंड के ऐतिहासिक स्थान]] | [[Category:उत्तराखंड के ऐतिहासिक स्थान]] |
Revision as of 06:01, 15 July 2011
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
कर्णप्रयाग का नाम कर्ण पर है जो महाभारत का एक केंद्रीय पात्र था। उसका जन्म कुंती के गर्भ से हुआ था और इस प्रकार वह पांडवों का बड़ा भाई था। यह महान योद्धा तथा दुखांत नायक कुरूक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के पक्ष से लड़ा। एक किंबदंती के अनुसार आज जहाँ कर्ण को समर्पित मंदिर है, वह स्थान कभी जल के अंदर था और मात्र कर्णशिला नामक एक पत्थर की नोक जल के बाहर थी। कुरूक्षेत्र युद्ध के बाद भगवान कृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार कर्णशिला पर अपनी हथेली का संतुलन बनाये रखकर किया था। एक दूसरी कहावतानुसार कर्ण यहाँ अपने पिता सूर्य की आराधना किया करता था। यह भी कहा जाता है कि यहाँ देवी गंगा तथा भगवान शिव ने कर्ण को साक्षात दर्शन दिया था।[1]
पौराणिक
पौराणिक रूप से कर्णप्रयाग की संबद्धता उमा देवी (पार्वती) से भी है। उन्हें समर्पित कर्णप्रयाग के मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा पहले हो चुकी थी। कहावत है कि उमा का जन्म डिमरी ब्राह्मणों के घर संक्रीसेरा के एक खेत में हुआ था, जो बद्रीनाथ के अधिकृत पुजारी थे और इन्हें ही उसका मायका माना जाता है तथा कपरीपट्टी गांव का शिव मंदिर उनकी ससुराल होती है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 कर्णप्रयाग (हिन्दी) विकीउत्तराखण्ड। अभिगमन तिथि: 5 जुलाई, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख