अनमोल वचन 5: Difference between revisions
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* जलाने की लकड़ी ही होलिका है जब वह जलती है तब प्रह्लाद की प्राप्ति होती है। प्रह्लाद जो आह्लाद का ही विशेष रुप है। - मुक्ता | * जलाने की लकड़ी ही होलिका है जब वह जलती है तब प्रह्लाद की प्राप्ति होती है। प्रह्लाद जो आह्लाद का ही विशेष रुप है। - मुक्ता | ||
* कुछ प्रलोभन परिश्रमी व्यक्ति को हो सकते हैं, किंतु सारे प्रलोभन तो केवल आलसी व्यक्ति पर ही आक्रमण करते हैं। - मुक्ता | * कुछ प्रलोभन परिश्रमी व्यक्ति को हो सकते हैं, किंतु सारे प्रलोभन तो केवल आलसी व्यक्ति पर ही आक्रमण करते हैं। - मुक्ता | ||
* महापुरुष वे ही होते हैं जो विभिन्न परिस्थितियों के रंगों में रंगे जाने के बाद भी अपने व्यक्तित्व की पहचान को खोने नहीं देते। - मुक्ता | |||
* रंगों का स्वभाव है बिखरना और मनुष्य का स्वभाव है उन्हें समेटकर अपने जीवन को रंगीन बनाना। - मुक्ता | |||
* आतंक का जन्म असंतोष से होता है असमानता से इसे हवा मिलती है और यह अपनी आग में हज़ारों को लेकर जल मरता है - मुक्ता | |||
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा | * मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा | ||
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* प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना। नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं। - विनोबा | * प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना। नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं। - विनोबा | ||
* महान विचार ही कार्य रूप में परिणत होकर महान कार्य बनते हैं। - विनोबा | * महान विचार ही कार्य रूप में परिणत होकर महान कार्य बनते हैं। - विनोबा | ||
* जबतक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है। - विनोबा | |||
* आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। - भर्तृहरि | * आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। - भर्तृहरि | ||
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* तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी हल्का याचक। हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न माँग ले। - चाणक्य | * तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी हल्का याचक। हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न माँग ले। - चाणक्य | ||
* धन के लोभी के पास सच्चाई नहीं रहती और व्यभिचारी के पास पवित्रता नहीं रहती। - चाणक्य | * धन के लोभी के पास सच्चाई नहीं रहती और व्यभिचारी के पास पवित्रता नहीं रहती। - चाणक्य | ||
* पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता। - चाणक्य | |||
* चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। - सत्यसाई बाबा | * चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। - सत्यसाई बाबा | ||
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* मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी | * मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी | ||
* महापुरुषों का सर्वश्रेष्ठ सम्मान हम उनका अनुकरण कर के ही कर सकते हैं। - महात्मा गांधी | * महापुरुषों का सर्वश्रेष्ठ सम्मान हम उनका अनुकरण कर के ही कर सकते हैं। - महात्मा गांधी | ||
* जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है, कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। - महात्मा गाँधी | |||
* वही राष्ट्र सच्चा लोकतंत्रात्मक है जो अपने कार्यों को बिना हस्तक्षेप के सुचारु और सक्रिय रूप से चलाता है। - महात्मा गांधी | |||
* सारा हिन्दुस्तान गुलामी में घिरा हुआ नहीं है। जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा पाई है और जो उसके पाश में फँस गए हैं, वे ही गुलामी में घिरे हुए हैं। - महात्मा गाँधी | |||
* सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। - स्वामी विवेकानंद | * सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। - स्वामी विवेकानंद | ||
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* पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानंद | * पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानंद | ||
* आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। यही हमारी उन्नति में सबसे बड़ा सहयक होता है। - स्वामी विवेकानंद | * आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। यही हमारी उन्नति में सबसे बड़ा सहयक होता है। - स्वामी विवेकानंद | ||
* कामनाएँ समुद्र की भाँति अतृप्त हैं। पूर्ति का प्रयास करने पर उनका कोलाहल और बढ़ता है। - स्वामी विवेकानंद | |||
* जब तक तुम स्वयं अपने में विश्वास नहीं करते, परमात्मा में तुम विश्वास नहीं कर सकते। - स्वामी विवेकानंद | |||
* जीवन का रहस्य भोग में स्थित नहीं है, यह केवल अनुभव द्वारा निरंतर सीखने से ही प्राप्त होता है। - स्वामी विवेकानंद | |||
* जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डाँवाँडोल स्थिति में रहना। - सुभाष चंद्र बोस | * जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डाँवाँडोल स्थिति में रहना। - सुभाष चंद्र बोस | ||
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* देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। - प्रेमचंद | * देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। - प्रेमचंद | ||
* मासिक वेतन पूरनमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। - प्रेमचंद | * मासिक वेतन पूरनमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। - प्रेमचंद | ||
* क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं कहता, वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है। - प्रेमचंद | |||
* अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। - कहावत | * अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। - कहावत | ||
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* लक्ष्मी उसी के लिए वरदान बनकर आती है जो उसे दूसरों के लिए वरदान बनाता है। - सुदर्शन | * लक्ष्मी उसी के लिए वरदान बनकर आती है जो उसे दूसरों के लिए वरदान बनाता है। - सुदर्शन | ||
* जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सामान्यतः सबसे बड़ा मूर्ख होता है। - सुदर्शन | * जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सामान्यतः सबसे बड़ा मूर्ख होता है। - सुदर्शन | ||
* कीर्ति का नशा शराब के नशे से भी तेज़ है। शराब छोड़ना आसान है, कीर्ति छोड़ना आसान नहीं। - सुदर्शन | |||
* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। - कालिदास | * पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। - कालिदास | ||
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* ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। - कौटिल्य | * ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। - कौटिल्य | ||
* सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं। - कौटिल्य अर्थशास्त्र | |||
* सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। - सम्राट अशोक | * सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। - सम्राट अशोक | ||
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* कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। - लोकमान्य तिलक | * कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। - लोकमान्य तिलक | ||
* शरीर को रोगी और निर्बल रखने के सामान दूसरा कोई पाप नहीं है। - लोकमान्य तिलक | |||
* विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। - हर्ष मोहन | * विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। - हर्ष मोहन | ||
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* प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध | * प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध | ||
* जहाँ चक्रवर्ती सम्राट की तलवार कुंठित हो जाती है, वहाँ महापुरुष का एक मधुर वचन ही काम कर देता है। - हरिऔध | |||
* असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। - हरिभाऊ उपाध्याय | * असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। - हरिभाऊ उपाध्याय | ||
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* लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है। - सरदार पटेल | * लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है। - सरदार पटेल | ||
* जब तक हम स्वयं निरपराध न हों तब तक दूसरों पर कोई आक्षेप सफलतापूर्वक नहीं कर सकते। - सरदार पटेल | |||
* दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। - रामचंद्र शुक्ल | * दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। - रामचंद्र शुक्ल | ||
* धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। - विदुर | * धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। - विदुर | ||
* कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है। - विदुर | |||
* कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। - हरिवंश राय बच्चन | * कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। - हरिवंश राय बच्चन | ||
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* दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। - डॉ. रामकुमार वर्मा | * दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। - डॉ. रामकुमार वर्मा | ||
* सौंदर्य और विलास के आवरण में महत्त्वाकांक्षा उसी प्रकार पोषित होती है जैसे म्यान में तलवार। - रामकुमार वर्मा | |||
* जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गई विद्या फलदायी नहीं होती। - भगवान महावीर | |||
* भोग में रोग का, उच्च-कुल में पतन का, धन में राजा का, मान में अपमान का, बल में शत्रु का, रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर है। भय रहित तो केवल वैराग्य ही है। - भगवान महावीर | |||
* प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। - वृंद | * प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। - वृंद | ||
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* वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। - सामवेद | * वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। - सामवेद | ||
* काम से ज़्यादा काम के पीछे निहित भावना का महत्व होता है। - डॉ. राजेंद्र प्रसाद | * काम से ज़्यादा काम के पीछे निहित भावना का महत्व होता है। - डॉ. राजेंद्र प्रसाद | ||
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* कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य को दास नहीं बनाता, केवल धन का लालच ही मनुष्य को दास बनाता है। - पंचतंत्र | * कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य को दास नहीं बनाता, केवल धन का लालच ही मनुष्य को दास बनाता है। - पंचतंत्र | ||
* शासन के समर्थक को जनता पसंद नहीं करती और जनता के पक्षपाती को शासन। इन दोनो का प्रिय कार्यकर्ता दुर्लभ है। - पंचतंत्र | |||
* जैसे दीपक का प्रकाश घने अंधकार के बाद दिखाई देता है उसी प्रकार सुख का अनुभव भी दुःख के बाद ही होता है - शूद्रक | * जैसे दीपक का प्रकाश घने अंधकार के बाद दिखाई देता है उसी प्रकार सुख का अनुभव भी दुःख के बाद ही होता है - शूद्रक | ||
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* मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो। मैं तुम्हें अनुपम बातें बता सकूँगा। - अमीर ख़ुसरो | * मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो। मैं तुम्हें अनुपम बातें बता सकूँगा। - अमीर ख़ुसरो | ||
* कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कार, एक सोच, एक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है। - भरत प्रसाद | |||
* कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन वहीं से शुरू होता है।' - संजीव | |||
* ईश्वर बड़े बड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है किंतु छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर | |||
* बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। - स्वामी रामदेव | |||
* स्वदेशी उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, ज्ञान, तकनीक, खानपान, भाषा, वेशभूषा एवं स्वाभिमान के बिना विश्व का कोई भी देश महान नहीं बन सकता। - स्वामी रामदेव | |||
* विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धि' में और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभाव' में होती है। - आदित्य चौधरी | |||
* किताबों में वजन होता है! ये यूँ ही किसी के जीवन की दशा और दिशा नहीं बदल देतीं। - इला प्रसाद | |||
* मानव जीवन धूल की तरह है, रो-धोकर हम इसे कीचड़ बना देते हैं। - बकुल वैद्य | |||
* अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है। - चंद्रशेखर वेंकट रमण | |||
* जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर नहीं ठहरता है, उसी प्रकार मुक्त आत्मा के कर्म उससे नहीं चिपकते हैं। - छांदोग्य उपनिषद | |||
* जैसे सूर्य आकाश में छुप कर नहीं विचर सकता उसी प्रकार महापुरुष भी संसार में गुप्त नहीं रह सकते। - व्यास | |||
* ख्याति नदी की भाँति अपने उद्गम स्थल पर क्षीण ही रहती है किंदु दूर जाकर विस्तृत हो जाती है। - भवभूति | |||
* सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। - श्री अरविंद | |||
* बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है। - शंकराचार्य | |||
* फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। - गीता | |||
* बच्चों को पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। - स्वामी रामसुखदास | |||
* समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। - (न्यायमूर्ति) कृष्णस्वामी अय्यर | |||
* मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है, शुद्ध बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से महान है, आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी नहीं है। - स्वामी शिवानंद | |||
* विश्व की सर्वश्रेष्ठ कला, संगीत व साहित्य में भी कमियाँ देखी जा सकती है लेकिन उनके यश और सौंदर्य का आनंद लेना श्रेयस्कर है। - श्री परमहंस योगानंद | |||
* तर्क से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता। मूर्ख लोग तर्क करते हैं, जबकि बुद्धिमान विचार करते हैं। - श्री परमहंस योगानंद | |||
* खुद के लिये जीनेवाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता पर जब आप दूसरों के लिये जीना सीख लेते हैं तो वे आपके लिये जीते हैं। - श्री परमहंस योगानंद | |||
* दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य उसका नहीं होता, मूल्य होता है उसकी लौ का जिसे कोई अँधेरा, अँधेरे के तरकश का कोई तीर ऐसा नहीं जो बुझा सके। - विष्णु प्रभाकर | |||
Revision as of 19:05, 11 August 2011
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- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
अनमोल वचन |
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