बाल विवाह: Difference between revisions
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गौरतलब है कि वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक़ देश में 18 वर्ष से कम उम्र के 64 लाख लड़के-लड़कियां विवाहित हैं कुल मिलाकर विवाह योग्य कानूनी उम्र से कम से एक कराड़ 18 लाख (49 लाख लड़कियां और 69 लड़के) लोग विवाहित हैं। इनमें से 18 वर्ष से कम उम्र की एक लाख 30 हज़ार लड़कियां विधवा हो चुकी हैं और 24 हज़ार लड़कियां तलाक़शुदा या पतियों द्वारा छोड़ी गई हैं। यही नहीं 21 वर्ष से कम उम्र के करीब 90 हजार लड़के विधुर हो चुके हैं और 75 हजार तलाक़शुदा हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक़ राजस्थान देश के उन सभी राज्यों में सर्वोपरि है, जिनमें बाल विवाह की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। राज्य की 5.6 फ़ीसदी नाबालिग आबाद विवाहित है। इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल आते हैं।<ref name="Core">{{cite web |url=http://www.corecentre.co.in/guest/Hindi/bal_vivah.asp |title=बाल विवाह की कुप्रथा |accessmonthday=13 अक्टूबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= Core Center |language=हिन्दी }}</ref> | गौरतलब है कि वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक़ देश में 18 वर्ष से कम उम्र के 64 लाख लड़के-लड़कियां विवाहित हैं कुल मिलाकर विवाह योग्य कानूनी उम्र से कम से एक कराड़ 18 लाख (49 लाख लड़कियां और 69 लड़के) लोग विवाहित हैं। इनमें से 18 वर्ष से कम उम्र की एक लाख 30 हज़ार लड़कियां विधवा हो चुकी हैं और 24 हज़ार लड़कियां तलाक़शुदा या पतियों द्वारा छोड़ी गई हैं। यही नहीं 21 वर्ष से कम उम्र के करीब 90 हजार लड़के विधुर हो चुके हैं और 75 हजार तलाक़शुदा हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक़ राजस्थान देश के उन सभी राज्यों में सर्वोपरि है, जिनमें बाल विवाह की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। राज्य की 5.6 फ़ीसदी नाबालिग आबाद विवाहित है। इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल आते हैं।<ref name="Core">{{cite web |url=http://www.corecentre.co.in/guest/Hindi/bal_vivah.asp |title=बाल विवाह की कुप्रथा |accessmonthday=13 अक्टूबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= Core Center |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==उन्मूलन हेतु सरकार व गैर सरकारी संस्थाओं के पहल== | |||
# बाल विवाह के विरुद्ध कानूनों का निर्माण। | |||
# लड़कियों की शिक्षा को सुगम बनाना। | |||
# हानिकारक सामाजिक नियमों को बदलना। | |||
# सामुदायिक कार्यक्रमों को सहायता। | |||
# विदेशी सहायता अधिकतम करना। | |||
# युवा महिलाओं को आर्थिक अवसर प्रदान करना। | |||
# बाल वधुओं की विरले ज़रूरतों को पूरा करना। | |||
# कार्यक्रमों का आकलन कर देखना कि क्या बात असरदार होगी।<ref name="INDG"/> | |||
Revision as of 10:24, 13 October 2011
बाल विवाह का सम्बन्ध आमतौर पर भारत के कुछ समाजों में प्रचलित सामाजिक प्रक्रियाओं से जोड़ा जाता है, जिसमें एक युवा बच्चे (आमतौर पर 15 वर्ष से कम आयु की लडकी) का विवाह एक वयस्क पुरुष से किया जाता है। बाल विवाह की दूसरे प्रकार की प्रथा में दो बच्चों (लड़का एवं लड़की) के माता-पिता भविष्य में होने वाला विवाह तय करते हैं। इस प्रथा में दोनों व्यक्ति (लड़का एवं लड़की) उनकी विवाह योग्य आयु होने तक नहीं मिलते, जबकि उनका विवाह सम्पन्न कराया जाता है। क़ानून के अनुसार, विवाह योग्य आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष एवं महिलाओं के लिए 18 वर्ष है।[1]
बाल विवाह के कुप्रभाव
जो लड़कियां कम उम्र में विवाहित हो जाती हैं उन्हें अक्सर कम उम्र में सेक्स की शुरुआत एवं गर्भधारण से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं होने की प्रबल सम्भावना होती है, जिनमें एच.आई.वी (एड्स) एवं ऑब्स्टेट्रिक फिस्चुला शामिल हैं।
- कम उम्र की लड़कियां, जिनके पास रुतबा, शक्ति एवं परिपक्वता नहीं होते, अक्सर घरेलू हिंसा, सेक्स सम्बन्धी ज़्यादतियों एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार होती हैं।
- कम उम्र में विवाह लगभग हमेशा लड़कियों को शिक्षा या अर्थपूर्ण कार्यों से वंचित करता है जो उनकी निरंतर गरीबी का कारण बनता है।
- बाल विवाह लिंगभेद, बीमारी एवं गरीबी के भंवरजाल में फंसा देता है।
- जब वे शारीरिक रूप से परिपक्व न हों, उस स्थिति में कम उम्र में लड़कियों का विवाह कराने से मातृत्व सम्बन्धी एवं शिशु मृत्यु की दरें अधिकतम होती हैं।[1]
राज्य | औसत आयु |
---|---|
अंडमान व निकोबार | 19.6 वर्ष |
आंध्र प्रदेश | 17.2 वर्ष |
चंडीगढ़ | 20 वर्ष |
छत्तीसगढ़ | 17.6 वर्ष |
दादर व नगर हवेली | 18.8 वर्ष |
दमन व द्वीव | 19.4 वर्ष |
दिल्ली | 19.2 वर्ष |
गोवा | 22.2 वर्ष |
गुजरात | 19.2 वर्ष |
हरियाणा | 18 वर्ष |
हिमाचल प्रदेश | 19.1 वर्ष |
जम्मू-कश्मीर | 20.1 वर्ष |
झारखंड | 17.6 वर्ष |
कर्नाटक | 18.9 वर्ष |
केरल | 20.8 वर्ष |
लक्षद्वीप | 19.1 वर्ष |
मध्य प्रदेश | 17 वर्ष |
महाराष्ट्र | 18.8 वर्ष |
मणिपुर | 21.5 वर्ष |
मेघालय | 20.5 वर्ष |
मिज़ोरम | 21.8 वर्ष |
नागालैंड | 21.6 वर्ष |
उड़ीसा | 18.9 वर्ष |
पांडिचेरी | 20 वर्ष |
पंजाब | 20.5 वर्ष |
राजस्थान | 16.6 वर्ष |
सिक्किम | 20.2 वर्ष |
तमिलनाडु | 19.9 वर्ष |
त्रिपुरा | 19.3 वर्ष |
उत्तर प्रदेश | 17.5 वर्ष |
उत्तरांचल | 18.5 वर्ष |
पश्चिम बंगाल | 18.4 वर्ष |
बाल विवाह के कारण
- गरीबी।
- लड़कियों की शिक्षा का निचला स्तर।
- लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना।
- सामाजिक प्रथाएं एवं परम्पराएं।[1]
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट
यूनिसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट-2007 में बताया गया है कि हालांकि पिछले 20 वर्षों में देश में विवाह की औसत उम्र धीरे-धीरे बढ़ रही है, लेकिन बाल विवाह की कुप्रथा अब भी बड़े पैमाने पर प्रचलित है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में औसतन 46 फ़ीसदी महिलाओं का विवाह 18 वर्ष होने से पहले ही कर दिया जाता है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह औसत 55 फ़ीसदी है।
गौरतलब है कि वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक़ देश में 18 वर्ष से कम उम्र के 64 लाख लड़के-लड़कियां विवाहित हैं कुल मिलाकर विवाह योग्य कानूनी उम्र से कम से एक कराड़ 18 लाख (49 लाख लड़कियां और 69 लड़के) लोग विवाहित हैं। इनमें से 18 वर्ष से कम उम्र की एक लाख 30 हज़ार लड़कियां विधवा हो चुकी हैं और 24 हज़ार लड़कियां तलाक़शुदा या पतियों द्वारा छोड़ी गई हैं। यही नहीं 21 वर्ष से कम उम्र के करीब 90 हजार लड़के विधुर हो चुके हैं और 75 हजार तलाक़शुदा हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक़ राजस्थान देश के उन सभी राज्यों में सर्वोपरि है, जिनमें बाल विवाह की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। राज्य की 5.6 फ़ीसदी नाबालिग आबाद विवाहित है। इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल आते हैं।[2]
उन्मूलन हेतु सरकार व गैर सरकारी संस्थाओं के पहल
- बाल विवाह के विरुद्ध कानूनों का निर्माण।
- लड़कियों की शिक्षा को सुगम बनाना।
- हानिकारक सामाजिक नियमों को बदलना।
- सामुदायिक कार्यक्रमों को सहायता।
- विदेशी सहायता अधिकतम करना।
- युवा महिलाओं को आर्थिक अवसर प्रदान करना।
- बाल वधुओं की विरले ज़रूरतों को पूरा करना।
- कार्यक्रमों का आकलन कर देखना कि क्या बात असरदार होगी।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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