चालुक्य वंश: Difference between revisions

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विक्रमादित्य षष्ठ की मृत्यु के बाद से कल्याणी के चालुक्यों की शक्ति का पतन शुरू हो गया। ग्यारहवें राजा तैलप तृतीय के शासन काल में चालुक्य राज्य का अधिकांश भाग उसके प्रधान सेनापति बिज्जल कलचूरि ने हड़प लिया। चालुक्य राज्य शनै-शनै इतना कमज़ोर हो गया कि 21वीं शती में बारहवें राजा सोमेश्वर चतुर्थ का शासन समाप्त होने तक उसके राज्य का पश्चिमी भाग तो देवगिरि के यादवों ने छीन लिया और दक्षिणी भाग द्वारसमुद्र के होयसलों के नियंत्रण में आ गया। वातापी और कल्याणी चालुक्य नरेशों ने स्वयं कट्टर हिन्दू होने पर भी [[बौद्ध]] और [[जैन धर्म]] को प्रश्रय दिया। इनके शासन काल में यज्ञ-प्रधान हिन्दू धर्म पर विशेष बल दिया गया। चालुक्य राजाओं ने हिन्दू देवताओं के अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया।  
विक्रमादित्य षष्ठ की मृत्यु के बाद से कल्याणी के चालुक्यों की शक्ति का पतन शुरू हो गया। ग्यारहवें राजा तैलप तृतीय के शासन काल में चालुक्य राज्य का अधिकांश भाग उसके प्रधान सेनापति बिज्जल कलचूरि ने हड़प लिया। चालुक्य राज्य शनै-शनै इतना कमज़ोर हो गया कि 21वीं शती में बारहवें राजा सोमेश्वर चतुर्थ का शासन समाप्त होने तक उसके राज्य का पश्चिमी भाग तो देवगिरि के यादवों ने छीन लिया और दक्षिणी भाग द्वारसमुद्र के होयसलों के नियंत्रण में आ गया। वातापी और कल्याणी चालुक्य नरेशों ने स्वयं कट्टर हिन्दू होने पर भी [[बौद्ध]] और [[जैन धर्म]] को प्रश्रय दिया। इनके शासन काल में यज्ञ-प्रधान हिन्दू धर्म पर विशेष बल दिया गया। चालुक्य राजाओं ने हिन्दू देवताओं के अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया।  
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Revision as of 10:00, 22 May 2010

चालुक्य वंश छठी शताब्दी ई0 के मध्य दक्षिणी भारत में उत्कर्ष को प्राप्त था। इसके मूल के बारे में ठीक से कुछ पता नहीं है। चालुक्य नरेशों का दावा था कि वे चंद्रवशी राजपूत हैं और कभी अयोध्या पर शासन करते थे। गुर्जरों की एक शाखा चापस के एक अभिलेख में चालुक्य नरेश पुलकेशी के उल्लेख से कुछ आधुनिक इतिहासकारों ने यह अर्थ निकाला है कि चालुक्य, जो सोलंकी के नाम से विख्यात हैं, गुर्जरों से सम्बद्ध थे और राजपूताना से दक्षिण में आकर बसे थे। जो हो इतना तो निश्चित है कि चालुक्यों के नेता पुलकेशी प्रथम ने 550 ई0 में एक राज्य की स्थापना की। जिसकी राजधानी वातापी थी। जो आज बीजापुर जिले में 'बादासी' के नाम से विख्यात है। पुलकेशी प्रथम ने अपने को दिग्विजयी राजा घोषित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ भी किया। उसके वंश ने, जो वातापी के चालुक्य के नाम से प्रसिद्ध हैं, तेरह वर्षों के व्यवधान (642-655) को छोड़कर 550 से लेकर 757 ई0 तक राज किया।

शासकों के नाम

इस वंश के नरेशों के नाम हैं—

  • पुलकेशी प्रथम (550-66 ई0),
  • कीर्तिवर्मा प्रथम (लगभग 566 से 97 ई0),
  • मंगलेश (लगभग 597-608),
  • पुलकेशी द्वितीय (लगभग 609-42),
  • व्यवधान ( लगभग 642-55),
  • विक्रमादित्य प्रथम ( 655-80),
  • विनयादित्य (680-96),
  • विजयादित्य (696-733),
  • विक्रमादित्य द्वितीय (733-746), और
  • कीर्तिवर्मा द्वितीय (746-57)।

कुशल शासक

शुरू के इन नौ चालुक्य नरेशों में चौथा पुलकेशी द्वितीय सबसे ज्यादा प्रख्यात है। उसने 34 वर्ष (608-42) तक शासन किया। उसका राज्य विस्तार उत्तर में नर्मदा नदी से लेकर दक्षिण में कावेरी नदी तक हो गया। किन्तु 642 ई0 में वह पल्लव नरेश नरसिंह वर्मा के द्वारा पराजित हुआ और शायद मारा गया। इसके बाद अगले तेरह सालों तक चालुक्य वंश पराभव को प्राप्त रहा। 655 ई0 में पुलकेशी के पुत्र विक्रमादित्य प्रथम ने चालुक्य शक्ति फिर से प्रतिष्ठित की। पल्लवों के साथ चालुक्यों का संघर्ष जारी रहा और 740 ई0 में चालुक्य नरेश विक्रमादित्य द्वितीय ने पल्लवों की राजधानी कांची पर अधिकार कर लिया। लेकिन उसके पुत्र और उत्तराधिकारी कीर्तिवर्मा द्वितीय को राष्ट्रकूटों के नेता दंतिदुर्ग ने 753 ई0 में सिंहासन-च्युत कर दिया। चालुक्यों की शक्ति पर यह दूसरा ग्रहण था।

द्वितीय चालुक्य वंश

दो शताब्दियों के बाद चालुक्यवंश पुनः उत्कर्ष को प्राप्त हुआ जब तैल या तैलपने, जो अपने को वातापी के सातवें चालुक्य नरेश विजयादित्य का वंशज कहता था, 973 ई0 में राष्ट्रकूट नरेश द्वितीय को परास्त कर दिया और कल्याणी को अपनी राजधानी बनाकर नये चालुक्य वंश की स्थापना की। यह नया वंश 973 से 1200 ई0 तक सत्तासीन रहा और इसमें 12 राजा हुए।

नये शासकों के नाम

इनके नाम हैं—

आक्रमण

कल्याणी के इस चालुक्य राज्य का एक लम्बे अर्से तक तंजोर के चोलवंशी शासकों से संघर्ष चलता रहा। सत्याश्रय को चोल नरेश राजराज ने परास्त किया और चालुक्य राज्य को रौंद डाला। लेकिन सोमेश्वर प्रथम ने इस अपमान का बदला ने केवल चोल नरेश राजधिराज को कोप्पम के युद्ध में करारी हार देकर ले लिया वरन् इस युद्ध में उसने राजाधिराज का वंध कर दिया।

ग्रन्थ

सातवें नरेश विक्रमादित्य षष्ठ ने, जो विक्रम के नाम से भी विख्यात है, कांची पर अधिकार कर लिया और प्रसिद्ध कवि विल्हण को संरक्षत्व प्रदान किया। विल्हण ने विक्रमादित्य के जीवन पर 'विक्रमांक-चरित' नामक सुविख्यात ग्रंथ लिखा है। याज्ञवल्क्यस्मृति की 'मिताक्षरा' व्याख्या के लेखक प्रसिद्ध विधिवेत्ता विज्ञानेश्वर चालुक्यों की राजधानी कल्याणी में ही रहते थे। बंगाल को छोड़कर शेष भारत में 'मिताक्षरों' को हिन्दू क़ानून का सबसे अधिकारिक ग्रंथ माना जाता है।

पतन

विक्रमादित्य षष्ठ की मृत्यु के बाद से कल्याणी के चालुक्यों की शक्ति का पतन शुरू हो गया। ग्यारहवें राजा तैलप तृतीय के शासन काल में चालुक्य राज्य का अधिकांश भाग उसके प्रधान सेनापति बिज्जल कलचूरि ने हड़प लिया। चालुक्य राज्य शनै-शनै इतना कमज़ोर हो गया कि 21वीं शती में बारहवें राजा सोमेश्वर चतुर्थ का शासन समाप्त होने तक उसके राज्य का पश्चिमी भाग तो देवगिरि के यादवों ने छीन लिया और दक्षिणी भाग द्वारसमुद्र के होयसलों के नियंत्रण में आ गया। वातापी और कल्याणी चालुक्य नरेशों ने स्वयं कट्टर हिन्दू होने पर भी बौद्ध और जैन धर्म को प्रश्रय दिया। इनके शासन काल में यज्ञ-प्रधान हिन्दू धर्म पर विशेष बल दिया गया। चालुक्य राजाओं ने हिन्दू देवताओं के अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया।