विवाह संस्कार: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('स्नातकोत्तर जीवन विवाह का समय होता है, अर्थात् विद्...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
स्नातकोत्तर जीवन विवाह का समय होता है, अर्थात् विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है। यह संस्कार पितृ-ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है। मनुष्य जन्म से ही तीन ऋणों से बनकर जन्म लेता है। देव-ऋण, ऋषि ऋण और पितृ | *<u>[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]]में विवाह संस्कार त्रयोदश संस्कार है।</u> | ||
*स्नातकोत्तर जीवन, विवाह का समय होता है, अर्थात् विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है। | |||
*यह संस्कार पितृ-ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है। | |||
*मनुष्य जन्म से ही तीन ऋणों से बनकर जन्म लेता है। देव-ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। | |||
*इनमें से अग्रिहोत्र अर्थात यज्ञादिक कार्यों से देव-ऋण। | |||
*वेदादिक शास्त्रों के अध्ययन से ऋषि-ऋण। | |||
*विवाहित पत्नी से पुत्रोत्पत्ति आदि के द्वारा पितृ-ऋण से उऋण हुआ जाता है। | |||
==सम्बंधित लिंक== | |||
{{हिन्दू धर्म संस्कार}} | |||
__INDEX__[[Category:हिन्दू_संस्कार]] | |||
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]] |
Revision as of 13:31, 29 May 2010
- हिन्दू धर्म संस्कारोंमें विवाह संस्कार त्रयोदश संस्कार है।
- स्नातकोत्तर जीवन, विवाह का समय होता है, अर्थात् विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है।
- यह संस्कार पितृ-ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है।
- मनुष्य जन्म से ही तीन ऋणों से बनकर जन्म लेता है। देव-ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण।
- इनमें से अग्रिहोत्र अर्थात यज्ञादिक कार्यों से देव-ऋण।
- वेदादिक शास्त्रों के अध्ययन से ऋषि-ऋण।
- विवाहित पत्नी से पुत्रोत्पत्ति आदि के द्वारा पितृ-ऋण से उऋण हुआ जाता है।