मरुस्थलीय मिट्टी: Difference between revisions

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Latest revision as of 08:41, 26 May 2012

मरुस्थलीय मिट्टी कम वर्षा वलो शुष्क क्षेत्रों में मिलती है। यह मिट्टी मुख्य रूप से मरुस्थलीय मैदानों में पाई जाती है। इस मिट्टी में सामान्यत: ह्यूमस का अभाव होता है। इस प्रकार की मिट्टी में मोटे अनाजों की कृषि की जाती है। मोटे अनाजों में प्राय: ज्वार, बाजरा, रागी तथा तिलहन आदि पैदा किया जाता है।

भौगोलिक विस्तार

इस मिट्टी का भौगोलिक विस्तार 1.42 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में पाया जाता है। इसका विस्तार पश्चिमी राजस्थान, गुजरात, दक्षिणी पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भू-भागों पर है। यह वास्तव में बलुई मिट्टी है जिसमें लोहा एवं फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में पाया जाताहै। इसके कण मोटे होते हैं। इसमें खनिज नमक की मात्रा अधिक मिलती है किन्तु ये जल में शीघ्रता से घुल जाते हैं। इसमें आर्द्रता तथा जीवाशों की मात्रा कम पायी जाती है। जल की प्राप्ति हो जाने पर यह मिट्टी उपजाऊ हो जाती है तथा इसमें सिंचाई द्वारा गेहूँ, कपास, ज्वार-बाजरा एवं अन्य मोटे अनाजों की खेती की जाती है। सिंचाई की सुविधा के अभाव वाले क्षेत्रों में इस मिट्टी में कृषि कार्य नहीं किया जा सकता है।

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