स्वराज्य पार्टी: Difference between revisions

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==पार्टी की स्थापना==
==पार्टी की स्थापना==
[[गाँधी जी]] के ढुलमुल तरीकों से दु:खी होकर 1923 ई. में चितरंजन दास एवं मोतीलाल नेहरू ने सुझाव दिया कि विधान परिषदों का बहिष्कार करने के बदले में उनमें प्रवेश कर असहयोग चलाया जाय। इस सुझाव को [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]], [[राजेन्द्र प्रसाद]], अंसारी, वल्लभभाई पटेल जैसे कट्टर गाँधीवादियों ने नहीं माना। अतः उन्हें 'अपरिवर्तनवादी' कहा गया। विधान परिषदों में हिस्सा लेने के समर्थकों को 'परिवर्तनवादी' कहा गया, जिसमें चितरंजनदास तथा मोतीलाल नेहरू थे। अपरिवर्तनवादी लोगों के गुट का नेतृत्व सी.राजगोपालचारी कर रहे थे। [[गया]] मे आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में अपने गुट की हार स्वीकार करते हुए चितरंजन दास ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद और मोतीलाल नेहरू ने महामंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया। 1 जनवरी, 1923 ई. को परिवर्तनवादियों का नेतृत्व करते हुए चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने विट्ठलभाई पटेल, मदन मोहन मालवीय और जयकर के साथ मिलकर इलाहाबाद में कांग्रेस के खिलाफ 'स्वराज्य पार्टी' की स्थापना की।
[[गाँधी जी]] के ढुलमुल तरीकों से दु:खी होकर 1923 ई. में चितरंजन दास एवं मोतीलाल नेहरू ने सुझाव दिया कि विधान परिषदों का बहिष्कार करने के बदले में उनमें प्रवेश कर असहयोग चलाया जाय। इस सुझाव को [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]], [[राजेन्द्र प्रसाद]], अंसारी, वल्लभभाई पटेल जैसे कट्टर गाँधीवादियों ने नहीं माना। अतः उन्हें 'अपरिवर्तनवादी' कहा गया। विधान परिषदों में हिस्सा लेने के समर्थकों को 'परिवर्तनवादी' कहा गया, जिसमें चितरंजनदास तथा मोतीलाल नेहरू थे। अपरिवर्तनवादी लोगों के गुट का नेतृत्व सी.राजगोपालचारी कर रहे थे। [[गया]] मे आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में अपने गुट की हार स्वीकार करते हुए चितरंजन दास ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद और मोतीलाल नेहरू ने महामंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया। 1 जनवरी, 1923 ई. को परिवर्तनवादियों का नेतृत्व करते हुए चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने विट्ठलभाई पटेल, मदन मोहन मालवीय और जयकर के साथ मिलकर इलाहाबाद में कांग्रेस के ख़िलाफ़ 'स्वराज्य पार्टी' की स्थापना की।
====उद्देश्य====
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स्वराज्य पार्टी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-
स्वराज्य पार्टी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

Revision as of 09:32, 3 June 2012

स्वराज्य पार्टी की स्थापना 1 जनवरी, 1923 ई. में परिवर्तनवादियों का नेतृत्व करते हुए चितरंजन दास और पंडित मोतीलाल नेहरू ने विट्ठलभाई पटेल, मदन मोहन मालवीय और जयकर के साथ मिलकर इलाहाबाद में की। इस पार्टी की स्थापना कांग्रेस के ख़िलाफ़ की गई थी। इसके अध्यक्ष चितरंजन दास तथा सचिव मोतीलाल नेहरू बनाये गए थे।

पार्टी की स्थापना

गाँधी जी के ढुलमुल तरीकों से दु:खी होकर 1923 ई. में चितरंजन दास एवं मोतीलाल नेहरू ने सुझाव दिया कि विधान परिषदों का बहिष्कार करने के बदले में उनमें प्रवेश कर असहयोग चलाया जाय। इस सुझाव को चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, राजेन्द्र प्रसाद, अंसारी, वल्लभभाई पटेल जैसे कट्टर गाँधीवादियों ने नहीं माना। अतः उन्हें 'अपरिवर्तनवादी' कहा गया। विधान परिषदों में हिस्सा लेने के समर्थकों को 'परिवर्तनवादी' कहा गया, जिसमें चितरंजनदास तथा मोतीलाल नेहरू थे। अपरिवर्तनवादी लोगों के गुट का नेतृत्व सी.राजगोपालचारी कर रहे थे। गया मे आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में अपने गुट की हार स्वीकार करते हुए चितरंजन दास ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद और मोतीलाल नेहरू ने महामंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया। 1 जनवरी, 1923 ई. को परिवर्तनवादियों का नेतृत्व करते हुए चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने विट्ठलभाई पटेल, मदन मोहन मालवीय और जयकर के साथ मिलकर इलाहाबाद में कांग्रेस के ख़िलाफ़ 'स्वराज्य पार्टी' की स्थापना की।

उद्देश्य

स्वराज्य पार्टी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  1. शीघ्र-अतिशीघ्र डोमिनियन स्टेट्स प्राप्त करना
  2. पूर्ण प्रान्तीय स्वयत्तता करना
  3. सरकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न करना।

स्वराज्यवादियों ने विधान मण्डलों के चुनाव लड़ने व विधानमण्डलों में पहुँचकर सरकार की आलोचना करने की रणनीति बनाई। स्वराज्यवादियों को विश्वास था कि वे शांतिपूर्ण उपायों से चुनाव में भाग लेकर अपने अधिक से अधिक सदस्यों को कौंसिल में भेजकर उस पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेंगें।

सफलता

1923 ई. के चुनावों में 'स्वराज्य पार्टी' को मध्य प्रांत में पूर्ण बहुमत, बंगाल, उत्तर प्रदेश, बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में प्रधानता व केंद्रीय विधानमण्डल में 101 में से 42 स्थान प्राप्त हुए। फलस्वरूप यह पार्टी संघीय केंद्रीय मंत्रीपरिषद में विट्ठलभाई पटेल को अध्यक्ष के पद पर निर्वाचित करवाने में सफल रही।

सरकारी अधिनियम का विरोध

1924 से 1926 ई. के मध्य स्वराज्य पार्टी ने बजट को अस्वीकृत कर सरकारी अधिनियम का विरोध किया। 1924 ई. 'ली कमीशन', जिसकी स्थापना सरकारी नौकरियों में जातीय उच्चता को बनाये रखने के लिए की गई थी, स्वराज्यवादियों ने स्वीकृत नहीं होने दिया। इसी तरह स्वराज्यवादियों ने 'मुडिमैन कमेटी', जिसकी स्थापना द्वैध शासन संबंधी विवादों के लिए की गई थी, का भी समर्थन नहीं किया।

अन्त

1925 ई. में चितरंजन दास की मृत्यु से स्वराज्य पार्टी को बड़ा धक्का लगा। इसके परिणामस्वरूप 1926 ई. के चुनावों में पार्टी को आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली। इसका नतीजा यह हुआ कि 1926 ई. के अंत तक स्वराज्य पार्टी का भी अंत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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