थार मरुस्थल: Difference between revisions

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Revision as of 06:11, 14 July 2012

[[चित्र:Thar desert.jpg|thumb|300px|थार मरुस्थल, राजस्थान]] थार मरुस्थल राजपूताना और सिन्धु नदी की घाटी के निचले भाग के मध्य में फैला हुआ है। इस मरुस्थल में एक बूँद जल नहीं मिलता और इसे केवल कारवाँ के द्वारा ही पार किया जा सकता है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा भी बनाता है। यह सिंध को दक्षिण और उत्तरी पश्चिमी भारत से पृथक करता है। अरबों ने जब 710 ई. में सिंध विजय की, तो इस मरुस्थल के कारण वे अपने राज्य का विस्तार सिंध से आगे नहीं कर सके। इस मरुस्थल ने कुछ समय तक अंग्रेज़ों को भी सिंध पर अपना आधिपत्य जमाने से रोके रखा। अंग्रेज़ सिंध पर दाँत इसीलिए गड़ाये थे, क्योंकि यह अफ़ग़ानिस्तान और पंजाब का प्रवेशद्वार था। अंग्रेज़ों के द्वारा सिंध के अधिग्रहण के बाद यह मरुस्थल भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बन गया।[1]

क्षेत्रफल में वृद्धि

थार मरुस्थल हर साल आधा किलोमीटर की रफ्तार से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रहा है। आने वाले वक़्त में यह भारत के भू-उपयोग का नक्शा ही बदल देगा। 'इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन' (इसरो) की ताजा रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि, कल तक राजस्थान की पहचान रहे थार मरुस्थल ने अब हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश तक अपने पाँव पसार लिए हैं। रेतीली मिट्टी के फैलाव के अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी मृदा का ह्रास इस हद तक बढ़ गया है कि, कृषि और वानिकी पर आजीविका चला रहे साठ प्रतिशत लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने की आशंका पैदा हो गई है। इसरो ने पहली बार देश की भू-संपदा के ह्रास का नक्शा तैयार किया है। इसके लिए भारतीय उपग्रह आई.आर.एस.पी.सी.-1 रिसोर्ससेट पर स्थापित 'एडवांस्ड वाइड फ़ील्ड सेंसर' से समय-समय पर ली गई उपग्रह तस्वीर का गहन विश्लेषण किया गया। विश्लेषण के आधार पर तैयार नक्शे से संकेत मिलते हैं कि, पूवी घाट, पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी हिमालय सतह से नीचे जा रहे हैं।[2]

भविष्य के लिए ख़तरा

सबसे ज़्यादा चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया है कि, देश के 32 प्रतिशत भू-भाग का बुरी तरह ह्रास हो चुका है। इसमें से सर्वाधिक 24 प्रतिशत मरुस्थली क्षेत्र है। राजस्थान राज्य तो ज़बर्दस्त मरुस्थलीकरण की चपेट में है। राष्ट्रीय मृदा सर्वे और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो का कहना है कि थार मरुस्थल के फैलाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, 1996 तक 1 लाख, 96 हज़ार 150 वर्ग किमी. में फैले मरुस्थल का विस्तार अब 2 लाख, 8 हज़ार 110 किमी. तक हो चुका है। अरावली पर्वत शृंखलाओं की प्राकृतिक संपदा को भी नुकसान पहुंचने से भूमि ज़्यादा बंजर हुई है। यहाँ लोगों ने जलावन और ज़रूरतों की पूर्ति के लिए जंगलों पर कुल्हाड़ी चलाई है। [[चित्र:Thar-Desert.jpg|thumb|300px|थार मरुस्थल, राजस्थान]] गंगा के मैदानी क्षेत्रों, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा गुजरात के तटीय क्षेत्रों में भी लवणीयता बेतहाशा बढऩे से उत्पादकता कम होने की आशंका जताई गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह वानिकी ह्रास तथा मरुस्थल का विस्तार हो रहा है, उससे आने वाले सालों में देश के भू-उपयोग का नक्शा बदलने से इंकार नहीं किया जा सकता। इस समय देश की 9.47 मिलियन हैक्टेयर भूमि बंजर हो चुकी है। बारिश में हर साल कमी और अकाल की विभीषिका से चोली-दामन का साथ होने के कारण भी भविष्य में स्थितियाँ बिगडऩे की आशंकाएँ हैं।[2]

हिमालय के ग्लेशियरों को नुकसान

थार मरुस्थल से उठने वाले बवंडर हिमालय के हिमनद को पानी-पानी कर रहे हैं। अब तक हिमनद पिघलने के लिए 'ग्लोबल वार्मिंग' को ही ज़िम्मेदार ठहरा रहे वैज्ञानिकों ने कहा है कि, थार से उठने वाले अंधड़ के धूल कण बर्फ़ को पानी बनाने के सबब बने हुए हैं। दरअसल, यूरोपियन और अमेरिकन रिसर्च के बाद हिमनद पिघलने के कारणों का पता लगा रहे भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे एक प्रमुख कारक माना है। उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर पता लगता है कि, अरब प्रायद्वीप के अनेक हिस्सों के साथ-साथ थार मरुस्थल से तेज़ तूफ़ानी हवा के साथ उडऩे वाले धूल के कण हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड से लगते हिमालय से टकरा रहे हैं। कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के डॉ. रमेश सिंह ने आई.आई.टी. कानपुर में रिसर्च के दौरान पाया कि, जिस जगह से बर्फ़ के पिघलने की रफ्तार तेज़ है, वहाँ बर्फ़ में रेतीली मिट्टी के कण पाए गए हैं। इन कणों के साथ बर्फ़ में लोहे या अन्य खनिज मिलते रहते हैं। बर्फ़ की संरचना में यह मिश्रण सौर विकिरणों का सर्वाधिक अवशोषण करता है। नतीजतन, बर्फ़ पिघलने लगती है।

प्री-मानसून सीजन में उठने वाले अंधड़ से उत्तर-पश्चिम का हिमालय ज़्यादा प्रभावित होता है। हालांकि अब तक वैज्ञानिक सर्दियों में होने वाले हिमपात के दौरान अंधड़ के असर का अध्ययन नहीं कर पाए हैं, क्योंकि इस दौरान के 'ग्राउंड मैट्रोलोजिकल डेटा' का विश्लेषण नहीं हो पाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके अलावा पिछले तीस सालों में गंगा के मैदानी इलाकों के साथ-साथ उत्तरी भाग में बायोमास से निकली कालिख भी हिमालय को प्रदूषित करने के अलावा ग्लेशियर पिघलने का कारण बनी हुई है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 194।
  2. 2.0 2.1 2.2 बोथरा, दिनेश। देश के भूगोल को बदल देगा थार (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 28 जून, 2011।

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