ऋग्वैदिक कालीन नदियाँ: Difference between revisions
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[[ऋग्वेद]] में 25 नदियों का उल्लेख है, जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण नदी [[सिन्धु नदी]] है, जिसका वर्णन कई बार आया है। यह सप्त सैन्धव क्षेत्र की पश्चिमी सीमा थी। क्रुमु ( | [[ऋग्वेद]] में 25 नदियों का उल्लेख है, जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण नदी [[सिन्धु नदी]] है, जिसका वर्णन कई बार आया है। यह सप्त सैन्धव क्षेत्र की पश्चिमी सीमा थी। [[क्रुमु नदी|क्रुमु]] (कुरुम),गोमती (गोमल), [[कुभा]] ([[काबुल नदी|काबुल]]) और सुवास्तु (स्वात) नामक नदियां पश्चिम किनारे में सिन्धु की सहायक नदी थीं। पूर्वी किनारे पर सिन्धु की सहायक नदियों में वितास्ता (झेलम) आस्किनी (चेनाब), परुष्णी (रावी), शतुद्र (सतलज), विपासा (व्यास) प्रमुख थी। विपास (व्यास) नदी के तट पर ही [[इन्द्र]] ने उषा को पराजित किया और उसके रथ को टुकड़े-टुकड़े कर दिया। सिन्धु नदी को उसके आर्थिक महत्व के कारण हिरण्यनी कहा गया है। सिन्धु नदी द्वार ऊनी वस्त्रों के व्यवसाय होने का कारण इसे सुवासा और ऊर्पावर्ती भी कहा गया है। ऋग्वेद में सिन्धु नदी की चर्चा सर्वाधिक बार हुयी है। | ||
# [[सरस्वती नदी|सरस्वती]]- ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदियों की अग्रवती, नदियों की माता, वाणी, प्रार्थना एवं कविता की देवी, बुद्धि को तीव्र करने वाली और संगीत प्रेरणादायी कहा गया है। सरस्वती ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी मानी जाती थी। इसे नदीतमा (नदियों की माता) कहा गया। सरस्वती जो अब [[राजस्थान]] की रेगिस्तान में विलीन हो गई है। इसकी जगह अब [[घग्घर नदी]] बहती है। | # [[सरस्वती नदी|सरस्वती]]- ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदियों की अग्रवती, नदियों की माता, वाणी, प्रार्थना एवं कविता की देवी, बुद्धि को तीव्र करने वाली और संगीत प्रेरणादायी कहा गया है। सरस्वती ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी मानी जाती थी। इसे नदीतमा (नदियों की माता) कहा गया। सरस्वती जो अब [[राजस्थान]] की रेगिस्तान में विलीन हो गई है। इसकी जगह अब [[घग्घर नदी]] बहती है। |
Revision as of 08:44, 22 October 2012
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
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क्रुभु | कुर्रम |
कुभा | काबुल |
वितस्ता | झेलम |
आस्किनी | चिनाव |
पुरुष्णी | रावी |
शतद्रि | सतलज |
विपाशा | व्यास |
सदानीरा | गंडक |
दृषद्वती | घग्घर |
गोमती | गोमल |
सुवास्तु | स्वात |
सिंधु | सिन्ध |
सरस्वती / दृशद्वर्ती | घघ्घर / रक्षी / चित्तग |
सुषोमा | सोहन |
मरुद्वृधा | मरुवर्मन |
ऋग्वेद में 25 नदियों का उल्लेख है, जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण नदी सिन्धु नदी है, जिसका वर्णन कई बार आया है। यह सप्त सैन्धव क्षेत्र की पश्चिमी सीमा थी। क्रुमु (कुरुम),गोमती (गोमल), कुभा (काबुल) और सुवास्तु (स्वात) नामक नदियां पश्चिम किनारे में सिन्धु की सहायक नदी थीं। पूर्वी किनारे पर सिन्धु की सहायक नदियों में वितास्ता (झेलम) आस्किनी (चेनाब), परुष्णी (रावी), शतुद्र (सतलज), विपासा (व्यास) प्रमुख थी। विपास (व्यास) नदी के तट पर ही इन्द्र ने उषा को पराजित किया और उसके रथ को टुकड़े-टुकड़े कर दिया। सिन्धु नदी को उसके आर्थिक महत्व के कारण हिरण्यनी कहा गया है। सिन्धु नदी द्वार ऊनी वस्त्रों के व्यवसाय होने का कारण इसे सुवासा और ऊर्पावर्ती भी कहा गया है। ऋग्वेद में सिन्धु नदी की चर्चा सर्वाधिक बार हुयी है।
- सरस्वती- ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदियों की अग्रवती, नदियों की माता, वाणी, प्रार्थना एवं कविता की देवी, बुद्धि को तीव्र करने वाली और संगीत प्रेरणादायी कहा गया है। सरस्वती ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी मानी जाती थी। इसे नदीतमा (नदियों की माता) कहा गया। सरस्वती जो अब राजस्थान की रेगिस्तान में विलीन हो गई है। इसकी जगह अब घग्घर नदी बहती है।
- दृषद्वती (आधुनिक चितंग अथवा घग्घर) यह सिन्धु समूल की नदी नहीं थी।
- आपया- यह दृषद्वती एवं सरस्वती नदी के बीच में बहती थी।
- सरयू- यह गंगा की सहायक नदी थी। ऋग्वेद के अनुसार संभवतः यदु एवं तुर्वस के द्वारा चित्ररथ और अर्ण सरयू नदी के किनारे ही पराजित किए गए थे।
- यमुना- ऋग्वेद में यमुना की चर्चा तीन बार की गयी हैं।
- गंगा- गंगा का उल्लेख ऋग्वेद में एक ही बार हुआ है। नदी सूक्त की अन्तिम नदी गोमती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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