बुंदेलखंड मौर्यकाल: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('वर्तमान खोजों तथा प्राचीन कलाओं के आधार पर कहा जाता ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 13: | Line 13: | ||
कारयिष्यीत वै राज्यं षट् त्रिशंति समानृप:।।(मत्स्य पुराण )</blockquote> | कारयिष्यीत वै राज्यं षट् त्रिशंति समानृप:।।(मत्स्य पुराण )</blockquote> | ||
शुङ्ग वंश भार्गव च्वयन के वंशाधर शुनक के पुत्र शोनक से उद्भूल है। इन्होंने ३६ वर्षों तक इस क्षेत्र में राज्य किया। इस प्रदेश पर गर्दभिल्ला और नागों का अधिकार हुआ। [[भागवत पुराण]] और [[ | शुङ्ग वंश भार्गव च्वयन के वंशाधर शुनक के पुत्र शोनक से उद्भूल है। इन्होंने ३६ वर्षों तक इस क्षेत्र में राज्य किया। इस प्रदेश पर गर्दभिल्ला और नागों का अधिकार हुआ। [[भागवत पुराण]] और [[वायु पुराण]] में किलीकला क्षेत्र का वर्णन आया है। किलीकला क्षेत्र और राज्य विन्ध्यप्रदेश ([[नागौद]]) था। नागों द्वारा स्थापित शिवाल्यों के अवशेष [[भ्रमरा]] (नागौद) [[बैजनाथ]] ([[रीवा]] के पास) [[कुहरा]] ([[अजयगढ़]]) में अब भी मिलते हैं। नागों के प्रसिद्ध राजा छानाग, त्रयनाग, वहिनाग, चखनाग और भवनाग प्रमुख नाग शासक थे। भवनाग के उत्तराधिकारी [[वाकाटक]] माने गए हैं। | ||
[[बुंदेलखंड का इतिहास|बुंदेलखंड के इतिहास]] में, पुराणकाल में बुंदेलखंड का एक विशेष महत्व था, मौर्य के समय में तथा उनके बाद भी यह प्रदेश अपनी गरिमा बनाए हुए था तथा इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य हुए। | [[बुंदेलखंड का इतिहास|बुंदेलखंड के इतिहास]] में, पुराणकाल में बुंदेलखंड का एक विशेष महत्व था, मौर्य के समय में तथा उनके बाद भी यह प्रदेश अपनी गरिमा बनाए हुए था तथा इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य हुए। |
Revision as of 05:46, 3 June 2010
वर्तमान खोजों तथा प्राचीन कलाओं के आधार पर कहा जाता है कि प्राचीन चेदि जनपद बाद में पुलिन्द देश के साथ मिल गया था । एरन की परातात्विक ख़ोजों और उत्खननों से सबसे प्राचीन साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। ये साक्ष्य ३०० ई० पू० के माने गए हैं। इस समय एरन का शासक धर्मपाल था जिसके संबंध में मिले सिक्कों पर "एरिकिण" मुद्रित है। एरन त्रिपुरी और उज्जयिनी के समान एक गणतंत्र था । सारा बुंदेलखंड मौर्यशासन के आते ही (जिनमें एरन भी था) उसमे विलीयत हुआ। मौर्य शासन के १३० वर्षों का साक्ष्य मत्स्य पुराण और विष्णु पुराण में है-
उद्धरिष्यति कौटिल्य सभा द्वादशीम, सुतान्।
मुक्त्वा महीं वर्ष शलो मौर्यान गमिष्यति।।
इत्येते दंश मौर्यास्तु ये मोक्ष्यनिंत वसुन्धराम्।
सप्त त्रींशच्छतं पूर्ण तेभ्य: शुभ्ङाग गमिष्यति।
राजा अशोक जो मौर्य वंश का तीसरा शासक था, उसने बुंदेलखंड में अनेक जगहों पर विहारों, मठों आदि का निर्माण कराया था । अशोक के समय का सबसे बड़ा विहार वर्तमान गुर्गी (गोलकी मठ) था। अशोक का शासन बुंदेलखंड के दक्षिणी भाग पर था परवर्ती मौर्यशासक दुर्बल थे और कई अनेक कारणों की वजह से वह अपने राज्य की रक्षा करने मे समर्थ न रहे। इस प्रदेश पर शुङ्ग वंश का कब्ज़ा हुआ जिसे विष्णु पुराण तथा मत्स्य पुराण में इस प्रकार दिया है -
तेषामन्ते पृथिवीं दस शुङ्गमोक्ष्यन्ति । पुण्यमित्रस्सेना पतिस्स्वामिनं हत्वा राज्यं करिष्यति ।।(विष्णुपुराण)
तुभ्य: शुङ्गमिश्यति।
पुष्यमिन्नस्तु सेनानी रुद्रधृत्य स वृहदथाल
कारयिष्यीत वै राज्यं षट् त्रिशंति समानृप:।।(मत्स्य पुराण )
शुङ्ग वंश भार्गव च्वयन के वंशाधर शुनक के पुत्र शोनक से उद्भूल है। इन्होंने ३६ वर्षों तक इस क्षेत्र में राज्य किया। इस प्रदेश पर गर्दभिल्ला और नागों का अधिकार हुआ। भागवत पुराण और वायु पुराण में किलीकला क्षेत्र का वर्णन आया है। किलीकला क्षेत्र और राज्य विन्ध्यप्रदेश (नागौद) था। नागों द्वारा स्थापित शिवाल्यों के अवशेष भ्रमरा (नागौद) बैजनाथ (रीवा के पास) कुहरा (अजयगढ़) में अब भी मिलते हैं। नागों के प्रसिद्ध राजा छानाग, त्रयनाग, वहिनाग, चखनाग और भवनाग प्रमुख नाग शासक थे। भवनाग के उत्तराधिकारी वाकाटक माने गए हैं। बुंदेलखंड के इतिहास में, पुराणकाल में बुंदेलखंड का एक विशेष महत्व था, मौर्य के समय में तथा उनके बाद भी यह प्रदेश अपनी गरिमा बनाए हुए था तथा इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य हुए।