हरीश हांडे: Difference between revisions
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हरीश कहते हैं, "समाज में भ्रम है कि ग़रीब सर्वोत्तम तकनीक को बनाये रखना में असर्मथ होते हैं और इसकी उत्पादकता का प्रयोग नहीं कर पाते। जबकि सच यह है कि वे बेहद व्यावहारिक होते हैं। दु:ख की बात यह है कि उन्हें लाभ या फायदे के प्राप्तकर्ता के रूप में देखा जाता है, साझेदार के रूप में नहीं।" एक घटना का उल्लेख करते हुए हांडे बताते हैं, "मैं दक्षिणी कर्नाटक के गांवों में भ्रमण कर रहा था। तभी एक 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला मेरे पैर छूकर कहने लगीं कि वे मरने से पहले अपने घर में बिजली देखना चाहती हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वे इसके बदले शुल्क देने को तैयार हैं। मैं समझ नहीं पाया कि उनकी इस बात पर कैसे प्रतिक्रिया दूं। उनकी बात दिल को छू गई।" तब से आज तक हांडे ने [[कर्नाटक]] के ग्रामीण इलाकों में | हरीश कहते हैं, "समाज में भ्रम है कि ग़रीब सर्वोत्तम तकनीक को बनाये रखना में असर्मथ होते हैं और इसकी उत्पादकता का प्रयोग नहीं कर पाते। जबकि सच यह है कि वे बेहद व्यावहारिक होते हैं। दु:ख की बात यह है कि उन्हें लाभ या फायदे के प्राप्तकर्ता के रूप में देखा जाता है, साझेदार के रूप में नहीं।" एक घटना का उल्लेख करते हुए हांडे बताते हैं, "मैं दक्षिणी कर्नाटक के गांवों में भ्रमण कर रहा था। तभी एक 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला मेरे पैर छूकर कहने लगीं कि वे मरने से पहले अपने घर में बिजली देखना चाहती हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वे इसके बदले शुल्क देने को तैयार हैं। मैं समझ नहीं पाया कि उनकी इस बात पर कैसे प्रतिक्रिया दूं। उनकी बात दिल को छू गई।" तब से आज तक हांडे ने [[कर्नाटक]] के ग्रामीण इलाकों में क़रीब 1,25,000 [[परिवार|परिवारों]] तक बिजली पहुंचा दी। हांडे की कम्पनी सेल्को का लक्ष्य वे परिवार होते हैं, जो 2-3 हजार रूपए [[मास|महीना]] कमाते हैं और केरोसीन व मोमबत्तियों पर क़रीब 100-150 रूपए खर्च कर देते हैं और लगभग 40 रूपए मोबाइल फोन की चार्जिग पर लगा देते हैं। ऐसे परिवारों को सोलर लाइटिंग की सुविधा दी जाती है, जिसका शुल्क वे किश्तों में ग्रामीण बैंकों में जमा कर देते हैं।<ref name="patrika">{{cite web |url=http://www.patrika.com/print/emailarticle.aspx?id=29585 |title=गरीबों के घर रोशन करने का पैशन |accessmonthday=26 अक्टूबर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी|publisher=पत्रिका डॉट कॉम |language=हिन्दी}}</ref> | ||
==भ्रमण ने बदली सोच== | ==भ्रमण ने बदली सोच== |
Revision as of 14:15, 24 November 2012
thumb|हरीश हांडे|250px हरीश हांडे (अंग्रेज़ी: Harish Hande) एक सामाजिक कार्यकर्ता है जिन्होंने ग्रामीण ग़रीबों की ज़िन्दगी रोशन की। हरीश का यह काम दुनिया भर में सराहा गया। उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया। मनीला में यह पुरस्कार, उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों के घर तक सौर ऊर्जा पहुंचाने के लिए दिया गया। हरीश मानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए उनकी जरूरत को समझना पड़ेगा, तभी सही मायनों में ग्रामीण भारत की तरक्की होगी। हरीश को 2005 और 2007 में स्विट्जरलैंड में श्वैब फाउंडेशन फॉर सोशल एंटरप्रेन्योरशिप प्राइज सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। हरीश हांडे बंगलौर में जन्मे और राउरकेला (उड़ीसा) में बड़े हुए। उनकी पत्नी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और बोस्टन में रहती हैं।
दिल को छू गई बुजुर्ग महिला की बात
हरीश कहते हैं, "समाज में भ्रम है कि ग़रीब सर्वोत्तम तकनीक को बनाये रखना में असर्मथ होते हैं और इसकी उत्पादकता का प्रयोग नहीं कर पाते। जबकि सच यह है कि वे बेहद व्यावहारिक होते हैं। दु:ख की बात यह है कि उन्हें लाभ या फायदे के प्राप्तकर्ता के रूप में देखा जाता है, साझेदार के रूप में नहीं।" एक घटना का उल्लेख करते हुए हांडे बताते हैं, "मैं दक्षिणी कर्नाटक के गांवों में भ्रमण कर रहा था। तभी एक 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला मेरे पैर छूकर कहने लगीं कि वे मरने से पहले अपने घर में बिजली देखना चाहती हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वे इसके बदले शुल्क देने को तैयार हैं। मैं समझ नहीं पाया कि उनकी इस बात पर कैसे प्रतिक्रिया दूं। उनकी बात दिल को छू गई।" तब से आज तक हांडे ने कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में क़रीब 1,25,000 परिवारों तक बिजली पहुंचा दी। हांडे की कम्पनी सेल्को का लक्ष्य वे परिवार होते हैं, जो 2-3 हजार रूपए महीना कमाते हैं और केरोसीन व मोमबत्तियों पर क़रीब 100-150 रूपए खर्च कर देते हैं और लगभग 40 रूपए मोबाइल फोन की चार्जिग पर लगा देते हैं। ऐसे परिवारों को सोलर लाइटिंग की सुविधा दी जाती है, जिसका शुल्क वे किश्तों में ग्रामीण बैंकों में जमा कर देते हैं।[1]
भ्रमण ने बदली सोच
हांडे आईआईटी, खड़गपुर से एनर्जी इंजीनियरिंग का अध्ययन कर चुके हैं। कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद वे अमरीका चले गए और वहां मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में मास्टर्स की डिग्री लेकर आए। एक अध्ययन भ्रमण के लिए वे कैरिबियन गए और वहां उन्होंने गरीबों के घर रोशन करने के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग होते देखा, तो उनकी सोच ही बदल गई। पहले वे भी सौर ऊर्जा को लेकर बड़े-बड़े प्लान बनाते थे, लेकिन फिर वे उन योजनाओं पर ध्यान देने लगे जिनसे समाज को फायदा मिल सके।[1]
सेल्को इंडिया की शुरूआत
भारत लौटने के बाद हरीश ने भारत और श्रीलंका का व्यापक दौरा किया और महसूस किया कि यहां मिले अनुभव पीएचडी और मास्टर्स से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। बस उन्होंने हजार रूपए की मामूली रकम से "सेल्को इंडिया" की शुरूआत कर दी। हरीश स्पष्ट कहते हैं, "मेरी कम्पनी कोई एनजीओ नहीं है। हमारा बिजनेस आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण तीनों मामलों में जिम्मेदारी से चलता है। हमारे लिए तीनों जरूरी हैं। हां, मोटा मुनाफा हमारा लक्ष्य नहीं।" बावजूद इसके उनकी कम्पनी का सालाना टर्नओवर 14.5 करोड़ रूपए तक पहुंच गया है। अपनी कम्पनी को वे "पैशन" मानते हैं। बंगलौर के जेपी नगर में उनकी कम्पनी सेल्को इंडिया का मुख्यालय है। अक्सर यहीं से वे अपने जन कल्याण कार्यो और योजनाओं को अंजाम देते हैं।[1]
दैनिक जरूरत के उत्पाद
हरीश हांडे ने सेल्को में "इनोवेशन लैब" खोली है, जिसका काम है ग्रामीण क्षेत्रों की जरूरतों को समझना और नए उत्पादों का आविष्कार करना। लैब में सौर ऊर्जा चालित हेडलैंप बनाए गए हैं जो प्रसव कराने के दौरान, फूल तोड़ने में, 'सिल्क वर्म' पालन में काम आते हैं। टीम ने ऐसी सिलाई मशीन भी बनाई है, जिसमें सौर ऊर्जा से रोशनी होती है, साथ ही ऐसे और भी उत्पाद तैयार किए हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 गरीबों के घर रोशन करने का पैशन (हिन्दी) (ए.एस.पी) पत्रिका डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 26 अक्टूबर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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