काका की चौपाल -काका हाथरसी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 4: | Line 4: | ||
|लेखक= | |लेखक= | ||
|कवि=[[काका हाथरसी]] | |कवि=[[काका हाथरसी]] | ||
|मूल_शीर्षक = | |मूल_शीर्षक ='काका की चौपाल' | ||
|मुख्य पात्र = | |मुख्य पात्र = | ||
|कथानक = | |कथानक = |
Revision as of 08:45, 13 June 2013
काका की चौपाल -काका हाथरसी
| |
कवि | काका हाथरसी |
मूल शीर्षक | 'काका की चौपाल' |
प्रकाशक | डायमंड पॉकेट बुक्स |
ISBN | 81-7182-754-3 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
शैली | हास्य |
विशेष | इस पुस्तक में समाज, राजनीति, कला, धर्म, संस्कृति और जीवन के अनेक पहलुओं पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कविता के रूप में दिए गए हैं। |
काका की चौपाल एक नए ढंग की पुस्तक है, जिसमें गोष्ठियाँ सम्मिलित हैं। इन गोष्ठियों में श्रोताओं द्वारा समाज, राजनीति, कला, धर्म, संस्कृति और जीवन के अनेक पहलुओं पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कविता के रूप में दिए गए हैं।
विषय वस्तु
हिन्दी के प्रसिद्ध हास्य कवि काका हाथरसी ने अपने जीवन काल में हास्य रस को भरपूर जिया था वे और हास्य रस आपस में इतने घुलमिल गए हैं कि हास्य रस कहते ही उनका चित्र सामने आ जाता है। उन्होंने कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, रेडियो और टी. वी. के माध्यम से हास्य-कविता और साथ ही हिन्दी के प्रसार में अविस्मरणीय योगदान दिया है। उन्होंने साधारण जनता के लिए सीधी और सरल भाषा में ऐसी रचनाएँ लिखीं, जिन्होंने देश और विदेश में बसे हुए करोड़ों हिन्दी-प्रेमियों के हृदय को छुआ। इस पुस्तक में गोष्ठियाँ सम्मिलित हैं। गोष्ठियों में श्रोताओं द्वारा राजनीति, समाज, कला, धर्म, जीवन और संस्कृति से सम्बन्धित अनेक पहलुओं पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कविता के रूप में दिए गए हैं।
लेखक के अनुसार
कभी-कभी ऐसे प्रश्न सामने आ जाते हैं कि जिनके उत्तर धीर-गंभीर शब्दों में दिए जाएँ तो कुतर्कियों के तर्क-वितर्कों द्वारा बेचारे उत्तर छिन्न-भिन्न होकर उत्तराखंड की ओर भागकर संन्यास ले लेते हैं। इसलिए हमने प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने के लिए हास्य-व्यंग्य का सहारा लिया। किसी ने प्रश्न किया, उत्तर कविता में दे दिया। जब बहुत से प्रश्नोत्तर इकट्ठे हो गए तो काका विचार सागर में खो गए। काकी से पूछा-क्या करें इस गट्ठर का? कहने लगीं-रक्खा रहने दो, रद्दी खरीदने वाला आएगा, उसे बेच दूँगी। हमने कहा-धन्य हो देवी, क्या मस्तिष्क पाया है तुमने। भारत सरकार को चाहिए कि तुमको ‘बचत योजना’ विभाग की मम्मी बना दे। अच्छा यह बताओ कि इस तथाकथिक रद्दी के जो आएँगे पैसे उनका उपयोग करोगी कैसे? ‘बच्चों के लिए टॉफी मँगाकर बाँट दूँगी।’
‘बहुत सुंदर विचार हैं। तुम्हारे हृदय में बच्चों के प्रति जो प्यार भावना है, वह तो नेहरूजी से भी अधिक है, उनको नेहरू चाचा के नाम से बच्चे याद करते हैं, तुम टॉफी वाली काकी के नाम से प्रसिद्धि पाओगी, अमर हो जाओगी। लो यह 10 रुपए का नोट, इसकी टॉफियाँ मँगाकर बाँट देना, मन में समझ लेना कि तुमने रद्दी बेच दी। जिसे तुम रद्दी समझ रही हो उसे हम अपनी कला द्वारा नोटों की गड्डी में बदल देंगे।’ वे चली गईं मुँह मटकाकर हम उठे एक झटका मारकर। सभी प्रश्नोत्तरों के काग़ज़ों को इकट्ठा किया, उनमें हास्य के कुछ और इंजेक्शन लगाए एवं अपनी 28 वीं पुस्तक ‘भोगा एंड योगा’ के बाद जो छोटी-बड़ी कविताएँ तैयार हुई थीं वे भी इसमें चिपकाई और सजा-धजाकर पांडुलिपि तैयार करके श्रीमतीजी को दिखाई, तो वे ऐसे मुसकाईं जैसे हरियाणा के चुनाव परिणाम देखकर चौधरी चरण सिंह और हिमाचल के परिणामों पर अटलजी प्रसन्न हुए थे।
'काका की चौपाल' पुस्तक में बहुत से ऐसे प्रश्नोत्तर हैं, जो कालांतर में ‘दीवाना’ में प्रकाशित हो चुके हैं और 'दीवाना' के पाठकों को दीवाना बना चुके हैं। इसके संपादक श्री विश्वबंधु जी ने भी कह दिया कि इनको पुस्तकाकार देकर छपा लीजिए और विश्व में फैला दीजिए। सबसे पहले तो अपनी भारत भूमि पर इनका प्रसारण कर रहे हैं। इसके बाद हमारी अन्य पुस्तकों की भाँति यह ‘काका की चौपाल’ भी रूस, अमेरिका, इंग्लैड, सिंगापुर, थाइलैंड, फिजी, अफ्रीका आदि देशों में पहुँचकर जन-गण का मनोरंजन करेगी, मानव जाति के संकट हरेगी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख