छिन्नमस्तिका मंदिर: Difference between revisions

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[[चित्र:Chinnamasta Temple.jpg|thumb|छिन्नमस्तिका मंदिर]]
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* [[झारखंड]] की राजधानी [[रांची]] से क़रीब 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माँ छिन्नमस्तिका मंदिर रजरप्पा में स्थित है।  
'''छिन्नमस्तिका मंदिर''' [[झारखंड]] की राजधानी [[रांची]] से क़रीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में स्थित है। यह [[भारत]] के सर्वाधिक प्राचीन मन्दिरों में से एक है। भैरवी-भेड़ा और [[दामोदर नदी]] के [[संगम]] पर स्थित मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिका के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है। [[असम]] स्थित [[कामाख्या मंदिर|माँ कामाख्या मंदिर]] के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा [[शक्तिपीठ]] है। यहाँ [[विवाह संस्कार|विवाह]] आदि भी सम्पन्न कराये जाते हैं।
* भैरवी-भेड़ा और [[दामोदर नदी]] के संगम पर स्थित मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है।  
==निर्माण==
* [[असम]] स्थित माँ [[कामाख्या मंदिर]] के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है। यहाँ शादियाँ भी कराई जाती हैं।  
इस मंदिर का निर्माण लगभग छः हज़ार [[वर्ष]] पहले हुआ था। मंदिर में आसपास प्राचीन ईंट, पौराणिक मूर्ति एवं यज्ञ कुंड एवं पौराणिक साक्ष्य थे, जो नष्ट हो गये थे या भूमिगत हो गये। छः हज़ार वर्ष पहले मंदिर में मां छिन्नमस्तिका की जो मूर्ति है, वह पूर्व काल में स्वतः अनूदित हुई थी। इस मंदिर का निर्माण [[वास्तुकला]] के हिसाब से किया गया है। इसके गोलाकार गुम्बद की शिल्प कला [[असम]] के 'कामाख्या मंदिर' के शिल्प से मिलती है। मंदिर में सिर्फ एक द्वार है।<ref>{{cite web |url= http://www.jharkhandnewsline.in/?p=24107|title= मां छिन्नमस्तिका का मंदिर|accessmonthday= 27 सितम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=झारखण्ड न्यूजलाइन|language= हिन्दी}}</ref>
* मंदिर के अन्दर शिलाखंड में माँ की तीन [[आँख|आँखें]] हैं। इनका गला सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है। खुले बाल, जिह्या बाहर, [[आभूषण|आभूषणों]] से सजी माँ नग्नावस्था में हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना कटा मस्तक है। इनके दोनों ओर [[डाकिनी]] और शाकिनी खड़ी हैं, जिन्हें वह रक्तपान कर रही हैं और स्वयं भी ऐसा कर रही हैं। इनके गले से रक्त की तीन धाराएं फूटती हैं।  
==माँ की प्रतिमा==
* मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। सामने बलि स्थान है, जहाँ रोजाना बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। यहाँ मुंडन कुंड भी है। यहाँ पापनाशिनी कुंड है, जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त करता है।  
मंदिर के अन्दर शिलाखंड में माँ की तीन [[आँख|आँखें]] हैं। इनका गला सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है। खुले बाल, जिह्या बाहर, [[आभूषण|आभूषणों]] से सजी माँ नग्नावस्था में हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना कटा मस्तक है। इनके दोनों ओर '[[डाकिनी]]' और 'शाकिनी' खड़ी हैं, जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी ऐसा कर रही हैं। इनके गले से [[रक्त]] की तीन धाराएं फूटती हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। सामने बलि स्थान है, जहाँ रोजाना बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। यहाँ मुंडन कुंड भी है। पापनाशिनी कुंड भी है, जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त करता है।
====पूजा====
मां छिन्नमस्तिका की प्रथम [[पूजा]] आरती, [[चावल]], गुड़, [[घी]] और कपूर से की जाती है। दोपहर में 12 बजे में [[खीर]] का भोग लगता है। भोग के समय मंदिर का द्वार कुछ समय के लिए बंद रहता है। संध्या काल में श्रृंगार के समय पूजा होती है। आरती के पश्चात्‌ मंदिर का द्वार बंद कर दिया जाता है। सिर्फ [[अमावस्या]] और [[पूर्णिमा]] को मध्य रात्रि तक मंदिर खुला रहता है।  


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Revision as of 11:18, 27 September 2014

thumb|छिन्नमस्तिका मंदिर छिन्नमस्तिका मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से क़रीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में स्थित है। यह भारत के सर्वाधिक प्राचीन मन्दिरों में से एक है। भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिका के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है। असम स्थित माँ कामाख्या मंदिर के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है। यहाँ विवाह आदि भी सम्पन्न कराये जाते हैं।

निर्माण

इस मंदिर का निर्माण लगभग छः हज़ार वर्ष पहले हुआ था। मंदिर में आसपास प्राचीन ईंट, पौराणिक मूर्ति एवं यज्ञ कुंड एवं पौराणिक साक्ष्य थे, जो नष्ट हो गये थे या भूमिगत हो गये। छः हज़ार वर्ष पहले मंदिर में मां छिन्नमस्तिका की जो मूर्ति है, वह पूर्व काल में स्वतः अनूदित हुई थी। इस मंदिर का निर्माण वास्तुकला के हिसाब से किया गया है। इसके गोलाकार गुम्बद की शिल्प कला असम के 'कामाख्या मंदिर' के शिल्प से मिलती है। मंदिर में सिर्फ एक द्वार है।[1]

माँ की प्रतिमा

मंदिर के अन्दर शिलाखंड में माँ की तीन आँखें हैं। इनका गला सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है। खुले बाल, जिह्या बाहर, आभूषणों से सजी माँ नग्नावस्था में हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना कटा मस्तक है। इनके दोनों ओर 'डाकिनी' और 'शाकिनी' खड़ी हैं, जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी ऐसा कर रही हैं। इनके गले से रक्त की तीन धाराएं फूटती हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। सामने बलि स्थान है, जहाँ रोजाना बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। यहाँ मुंडन कुंड भी है। पापनाशिनी कुंड भी है, जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त करता है।

पूजा

मां छिन्नमस्तिका की प्रथम पूजा आरती, चावल, गुड़, घी और कपूर से की जाती है। दोपहर में 12 बजे में खीर का भोग लगता है। भोग के समय मंदिर का द्वार कुछ समय के लिए बंद रहता है। संध्या काल में श्रृंगार के समय पूजा होती है। आरती के पश्चात्‌ मंदिर का द्वार बंद कर दिया जाता है। सिर्फ अमावस्या और पूर्णिमा को मध्य रात्रि तक मंदिर खुला रहता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मां छिन्नमस्तिका का मंदिर (हिन्दी) झारखण्ड न्यूजलाइन। अभिगमन तिथि: 27 सितम्बर, 2014।

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