प्रियप्रवास तृतीय सर्ग: Difference between revisions
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वह मनों कुछ निद्रित था हुआ। | वह मनों कुछ निद्रित था हुआ। | ||
गति हुई अथवा अति - धीर थी। | गति हुई अथवा अति - धीर थी। | ||
प्रकृति को सुप्रसुप्त विलोक | प्रकृति को सुप्रसुप्त विलोक के॥2॥ | ||
सकल – पादप नीरव थे खड़े। | सकल – पादप नीरव थे खड़े। | ||
हिल नहीं सकता यक पत्र था। | हिल नहीं सकता यक पत्र था। | ||
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रुदन की ध्वनि दूर समागता। | रुदन की ध्वनि दूर समागता। | ||
वह कभी बहु थी प्रतिघातता। | वह कभी बहु थी प्रतिघातता। | ||
जन – विवोधक – कर्कश – शब्द | जन – विवोधक – कर्कश – शब्द से॥12॥ | ||
कल प्रयाण निमित्त जहाँ – तहाँ। | कल प्रयाण निमित्त जहाँ – तहाँ। | ||
वहन जो करते बहु वस्तु थे। | वहन जो करते बहु वस्तु थे। | ||
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विकलता अति – कातरता - मयी। | विकलता अति – कातरता - मयी। | ||
विपुल थी परिवर्द्धित हो रही। | विपुल थी परिवर्द्धित हो रही। | ||
निपट – नीरव – नंद – निकेत | निपट – नीरव – नंद – निकेत में॥2०॥ | ||
सित हुए अपने मुख - लोम को। | सित हुए अपने मुख - लोम को। | ||
कर गहे दुखव्यंजक भाव से। | कर गहे दुखव्यंजक भाव से। | ||
विषम – संकट बीच पड़े हुए। | विषम – संकट बीच पड़े हुए। | ||
बिलखते चुपचाप ब्रजेश | बिलखते चुपचाप ब्रजेश थे॥21॥ | ||
हृदय – निर्गत वाष्प समूह से। | हृदय – निर्गत वाष्प समूह से। | ||
सजल थे युग - लोचन हो रहे। | सजल थे युग - लोचन हो रहे। | ||
बदन से उनके चुपचाप ही। | बदन से उनके चुपचाप ही। | ||
निकलती अति - तप्त उसास | निकलती अति - तप्त उसास थी॥22॥ | ||
शयित हो अति - चंचल - नेत्र से। | शयित हो अति - चंचल - नेत्र से। | ||
छत कभी वह थे अवलोकते। | छत कभी वह थे अवलोकते। | ||
टहलते फिरते स - विषाद थे। | टहलते फिरते स - विषाद थे। | ||
वह कभी निज निर्जन कक्ष | वह कभी निज निर्जन कक्ष में॥2३॥ | ||
जब कभी बढ़ती उर की व्यथा। | जब कभी बढ़ती उर की व्यथा। | ||
निकट जा करके तब द्वार के। | निकट जा करके तब द्वार के। | ||
वह रहे नभ नीरव देखते। | वह रहे नभ नीरव देखते। | ||
निशि - घटी अवधारण के | निशि - घटी अवधारण के लिए॥2४॥ | ||
सब - प्रबंध प्रभात - प्रयाण के। | सब - प्रबंध प्रभात - प्रयाण के। | ||
यदिच थे रव – वर्जित हो रहे। | यदिच थे रव – वर्जित हो रहे। | ||
तदपि रो पड़ती सहसा रहीं। | तदपि रो पड़ती सहसा रहीं। | ||
विविध - कार्य - रता | विविध - कार्य - रता गृहदासियाँ॥2५॥ | ||
जब कभी यह रोदन कान में। | जब कभी यह रोदन कान में। | ||
ब्रज – धराधिप के पड़ता रहा। | ब्रज – धराधिप के पड़ता रहा। | ||
तड़पते तब यों वह तल्प पै। | तड़पते तब यों वह तल्प पै। | ||
निशित – शायक – विद्धजनो | निशित – शायक – विद्धजनो यथा॥2६॥ | ||
ब्रज – धरा – पति कक्ष समीप ही। | ब्रज – धरा – पति कक्ष समीप ही। | ||
निपट – नीरव कक्ष विशेष में। | निपट – नीरव कक्ष विशेष में। | ||
समुद थे ब्रज - वल्लभ सो रहे। | समुद थे ब्रज - वल्लभ सो रहे। | ||
अति – प्रफुल्ल मुखांबुज मंजु | अति – प्रफुल्ल मुखांबुज मंजु था॥2७॥ | ||
निकट कोमल तल्प मुकुंद के। | निकट कोमल तल्प मुकुंद के। | ||
कलपती जननी उपविष्ट थी। | कलपती जननी उपविष्ट थी। | ||
अति – असंयत अश्रु – प्रवाह से। | अति – असंयत अश्रु – प्रवाह से। | ||
वदन – मंडल प्लावित था | वदन – मंडल प्लावित था हुआ॥2८॥ | ||
हृदय में उनके उठती रही। | हृदय में उनके उठती रही। | ||
भय – भरी अति – कुत्सित – भावना। | भय – भरी अति – कुत्सित – भावना। | ||
विपुल – व्याकुल वे इस काल थीं। | विपुल – व्याकुल वे इस काल थीं। | ||
जटिलता – वश कौशल – जाल | जटिलता – वश कौशल – जाल की॥2९॥ | ||
परम चिंतित वे बनती कभी। | परम चिंतित वे बनती कभी। | ||
सुअन प्रात प्रयाण प्रसंग से। | सुअन प्रात प्रयाण प्रसंग से। | ||
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अति भयंकरता जब सोचतीं। | अति भयंकरता जब सोचतीं। | ||
निपतिता तब होकर भूमि में। | निपतिता तब होकर भूमि में। | ||
करुण क्रंदन वे करती | करुण क्रंदन वे करती रहीं॥३2॥ | ||
हरि न जाग उठें इस सोच से। | हरि न जाग उठें इस सोच से। | ||
सिसकतीं तक भी वह थीं नहीं। | सिसकतीं तक भी वह थीं नहीं। | ||
Line 191: | Line 191: | ||
कर सकी अपराध कभी नहीं। | कर सकी अपराध कभी नहीं। | ||
पर शरीर मिले सब भाँति में। | पर शरीर मिले सब भाँति में। | ||
निरपराध कहा सकती | निरपराध कहा सकती नहीं॥४2॥ | ||
इस लिये मुझसे अनजान में। | इस लिये मुझसे अनजान में। | ||
यदि हुआ कुछ भी अपराध हो। | यदि हुआ कुछ भी अपराध हो। | ||
Line 237: | Line 237: | ||
प्रथम भी यक संतति के लिए। | प्रथम भी यक संतति के लिए। | ||
पर निरंतर संतति - कष्ट से। | पर निरंतर संतति - कष्ट से। | ||
हृदय है अब जर्जर हो | हृदय है अब जर्जर हो रहा॥५2॥ | ||
जननि जो उपजी उर में दया। | जननि जो उपजी उर में दया। | ||
जरठता अवलोक - स्वदास की। | जरठता अवलोक - स्वदास की। | ||
Line 277: | Line 277: | ||
अहह धीरज क्योंकर मै धरूँ। | अहह धीरज क्योंकर मै धरूँ। | ||
मृदु – कुरंगम शावक से कभी। | मृदु – कुरंगम शावक से कभी। | ||
पतन हो न सका हिम शैल | पतन हो न सका हिम शैल का॥६2॥ | ||
विदित है बल, वज्र-शरीरता। | विदित है बल, वज्र-शरीरता। | ||
बिकटता शल तोशल कूट की। | बिकटता शल तोशल कूट की। |
Revision as of 10:03, 1 November 2014
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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