प्रियप्रवास तृतीय सर्ग: Difference between revisions
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हिल नहीं सकता यक पत्र था। | हिल नहीं सकता यक पत्र था। | ||
च्युत हुए पर भी वह मौन ही। | च्युत हुए पर भी वह मौन ही। | ||
पतित था अवनी पर हो | पतित था अवनी पर हो रहा॥3॥ | ||
विविध – शब्द – मयी वन की धरा। | विविध – शब्द – मयी वन की धरा। | ||
अति – प्रशांत हुई इस काल थी। | अति – प्रशांत हुई इस काल थी। | ||
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वहन जो करते बहु वस्तु थे। | वहन जो करते बहु वस्तु थे। | ||
श्रम – सना उनका रव - प्रायश:। | श्रम – सना उनका रव - प्रायश:। | ||
कर रहा निशि – शांति विनाश | कर रहा निशि – शांति विनाश था॥13॥ | ||
प्रगटती बहु - भीषण मूर्ति थी। | प्रगटती बहु - भीषण मूर्ति थी। | ||
कर रहा भय तांडव नृत्य था। | कर रहा भय तांडव नृत्य था। | ||
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छत कभी वह थे अवलोकते। | छत कभी वह थे अवलोकते। | ||
टहलते फिरते स - विषाद थे। | टहलते फिरते स - विषाद थे। | ||
वह कभी निज निर्जन कक्ष | वह कभी निज निर्जन कक्ष में॥23॥ | ||
जब कभी बढ़ती उर की व्यथा। | जब कभी बढ़ती उर की व्यथा। | ||
निकट जा करके तब द्वार के। | निकट जा करके तब द्वार के। | ||
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सुअन प्रात प्रयाण प्रसंग से। | सुअन प्रात प्रयाण प्रसंग से। | ||
व्यथित था उनको करता कभी। | व्यथित था उनको करता कभी। | ||
परम – त्रास महीपति - कंस | परम – त्रास महीपति - कंस का॥3०॥ | ||
पट हटा सुत के मुख कंज की। | पट हटा सुत के मुख कंज की। | ||
विचकता जब थीं अवलोकती। | विचकता जब थीं अवलोकती। | ||
विवश सी जब थीं फिर देखती। | विवश सी जब थीं फिर देखती। | ||
सरलता, मृदुता, | सरलता, मृदुता, सुकुमारता॥31॥ | ||
तदुपरांत नृपाधम - नीति की। | तदुपरांत नृपाधम - नीति की। | ||
अति भयंकरता जब सोचतीं। | अति भयंकरता जब सोचतीं। | ||
निपतिता तब होकर भूमि में। | निपतिता तब होकर भूमि में। | ||
करुण क्रंदन वे करती | करुण क्रंदन वे करती रहीं॥32॥ | ||
हरि न जाग उठें इस सोच से। | हरि न जाग उठें इस सोच से। | ||
सिसकतीं तक भी वह थीं नहीं। | सिसकतीं तक भी वह थीं नहीं। | ||
इसलिए उन का दुख - वेग से। | इसलिए उन का दुख - वेग से। | ||
हृदया था शतधा अब रो | हृदया था शतधा अब रो रहा॥33॥ | ||
महरि का यह कष्ट विलोक के। | महरि का यह कष्ट विलोक के। | ||
धुन रहा सिर गेह – प्रदीप था। | धुन रहा सिर गेह – प्रदीप था। | ||
सदन में परिपूरित दीप्ति भी। | सदन में परिपूरित दीप्ति भी। | ||
सतत थी महि – लुंठित हो | सतत थी महि – लुंठित हो रही॥3४॥ | ||
पर बिना इस दीपक - दीप्ति के। | पर बिना इस दीपक - दीप्ति के। | ||
इस घड़ी इस नीरव - कक्ष में। | इस घड़ी इस नीरव - कक्ष में। | ||
महरि का न प्रबोधक और था। | महरि का न प्रबोधक और था। | ||
इसलिए अति पीड़ित वे | इसलिए अति पीड़ित वे रहीं॥3५॥ | ||
वरन कंपित – शीश प्रदीप भी। | वरन कंपित – शीश प्रदीप भी। | ||
कर रहा उनको बहु – व्यग्र था। | कर रहा उनको बहु – व्यग्र था। | ||
अति - समुज्वल - सुंदर - दीप्ति भी। | अति - समुज्वल - सुंदर - दीप्ति भी। | ||
मलिन थी अतिही लगती | मलिन थी अतिही लगती उन्हें॥3६॥ | ||
जब कभी घटता दुख - वेग था। | जब कभी घटता दुख - वेग था। | ||
तब नवा कर वे निज - शीश को। | तब नवा कर वे निज - शीश को। | ||
महि विलंबित हो कर जोड़ के। | महि विलंबित हो कर जोड़ के। | ||
विनय यों करती चुपचाप | विनय यों करती चुपचाप थीं॥3७॥ | ||
सकल – मंगल – मूल कृपानिधे। | सकल – मंगल – मूल कृपानिधे। | ||
कुशलतालय हे कुल - देवता। | कुशलतालय हे कुल - देवता। | ||
विपद संकुल है कुल हो रहा। | विपद संकुल है कुल हो रहा। | ||
विपुल वांछित है | विपुल वांछित है अनुकूलता॥3८॥ | ||
परम – कोमल-बालक श्याम ही। | परम – कोमल-बालक श्याम ही। | ||
कलपते कुल का यक चिन्ह है। | कलपते कुल का यक चिन्ह है। | ||
पर प्रभो! उसके प्रतिकूल भी। | पर प्रभो! उसके प्रतिकूल भी। | ||
अति – प्रचंड समीरण है | अति – प्रचंड समीरण है उठा॥3९॥ | ||
यदि हुई न कृपा पद - कंज की। | यदि हुई न कृपा पद - कंज की। | ||
टल नहीं सकती यह आपदा। | टल नहीं सकती यह आपदा। | ||
Line 195: | Line 195: | ||
यदि हुआ कुछ भी अपराध हो। | यदि हुआ कुछ भी अपराध हो। | ||
वह सभी इस संकट - काल में। | वह सभी इस संकट - काल में। | ||
कुलपते! सब ही विधि क्षम्य | कुलपते! सब ही विधि क्षम्य है॥४3॥ | ||
प्रथम तो सब काल अबोध की। | प्रथम तो सब काल अबोध की। | ||
सरल चूक उपेक्षित है हुई। | सरल चूक उपेक्षित है हुई। | ||
Line 241: | Line 241: | ||
जरठता अवलोक - स्वदास की। | जरठता अवलोक - स्वदास की। | ||
बन गई यदि मैं बड़भागिनी। | बन गई यदि मैं बड़भागिनी। | ||
तब कृपाबल पाकर पुत्र | तब कृपाबल पाकर पुत्र को॥५3॥ | ||
किस लिये अब तो यह सेविका। | किस लिये अब तो यह सेविका। | ||
बहु निपीड़ित है नित हो रही। | बहु निपीड़ित है नित हो रही। | ||
Line 281: | Line 281: | ||
बिकटता शल तोशल कूट की। | बिकटता शल तोशल कूट की। | ||
परम है पटु मुष्टि - प्रहार में। | परम है पटु मुष्टि - प्रहार में। | ||
प्रबल मुष्टिक संज्ञक मल्ल | प्रबल मुष्टिक संज्ञक मल्ल भी॥६3॥ | ||
पृथुल - भीम - शरीर भयावने। | पृथुल - भीम - शरीर भयावने। | ||
अपर हैं जितने मल कंस के। | अपर हैं जितने मल कंस के। |
Revision as of 10:10, 1 November 2014
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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