प्रियप्रवास तृतीय सर्ग: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "५" to "5") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "६" to "6") |
||
Line 47: | Line 47: | ||
अखिल – प्राणि – समूह अवाक था। | अखिल – प्राणि – समूह अवाक था। | ||
तरु - लतादिक बीच प्रसुप्ति की। | तरु - लतादिक बीच प्रसुप्ति की। | ||
प्रबलता प्रतिबिंबित थी | प्रबलता प्रतिबिंबित थी हुई॥6॥ | ||
रुक गया सब कार्य - कलाप था। | रुक गया सब कार्य - कलाप था। | ||
वसुमती – तल भी अति – मूक था। | वसुमती – तल भी अति – मूक था। | ||
Line 87: | Line 87: | ||
विकट – दानव पादप थे बने। | विकट – दानव पादप थे बने। | ||
भ्रममयी जिसकी विकरालता। | भ्रममयी जिसकी विकरालता। | ||
चलित थी करती पवि – चित्त | चलित थी करती पवि – चित्त को॥16॥ | ||
अति – सशंकित और सभीत हो। | अति – सशंकित और सभीत हो। | ||
मन कभी यह था अनुमानता। | मन कभी यह था अनुमानता। | ||
Line 127: | Line 127: | ||
ब्रज – धराधिप के पड़ता रहा। | ब्रज – धराधिप के पड़ता रहा। | ||
तड़पते तब यों वह तल्प पै। | तड़पते तब यों वह तल्प पै। | ||
निशित – शायक – विद्धजनो | निशित – शायक – विद्धजनो यथा॥26॥ | ||
ब्रज – धरा – पति कक्ष समीप ही। | ब्रज – धरा – पति कक्ष समीप ही। | ||
निपट – नीरव कक्ष विशेष में। | निपट – नीरव कक्ष विशेष में। | ||
Line 167: | Line 167: | ||
कर रहा उनको बहु – व्यग्र था। | कर रहा उनको बहु – व्यग्र था। | ||
अति - समुज्वल - सुंदर - दीप्ति भी। | अति - समुज्वल - सुंदर - दीप्ति भी। | ||
मलिन थी अतिही लगती | मलिन थी अतिही लगती उन्हें॥36॥ | ||
जब कभी घटता दुख - वेग था। | जब कभी घटता दुख - वेग था। | ||
तब नवा कर वे निज - शीश को। | तब नवा कर वे निज - शीश को। | ||
Line 210: | Line 210: | ||
सकुशल रह के औ’ विघ्न बाधा बचा के। | सकुशल रह के औ’ विघ्न बाधा बचा के। | ||
निजप्रिय सुत दोनों साथ लेके सुखी हो। | निजप्रिय सुत दोनों साथ लेके सुखी हो। | ||
जिस दिन पलटेंगे गेह स्वामी | जिस दिन पलटेंगे गेह स्वामी हमारे॥46॥ | ||
प्रभु दिवस उसी मैं सत्विकी रीति द्वारा। | प्रभु दिवस उसी मैं सत्विकी रीति द्वारा। | ||
परम शुचि बड़े ही दिव्य आयोजनों से। | परम शुचि बड़े ही दिव्य आयोजनों से। | ||
Line 253: | Line 253: | ||
दलन की यह निर्म्मम प्रार्थना। | दलन की यह निर्म्मम प्रार्थना। | ||
बहुत संभव है यदि यों कहें। | बहुत संभव है यदि यों कहें। | ||
सुन नहीं सकती | सुन नहीं सकती ‘जगदंबिका’॥56॥ | ||
पर निवेदन है यह ज्ञानदे। | पर निवेदन है यह ज्ञानदे। | ||
अबल का बल केवल न्याय है। | अबल का बल केवल न्याय है। | ||
Line 269: | Line 269: | ||
भिड़ नहीं सकते दनुजात भी। | भिड़ नहीं सकते दनुजात भी। | ||
वह महा सुकुमार कुमार से। | वह महा सुकुमार कुमार से। | ||
रण-निमित्त सुसज्जित है | रण-निमित्त सुसज्जित है हुआ॥6०॥ | ||
विकट – दर्शन कज्जल – मेरु सा। | विकट – दर्शन कज्जल – मेरु सा। | ||
सुर गजेन्द्र समान पराक्रमी। | सुर गजेन्द्र समान पराक्रमी। | ||
द्विरद क्या जननी उपयुक्त है। | द्विरद क्या जननी उपयुक्त है। | ||
यक पयो-मुख बालक के | यक पयो-मुख बालक के लिये॥61॥ | ||
व्यथित हो कर क्यों बिलखूँ नहीं। | व्यथित हो कर क्यों बिलखूँ नहीं। | ||
अहह धीरज क्योंकर मै धरूँ। | अहह धीरज क्योंकर मै धरूँ। | ||
मृदु – कुरंगम शावक से कभी। | मृदु – कुरंगम शावक से कभी। | ||
पतन हो न सका हिम शैल | पतन हो न सका हिम शैल का॥62॥ | ||
विदित है बल, वज्र-शरीरता। | विदित है बल, वज्र-शरीरता। | ||
बिकटता शल तोशल कूट की। | बिकटता शल तोशल कूट की। | ||
परम है पटु मुष्टि - प्रहार में। | परम है पटु मुष्टि - प्रहार में। | ||
प्रबल मुष्टिक संज्ञक मल्ल | प्रबल मुष्टिक संज्ञक मल्ल भी॥63॥ | ||
पृथुल - भीम - शरीर भयावने। | पृथुल - भीम - शरीर भयावने। | ||
अपर हैं जितने मल कंस के। | अपर हैं जितने मल कंस के। | ||
सब नियोजित हैं रण के लिए। | सब नियोजित हैं रण के लिए। | ||
यक किशोरवयस्क कुमार | यक किशोरवयस्क कुमार से॥64॥ | ||
विपुल वीर सजे बहु-अस्त्र से। | विपुल वीर सजे बहु-अस्त्र से। |
Revision as of 11:29, 1 November 2014
| ||||||||||||||||||||||||
|
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख