प्रियप्रवास तृतीय सर्ग: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "७" to "7") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "८" to "8") |
||
Line 55: | Line 55: | ||
विजनता परिवर्द्धित थी हुई। | विजनता परिवर्द्धित थी हुई। | ||
कुछ विनिद्रित हो जिनमें कहीं। | कुछ विनिद्रित हो जिनमें कहीं। | ||
झनकता यक झींगुर भी न | झनकता यक झींगुर भी न था॥8॥ | ||
बदन से तज के मिष धूम के। | बदन से तज के मिष धूम के। | ||
शयन – सूचक श्वास - समूह को। | शयन – सूचक श्वास - समूह को। | ||
Line 95: | Line 95: | ||
बहन थी करती शव – राशि को। | बहन थी करती शव – राशि को। | ||
बहु – विभीषणता जिनकी कभी। | बहु – विभीषणता जिनकी कभी। | ||
दृग नहीं सकते अवलोक | दृग नहीं सकते अवलोक थे॥18॥ | ||
बिकट - दंत दिखाकर खोपड़ी। | बिकट - दंत दिखाकर खोपड़ी। | ||
कर रही अति - भैरव - हास थी। | कर रही अति - भैरव - हास थी। | ||
Line 135: | Line 135: | ||
कलपती जननी उपविष्ट थी। | कलपती जननी उपविष्ट थी। | ||
अति – असंयत अश्रु – प्रवाह से। | अति – असंयत अश्रु – प्रवाह से। | ||
वदन – मंडल प्लावित था | वदन – मंडल प्लावित था हुआ॥28॥ | ||
हृदय में उनके उठती रही। | हृदय में उनके उठती रही। | ||
भय – भरी अति – कुत्सित – भावना। | भय – भरी अति – कुत्सित – भावना। | ||
Line 175: | Line 175: | ||
कुशलतालय हे कुल - देवता। | कुशलतालय हे कुल - देवता। | ||
विपद संकुल है कुल हो रहा। | विपद संकुल है कुल हो रहा। | ||
विपुल वांछित है | विपुल वांछित है अनुकूलता॥38॥ | ||
परम – कोमल-बालक श्याम ही। | परम – कोमल-बालक श्याम ही। | ||
कलपते कुल का यक चिन्ह है। | कलपते कुल का यक चिन्ह है। | ||
Line 221: | Line 221: | ||
यह अकोर प्रदान न है प्रभो। | यह अकोर प्रदान न है प्रभो। | ||
वरन है यह कातर–चित्त की। | वरन है यह कातर–चित्त की। | ||
परम - शांतिमयी - | परम - शांतिमयी - अवतारणा॥48॥ | ||
कलुष - नाशिनि दुष्ट - निकंदिनी। | कलुष - नाशिनि दुष्ट - निकंदिनी। | ||
जगत की जननी भव–वल्लभे। | जगत की जननी भव–वल्लभे। | ||
Line 261: | Line 261: | ||
कुटिलता अब है अति कष्टदा। | कुटिलता अब है अति कष्टदा। | ||
कपट-कौशल से अब नित्य ही। | कपट-कौशल से अब नित्य ही। | ||
बहुत-पीड़ित है ब्रज की | बहुत-पीड़ित है ब्रज की प्रजा॥58॥ | ||
सरलता – मय – बालक के लिए। | सरलता – मय – बालक के लिए। | ||
जननि! जो अब कौशल है हुआ। | जननि! जो अब कौशल है हुआ। |
Revision as of 11:36, 1 November 2014
| ||||||||||||||||||||||||
|
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख