राजमन्नार समिति: Difference between revisions

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*समिति का मत था कि अनुच्छेद 356 का प्रयोग केवल राज्य में क़ानून और व्यवस्था के पूर्णरूप से भंग होने पर ही किया जाना चाहिए।
*समिति का मत था कि अनुच्छेद 356 का प्रयोग केवल राज्य में क़ानून और व्यवस्था के पूर्णरूप से भंग होने पर ही किया जाना चाहिए।
*राजमन्नार  समिति ने राज्यों की विधान सभाओं को शेष अधिकार प्रदान करने का भी समर्थन किया। उपरोक्त सभी सुझाव केंद्रीय सरकार को स्वीकार नहीं थे।
*राजमन्नार  समिति ने राज्यों की विधान सभाओं को शेष अधिकार प्रदान करने का भी समर्थन किया। उपरोक्त सभी सुझाव केंद्रीय सरकार को स्वीकार नहीं थे।
====राज्यपाल के सम्बंध में सिफ़ारिशें====
[[राज्यपाल]] के सम्बन्ध में भी राजमन्नार समिति की निम्न सिफ़ारिशें अपना महत्व रखती हैं-
*राज्यपाल की नियुक्ति सदैव राज्य मंत्रिमण्डल से परामर्श करके की जानी चाहिए तथा इसके लिए सदैव वैकल्पिक व्यवस्था यह हो सकती है कि राज्यपाल की नियुक्ति इस प्रयोजन के लिए गठित एक उच्च शक्ति प्राप्त संगठन की सलाह के आधार पर की जाए।
*एक बार राज्यपाल पद पर रह चुके व्यक्तियों को इसी पद पर दूसरे कार्यकाल अथवा सरकार के अधीन किसी अन्य पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए। *राज्यपाल को अपने कार्यकाल में पद से तब तक नहीं हटाया जाना चाहिए, जब तक [[उच्चतम न्यायालय]] द्वारा जाँच के बाद उसके द्वारा दुर्व्यवहार या उसकी अक्षमता न साबित हो जाए।
*[[संविधान]] में विशेष प्रावधान शामिल किया जाना चाहिए, जो [[राष्ट्रपति]] को राज्यपालों के लिए निर्देश देने का अधिकार प्रदान करे। ये लिखित निर्देश उन मामलों के विषय में दिशा-निर्देश करेंगे, जिनमें राज्यपाल को केन्द्र सरकार से परामर्श करना चाहिए अथवा जिनमें केन्द्र सरकार उसे निर्देश दे सकती है। उन निर्देशों के द्वारा उन सिद्धान्तों को भी स्पष्ट किया जाना चाहिए, जिनके सन्दर्भ में राज्यपाल को कार्य करना चाहिए। इन कार्यों में राज्य के प्रमुख के रूप में राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों के क्रियान्वयन का अवसर शामिल है।
*संविधान में शामिल इस प्रावधान को तत्काल निकाल दिया जाना चाहिए कि मंत्रिमण्डल राज्यपाल के प्रसाद के पर्यन्त पद पर रहेगा।
*संविधान में विशेष रूप से निम्नलिखित निर्देशों को शामिल करना चाहिए। जैसे-
#[[राज्यपाल]] को राज्य [[विधानसभा]] में बहुमत प्राप्त दल के नेता को [[मुख्यमंत्री]] नियुक्त करना चाहिए।
#जहाँ राज्यपाल को विधानसभा में किसी एक दल के स्पष्ट बहुमत के सम्बन्ध में समाधान न हो, वहाँ पर राज्यपाल को विधानसभा का अधिवेशन मुख्यमंत्री के चयन के लिए बुलाना चाहिए और अधिवेशन में चुने गये व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करना चाहिए।
#यदि मुख्यमंत्री किसी मंत्री को बर्ख़ास्त करने की सलाह राज्यपाल को देता है, तो उसे मुख्यमंत्री की सलाह मान लेनी चाहिए।
#यदि राज्यपाल को यह प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में बहुमत खो दिया है, तो राज्यपाल को तत्काल विधानसभा का अधिवेशन बुलाकर मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करने का निर्देश देना चाहिए। यदि मुख्यमंत्री बहुमत साबित करने में असफल रहता है, तो राज्यपाल को मुख्यमंत्री को बर्ख़ास्त कर देना चाहिए।





Revision as of 06:37, 15 February 2015

राजमन्नार समिति का गठन केन्द्र व राज्यों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए 1970 किया गया था।

  • 'तमिलनाडु सरकार' द्वारा केन्द्र व राज्य के बीच सम्बंधों पर विचार करने के लिए यह समिति गठित की गई थी।
  • इस समिति ने सम्बंधों को सुधारने के लिए अनेक सुझाव दिए। इस समिति ने भी अर्न्तराज्यीय परिषद के गठन का सुझाव दिया तथा अनुच्छेद 356 के प्रयोग पर अंकुश लगाने की सिफ़ारिश की।
  • समिति का मत था कि अनुच्छेद 356 का प्रयोग केवल राज्य में क़ानून और व्यवस्था के पूर्णरूप से भंग होने पर ही किया जाना चाहिए।
  • राजमन्नार समिति ने राज्यों की विधान सभाओं को शेष अधिकार प्रदान करने का भी समर्थन किया। उपरोक्त सभी सुझाव केंद्रीय सरकार को स्वीकार नहीं थे।

राज्यपाल के सम्बंध में सिफ़ारिशें

राज्यपाल के सम्बन्ध में भी राजमन्नार समिति की निम्न सिफ़ारिशें अपना महत्व रखती हैं-

  • राज्यपाल की नियुक्ति सदैव राज्य मंत्रिमण्डल से परामर्श करके की जानी चाहिए तथा इसके लिए सदैव वैकल्पिक व्यवस्था यह हो सकती है कि राज्यपाल की नियुक्ति इस प्रयोजन के लिए गठित एक उच्च शक्ति प्राप्त संगठन की सलाह के आधार पर की जाए।
  • एक बार राज्यपाल पद पर रह चुके व्यक्तियों को इसी पद पर दूसरे कार्यकाल अथवा सरकार के अधीन किसी अन्य पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए। *राज्यपाल को अपने कार्यकाल में पद से तब तक नहीं हटाया जाना चाहिए, जब तक उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच के बाद उसके द्वारा दुर्व्यवहार या उसकी अक्षमता न साबित हो जाए।
  • संविधान में विशेष प्रावधान शामिल किया जाना चाहिए, जो राष्ट्रपति को राज्यपालों के लिए निर्देश देने का अधिकार प्रदान करे। ये लिखित निर्देश उन मामलों के विषय में दिशा-निर्देश करेंगे, जिनमें राज्यपाल को केन्द्र सरकार से परामर्श करना चाहिए अथवा जिनमें केन्द्र सरकार उसे निर्देश दे सकती है। उन निर्देशों के द्वारा उन सिद्धान्तों को भी स्पष्ट किया जाना चाहिए, जिनके सन्दर्भ में राज्यपाल को कार्य करना चाहिए। इन कार्यों में राज्य के प्रमुख के रूप में राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों के क्रियान्वयन का अवसर शामिल है।
  • संविधान में शामिल इस प्रावधान को तत्काल निकाल दिया जाना चाहिए कि मंत्रिमण्डल राज्यपाल के प्रसाद के पर्यन्त पद पर रहेगा।
  • संविधान में विशेष रूप से निम्नलिखित निर्देशों को शामिल करना चाहिए। जैसे-
  1. राज्यपाल को राज्य विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करना चाहिए।
  2. जहाँ राज्यपाल को विधानसभा में किसी एक दल के स्पष्ट बहुमत के सम्बन्ध में समाधान न हो, वहाँ पर राज्यपाल को विधानसभा का अधिवेशन मुख्यमंत्री के चयन के लिए बुलाना चाहिए और अधिवेशन में चुने गये व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करना चाहिए।
  3. यदि मुख्यमंत्री किसी मंत्री को बर्ख़ास्त करने की सलाह राज्यपाल को देता है, तो उसे मुख्यमंत्री की सलाह मान लेनी चाहिए।
  4. यदि राज्यपाल को यह प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में बहुमत खो दिया है, तो राज्यपाल को तत्काल विधानसभा का अधिवेशन बुलाकर मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करने का निर्देश देना चाहिए। यदि मुख्यमंत्री बहुमत साबित करने में असफल रहता है, तो राज्यपाल को मुख्यमंत्री को बर्ख़ास्त कर देना चाहिए।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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