सर्वज्ञात्ममुनि: Difference between revisions
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*अद्वैत मत को स्पष्ट करने के लिए इन्होंने 'संक्षेप शारीरक' नामक [[ग्रंथ]] का प्रणयन किया था। | *अद्वैत मत को स्पष्ट करने के लिए इन्होंने 'संक्षेप शारीरक' नामक [[ग्रंथ]] का प्रणयन किया था। |
Revision as of 13:52, 2 May 2015
सर्वज्ञात्ममुनि प्रसिद्ध अद्वैत वेदांताचार्य सन्न्यासी। इनका जीवन काल लगभग नवी शती था। शृंगेरी के ये मठाधीश थे। इनका अन्य नाम 'नित्यबोधाचार्य' था।[1]
- अद्वैत मत को स्पष्ट करने के लिए इन्होंने 'संक्षेप शारीरक' नामक ग्रंथ का प्रणयन किया था।
- इन्होंने अपने गुरु का नाम 'देवेश्वराचार्य' लिखा है।
- प्रसिद्ध भाष्यकार मधुसूदन सरस्वती और स्वामी रामतीर्थ ने देवेश्वराचार्य को सुरेश्वराचार्य से अभिन्न बतलाया है। परंतु दोनों के काल में पर्याप्त अंतर होने से ऐसा मानना कठिन है।
- 'संक्षेप शारीरक' में श्लोक और वार्तिक दोनों का समावेश है। 'शारीरक भाष्य' के समान इसमें भी चार अध्याय हैं और इनके विषयों का क्रम भी उसी प्रकार है। इनमें श्लोक संख्या क्रमश: 563, 248, 365 और 53 हैं।
- सर्वक्षात्मुनि ने 'संक्षेप शारीरक' को 'प्रकरणवार्तिक' बतलाया है। अद्वैत सम्प्रदाय की परम्परा में यह ग्रंथ बहुत प्रामाणिक माना जाता है। इस पर मधुसूदन सरस्वती और रामतीर्थ ने टीकाएँ लिखी थीं, जो बहुत प्रसिद्ध हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 664 |