Template:विशेष आलेख: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
<noinclude>{| width="51%" align="left" cellpadding="5" cellspacing="5"
|-</noinclude>
| style="background:transparent;"|
{| style="background:transparent; width:100%"
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"| <font color="#003366">एक आलेख</font>
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"| <font color="#003366">एक आलेख</font>

Revision as of 12:01, 29 June 2015

एक आलेख

          चैतन्य महाप्रभु भक्तिकाल के प्रमुख संतों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी। भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में हिन्दू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊँच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृन्दावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें 'निमाई' कहकर पुकारते थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें 'गौरांग', 'गौर हरि', 'गौर सुंदर' आदि भी कहते थे। महाप्रभु चैतन्य के जीवन चरित के लिए वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' और कृष्णदास कविराज द्वारा 1590 में रचित 'चैतन्य चरितामृत' नामक ग्रन्थ प्रमुख हैं। चैतन्य महाप्रभु ने 'अचिन्त्य भेदाभेदवाद' का प्रवर्तन किया, किन्तु प्रामाणिक रूप से इनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता। इनके कुछ शिष्यों के मतानुसार 'दशमूल श्लोक' इनके रचे हुए हैं। ... और पढ़ें


पिछले आलेख भारतीय संस्कृति · स्वस्तिक · चाय · बुद्ध · नवरात्र