छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-4: Difference between revisions

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*समस्त [[देवता|देवगण]] और उपासक इस एक अक्षर-ब्रह्म 'ॐकार' में प्रविष्ट होकर अमरत्व और अभय को प्राप्त करते हैं।
*समस्त [[देवता|देवगण]] और उपासक इस एक अक्षर-ब्रह्म 'ॐकार' में प्रविष्ट होकर अमरत्व और अभय को प्राप्त करते हैं।


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Latest revision as of 12:54, 12 August 2016

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-4
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय प्रथम
कुल खण्ड 13 (तेरह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह चौथा खण्ड है। इस खण्ड में '' को ही उद्गीथ माना गया है और उसी की उपासना करने की बात कही गई है।

  • यद्यपि 'ॐ' एक स्वर है तथापि यह अक्षर, अमृत और अभय-रूप ब्रह्म का प्रतीक है।
  • समस्त देवगण और उपासक इस एक अक्षर-ब्रह्म 'ॐकार' में प्रविष्ट होकर अमरत्व और अभय को प्राप्त करते हैं।


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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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