कनक दुर्गेश्वरी मंदिर: Difference between revisions
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Latest revision as of 12:53, 5 October 2016
[[चित्र:Kanaka-Durga-Temple-Vijayawada.jpg|कनक दुर्गेश्वरी मंदिर, विजयवाड़ा|thumb|250px]]
- आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा स्थित इंद्रकिलाद्रि पर्वत पर वास करने वाली माता कनक दुर्गेश्वरी मंदिर में नवरात्र के दिनों में विशेष पूजा का आयोजन होता है।
- मान्यता है, इस स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या के फलस्वरूप अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्राप्त हुआ था। इस मंदिर को अर्जुन ने माँ दुर्गा के सम्मान मे बनवाया था।
- यह भी मान्यता है कि आदिगुरु शंकराचार्य भी यहाँ आये थे और अपना श्रीचक्र स्थापित करके उन्होंने माता की वैदिक-पद्धति से पूजा-अर्चना की थी।
- इंद्रकिलाद्रि पर्वत पर निर्मित और कृष्णा नदी के तट पर स्थित कनक दुर्गा माँ का यह मंदिर काफ़ी पुराना है। माना जाता है कि मंदिर में स्थापित कनक दुर्गा माँ की प्रतिमा स्वयंभू है।
कथा
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा है-राक्षसों ने अपने बल-प्रयोग द्वारा पृथ्वी पर तबाही मचा दी थी। तब राक्षसों को मारने के लिए माता पार्वती ने अलग-अलग रूप धारण किए। उन्होंने शुंभ और निशुंभ को मारने के लिए कौशिकी, महिषासुर के वध के लिए महिषासुरमर्दिनी व दुर्गमसुर के लिए दुर्गा जैसे रूप धरे। कनक दुर्गा ने अपने श्रद्धालु कीलाणु को पर्वत बनकर स्थापित होने का आदेश दिया, ताकि वह वहाँ वास कर सकें। महिषासुर का वध करते हुए इंद्रकिलाद्रि पर्वत पर माँ आठ हाथों में अस्त्रयुक्त हो शेर पर सवार हैं। पास की ही एक चट्टान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में शिव भी स्थापित हैं। ब्रह्मा ने यहाँ शिव की मलेलु (बेला) के पुष्पों से आराधना की थी, इसलिए यहाँ स्थापित शिव का एक नाम मलेश्वर स्वामी पड़ गया।
- कहते हैं, यहाँ पर इंद्र देव भी भ्रमण करने आते हैं, इसलिए इस पर्वत का नाम इंद्रकिलाद्रि पड़ गया। विशेष यह भी है कि देवता के बाईं ओर देवियों को स्थापित करने के बजाय यहाँ मलेश्वर देव की दाईं ओर माता स्थापित हैं। विजयवाड़ा के केंद्र में स्थित यह मंदिर रेलवे स्टेशन से दस किलोमीटर दूर है।
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