बख़्तियार ख़िलजी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{{ | {{incomplete}} | ||
मध्यकाल में मुस्लिम शासकों का इस क्षेत्र पर अधिकार रहा। [[बिहार]] पर सबसे पहले विजय पाने वाला मुस्लिम शासक 'मोहम्मद बिन बख्तियार ख़िलजी' था। 12वीं शती में बख़्तियार ख़िलजी के आक्रमण से [[नालंदा|नालन्दा विश्वविद्यालय]] नष्ट हो गया था। पूर्व में तुर्क अधिक सफल रहे। एक ख़िलजी अधिकारी, बख़्तियार ख़िलजी, जिसके चाचा ने तराइन की लड़ाई में भाग लिया था, [[बनारस]] के पार कुछ क्षेत्रों का शासक हुआ। उसने इस बात का लाभ उठाया और [[बिहार]] में कई आक्रमण किए। बिहार में अभी कोई शक्तिशाली राजा नहीं था। इन आक्रमणों के दौरान उसने [[नालन्दा]] और विक्रमशिला जैसे बौद्ध मठों को ध्वंस कर दिया। इन बौद्ध संस्थानों को अब संरक्षण देने वाला कोई नहीं था। बख्तियार ख़िलजी ने काफ़ी सम्पत्ति और इसके साथ समर्थकों को भी इकट्ठा कर लिया। इन आक्रमणों के दौरान उसने [[बंगाल]] के मार्ग के बारे में भी सूचना इकट्ठी की। बंगाल अपने अतिरिक्त आंतरिक साधनों और विदेशी व्यापार के कारण अपनी सम्पत्ति के लिए प्रसिद्ध था। | मध्यकाल में मुस्लिम शासकों का इस क्षेत्र पर अधिकार रहा। [[बिहार]] पर सबसे पहले विजय पाने वाला मुस्लिम शासक 'मोहम्मद बिन बख्तियार ख़िलजी' था। 12वीं शती में बख़्तियार ख़िलजी के आक्रमण से [[नालंदा|नालन्दा विश्वविद्यालय]] नष्ट हो गया था। पूर्व में तुर्क अधिक सफल रहे। एक ख़िलजी अधिकारी, बख़्तियार ख़िलजी, जिसके चाचा ने तराइन की लड़ाई में भाग लिया था, [[बनारस]] के पार कुछ क्षेत्रों का शासक हुआ। उसने इस बात का लाभ उठाया और [[बिहार]] में कई आक्रमण किए। बिहार में अभी कोई शक्तिशाली राजा नहीं था। इन आक्रमणों के दौरान उसने [[नालन्दा]] और विक्रमशिला जैसे बौद्ध मठों को ध्वंस कर दिया। इन बौद्ध संस्थानों को अब संरक्षण देने वाला कोई नहीं था। बख्तियार ख़िलजी ने काफ़ी सम्पत्ति और इसके साथ समर्थकों को भी इकट्ठा कर लिया। इन आक्रमणों के दौरान उसने [[बंगाल]] के मार्ग के बारे में भी सूचना इकट्ठी की। बंगाल अपने अतिरिक्त आंतरिक साधनों और विदेशी व्यापार के कारण अपनी सम्पत्ति के लिए प्रसिद्ध था। | ||
==बंगाल की ओर कूच== | ==बंगाल की ओर कूच== | ||
{{tocright}} | |||
काफ़ी तैयारियाँ करने के बाद बख़्तियार ख़िलजी ने अपनी सेना के साथ बंगाल के सेन राजाओं की राजधानी 'नदिया' की ओर कूच किया। बहुत चोरी छिपे और घोड़ों के व्यापारी के रूप में उसने अपने अट्ठारह सैनिकों के साथ नदिया में प्रवेश किया। उस पर किसी ने संदेह नहीं किया क्योंकि उन दिनों तुर्की घोड़े व्यापारियों का देखा जाना आम बात थी। महल तक पहुँचने के बाद बख़्तियार ख़िलजी ने एकाएक धावा बोल दिया और चारों तरफ ख़लबली मच गई। 'लक्ष्मण सेन' अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन इस अचानक हमले से वह घबरा सा गया। यह सोचकर कि पूरी तुर्की सेना ही आ गई है, उसने पिछले दरवाज़े से भागकर सोनारगांव में शरण ली। तुर्की सेना सच में ही कहीं नज़दीक रही होगी क्योंकि वह जल्दी ही वहाँ चली आई और महल को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। लक्ष्मण सेन की सारी सम्पत्ति यहाँ तक कि उसकी पत्नियाँ तथा बच्चों को भी क़ब्ज़े में कर लिया गया। ये घटनाएँ 1204 ई0 के आस पास हुई। | काफ़ी तैयारियाँ करने के बाद बख़्तियार ख़िलजी ने अपनी सेना के साथ बंगाल के सेन राजाओं की राजधानी 'नदिया' की ओर कूच किया। बहुत चोरी छिपे और घोड़ों के व्यापारी के रूप में उसने अपने अट्ठारह सैनिकों के साथ नदिया में प्रवेश किया। उस पर किसी ने संदेह नहीं किया क्योंकि उन दिनों तुर्की घोड़े व्यापारियों का देखा जाना आम बात थी। महल तक पहुँचने के बाद बख़्तियार ख़िलजी ने एकाएक धावा बोल दिया और चारों तरफ ख़लबली मच गई। 'लक्ष्मण सेन' अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन इस अचानक हमले से वह घबरा सा गया। यह सोचकर कि पूरी तुर्की सेना ही आ गई है, उसने पिछले दरवाज़े से भागकर सोनारगांव में शरण ली। तुर्की सेना सच में ही कहीं नज़दीक रही होगी क्योंकि वह जल्दी ही वहाँ चली आई और महल को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। लक्ष्मण सेन की सारी सम्पत्ति यहाँ तक कि उसकी पत्नियाँ तथा बच्चों को भी क़ब्ज़े में कर लिया गया। ये घटनाएँ 1204 ई0 के आस पास हुई। | ||
==राजधानी== | ==राजधानी== |
Revision as of 12:10, 28 August 2010
40px | पन्ना बनने की प्रक्रिया में है। आप इसको तैयार करने में सहायता कर सकते हैं। |
मध्यकाल में मुस्लिम शासकों का इस क्षेत्र पर अधिकार रहा। बिहार पर सबसे पहले विजय पाने वाला मुस्लिम शासक 'मोहम्मद बिन बख्तियार ख़िलजी' था। 12वीं शती में बख़्तियार ख़िलजी के आक्रमण से नालन्दा विश्वविद्यालय नष्ट हो गया था। पूर्व में तुर्क अधिक सफल रहे। एक ख़िलजी अधिकारी, बख़्तियार ख़िलजी, जिसके चाचा ने तराइन की लड़ाई में भाग लिया था, बनारस के पार कुछ क्षेत्रों का शासक हुआ। उसने इस बात का लाभ उठाया और बिहार में कई आक्रमण किए। बिहार में अभी कोई शक्तिशाली राजा नहीं था। इन आक्रमणों के दौरान उसने नालन्दा और विक्रमशिला जैसे बौद्ध मठों को ध्वंस कर दिया। इन बौद्ध संस्थानों को अब संरक्षण देने वाला कोई नहीं था। बख्तियार ख़िलजी ने काफ़ी सम्पत्ति और इसके साथ समर्थकों को भी इकट्ठा कर लिया। इन आक्रमणों के दौरान उसने बंगाल के मार्ग के बारे में भी सूचना इकट्ठी की। बंगाल अपने अतिरिक्त आंतरिक साधनों और विदेशी व्यापार के कारण अपनी सम्पत्ति के लिए प्रसिद्ध था।
बंगाल की ओर कूच
काफ़ी तैयारियाँ करने के बाद बख़्तियार ख़िलजी ने अपनी सेना के साथ बंगाल के सेन राजाओं की राजधानी 'नदिया' की ओर कूच किया। बहुत चोरी छिपे और घोड़ों के व्यापारी के रूप में उसने अपने अट्ठारह सैनिकों के साथ नदिया में प्रवेश किया। उस पर किसी ने संदेह नहीं किया क्योंकि उन दिनों तुर्की घोड़े व्यापारियों का देखा जाना आम बात थी। महल तक पहुँचने के बाद बख़्तियार ख़िलजी ने एकाएक धावा बोल दिया और चारों तरफ ख़लबली मच गई। 'लक्ष्मण सेन' अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन इस अचानक हमले से वह घबरा सा गया। यह सोचकर कि पूरी तुर्की सेना ही आ गई है, उसने पिछले दरवाज़े से भागकर सोनारगांव में शरण ली। तुर्की सेना सच में ही कहीं नज़दीक रही होगी क्योंकि वह जल्दी ही वहाँ चली आई और महल को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। लक्ष्मण सेन की सारी सम्पत्ति यहाँ तक कि उसकी पत्नियाँ तथा बच्चों को भी क़ब्ज़े में कर लिया गया। ये घटनाएँ 1204 ई0 के आस पास हुई।
राजधानी
उस क्षेत्र की बड़ी नदियों के कारण बख्तियार ख़िलजी को 'नदिया' पर अधिकार बनाए रखना मुश्किल हो गया। इस कारण वह पीछे हट गया और उत्तर बंगाल में 'लखनौती' को अपनी राजधानी बनाया। लक्षमण सेन और उसके उत्तराधिकारी सोनारगांव से दक्षिण बंगाल पर शासन करते रहे। यद्यपि बख़्तियार ख़िलजी औपचारिक रूप से मुइज्जुद्दीन द्वारा बंगाल का प्रशासक नियुक्त किया गया था परन्तु वास्तव में वह स्वतंत्र शासक के रूप में राज्य करता रहा, लेकिन उसकी स्थिति बहुत दिनों तक मज़बूत नहीं रह सकी। उसने असम में ब्रह्मपुत्र घाटी पर आक्रमण करने की मूर्खता की। लेखकों का कहना है कि वह तिब्बत तक जाना चाहता था। असम के माघ शासक पीछे हटते गए और तुर्की सेना को अन्दर आने का रास्ता देते गए। अन्त में थकान से चूर हो गए, फिर वापस लौटने का निश्चय कर लिया, लेकिन अब उन्हें कहीं से रसद नहीं मिल सकी और असम की सेना रह-रह कर उन पर हमले करती रही। भूख, प्यास और बीमारी से पूरी सेना कमज़ोर हो गई थी और ऐसी स्थिति में उन्हें युद्ध करना पड़ा। युद्ध के समय उनके सामने एक चौड़ी नदी थी और पीछे असम की सेना। तुर्की सेना पूर्णतः पराजित हुई।
बख़्तियार की हत्या
बख़्तियार ख़िलजी स्वयं अपने कुछ सैनिकों के साथ पहाड़ी क़बीलों की सहायता से जान बचाकर वापस लौटने में सफल हो गया। लेकिन अब उसका उत्साह खत्म हो चुका था, स्वास्थ्य गिर चुका था और ऐसी दशा में उसके एक अमीर ने उसको सोते हुए में छुरा घोंपकर उसकी हत्या कर दी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ