वैदेही वनवास द्वितीय सर्ग: Difference between revisions
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गुप्तचर वहाँ विकंपित-गात॥ | गुप्तचर वहाँ विकंपित-गात॥ | ||
विनत हो वन्दन कर कर जोड़। | विनत हो वन्दन कर कर जोड़। | ||
कही | कही दु:ख से उसने यह बात॥6॥ | ||
प्रभो यह सेवक प्रात:काल। | प्रभो यह सेवक प्रात:काल। | ||
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देख कर मेरे मुख की ओर। | देख कर मेरे मुख की ओर। | ||
भूलते थे सब | भूलते थे सब दु:ख के भाव॥ | ||
मिल गये कहीं कंटकित पंथ। | मिल गये कहीं कंटकित पंथ। | ||
छिदे किसके पंकज से पाँव॥32॥ | छिदे किसके पंकज से पाँव॥32॥ | ||
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तरु तले बैठी रह दिन रात॥40॥ | तरु तले बैठी रह दिन रात॥40॥ | ||
नहीं सकती जो पर | नहीं सकती जो पर दु:ख देख। | ||
हृदय जिसका है परम-उदार॥ | हृदय जिसका है परम-उदार॥ | ||
सर्व जन सुख संकलन निमित्त। | सर्व जन सुख संकलन निमित्त। |
Latest revision as of 14:03, 2 June 2017
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अवध के राज मन्दिरों मध्य। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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