वैदेही वनवास चतुर्थ सर्ग: Difference between revisions
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अपने हित साधन की ललकों में पड़े। | अपने हित साधन की ललकों में पड़े। | ||
अहित लोक लालों के लोगों ने किए॥ | अहित लोक लालों के लोगों ने किए॥ | ||
प्राणिमात्र के | प्राणिमात्र के दु:ख को भव-परिताप को। | ||
तृण गिनता है मानव निज सुख के लिए॥34॥ | तृण गिनता है मानव निज सुख के लिए॥34॥ | ||
Revision as of 14:10, 2 June 2017
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अवधपुरी के निकट मनोरम-भूमि में। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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