प्रियप्रवास चतुर्थ सर्ग: Difference between revisions
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प्रिय स्वजन किसी के क्या न जाते कहीं हैं। | प्रिय स्वजन किसी के क्या न जाते कहीं हैं। | ||
पर हृदय न जानें दग्ध क्यों हो रहा है। | पर हृदय न जानें दग्ध क्यों हो रहा है। | ||
सब | सब जगत् हमें है शून्य होता दिखाता॥31॥ | ||
यह सकल दिशायें आज रो सी रही हैं। | यह सकल दिशायें आज रो सी रही हैं। |
Revision as of 14:16, 30 June 2017
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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