प्रियप्रवास अष्टम सर्ग: Difference between revisions
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आवेगों से व्यथित बन के दु:ख से दग्ध हो के। | आवेगों से व्यथित बन के दु:ख से दग्ध हो के। | ||
सारे प्राणी ब्रज-अवनि के दर्शनाशा सहारे। | सारे प्राणी ब्रज-अवनि के दर्शनाशा सहारे। | ||
प्यारे से हो | प्यारे से हो पृथक् अपने वार को थे बिताते॥70॥ | ||
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Latest revision as of 13:28, 1 August 2017
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यात्रा पूरी स-दुख करके गोप जो गेह आये। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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