प्रियप्रवास तृतीय सर्ग: Difference between revisions
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महरि का न प्रबोधक और था। | महरि का न प्रबोधक और था। | ||
इसलिए अति पीड़ित वे रहीं॥35॥ | इसलिए अति पीड़ित वे रहीं॥35॥ | ||
वरन् कंपित – शीश प्रदीप भी। | |||
कर रहा उनको बहु – व्यग्र था। | कर रहा उनको बहु – व्यग्र था। | ||
अति - समुज्वल - सुंदर - दीप्ति भी। | अति - समुज्वल - सुंदर - दीप्ति भी। | ||
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यह प्रलोभन है न कृपानिधे। | यह प्रलोभन है न कृपानिधे। | ||
यह अकोर प्रदान न है प्रभो। | यह अकोर प्रदान न है प्रभो। | ||
वरन् है यह कातर–चित्त की। | |||
परम - शांतिमयी - अवतारणा॥48॥ | परम - शांतिमयी - अवतारणा॥48॥ | ||
कलुष - नाशिनि दुष्ट - निकंदिनी। | कलुष - नाशिनि दुष्ट - निकंदिनी। | ||
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सतत संतति संकट - शोच से। | सतत संतति संकट - शोच से। | ||
वह सकंटक ही करती नहीं। | वह सकंटक ही करती नहीं। | ||
वरन् जीवन है करती वृथा॥51॥ | |||
बहुत चिंतित थी पद-सेविका। | बहुत चिंतित थी पद-सेविका। | ||
प्रथम भी यक संतति के लिए। | प्रथम भी यक संतति के लिए। |
Revision as of 07:39, 7 November 2017
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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