आशुतोष मुखर्जी: Difference between revisions

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}}'''सर आशुतोष मुखर्जी''' (([[अंग्रेज़ी]]: ''Sir Ashutosh Mukherjee'', जन्म- [[29 जून]], [[1864]]; मृत्यु- [[25 मई]], [[1924]]) [[बंगाल]] के ख्याति प्राप्त बैरिस्टर और शिक्षाविद थे। वे सन [[1906]] से [[1914]] तक [[कोलकाता विश्वविद्यालय]] के उपकुलपति रहे। उन्होंने बंगला तथा भारतीय भाषाओं को एम. ए. की उच्चतम डिग्री के लिए अध्ययन का विषय बनाया। भारतीय जनसंघ के संस्थापक [[श्यामा प्रसाद मुखर्जी]] इनके पुत्र थे। सन [[1908]] में आशुतोष मुखर्जी ने 'कलकत्ता गणितीय सोसाइटी' की स्थापना की और सोसायटी के अध्यक्ष के रूप में [[1908]] से [[1923]] तक कार्य किया। सन [[1914]] में वे 'भारतीय विज्ञान कांग्रेस' के उद्घाटन सत्र के प्रथम अध्यक्ष भी रहे थे।
==जन्म==
आशुतोष मुखर्जी का जन्म एक मध्यम वर्ग के बंगाली [[ब्राह्मण]] परिवार में 29 जून, 1864 को कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी (आज़ादी पूर्व) में हुआ था। विद्यार्थी जीवन में ही नाम कमाने के उपरान्त [[1888]] ई. में उन्होंने कलकत्ता ([[कोलकाता]]) हाईकोर्ट में वक़ालत प्रारम्भ की।
==बंगाल-निर्माता==
[[1904]] ई. से हाईकोर्ट के न्यायाधीश और [[1920]] ई. में स्थानापन्न मुख्य न्यायाधीश रहने के बाद [[1923]] ई. में उन्होंने अवकाश ग्रहण कर लिया। वे यद्यपि राजनीति से दूर रहे, फिर भी वे [[1899]] ई. में बंगाल विधान परिषद के सदस्य मनोनीत किये गए। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में, जिसके लिए उन्होंने अपना समस्त जीवन अर्पित कर दिया था, उन्होंने बंगाली की जो महती सेवा की, उसके आधार पर उन्हें '''आधुनिक बंगाल का निर्माता''' कहा जा सकता है। 25 वर्ष की अल्पायु में वे [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] के सीनेट सदस्य हुए और इसके उपरान्त सत्रावधि तक उसके उपकुलपति रहे।
[[1904]] ई. से हाईकोर्ट के न्यायाधीश और [[1920]] ई. में स्थानापन्न मुख्य न्यायाधीश रहने के बाद [[1923]] ई. में उन्होंने अवकाश ग्रहण कर लिया। वे यद्यपि राजनीति से दूर रहे, फिर भी वे [[1899]] ई. में बंगाल विधान परिषद के सदस्य मनोनीत किये गए। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में, जिसके लिए उन्होंने अपना समस्त जीवन अर्पित कर दिया था, उन्होंने बंगाली की जो महती सेवा की, उसके आधार पर उन्हें '''आधुनिक बंगाल का निर्माता''' कहा जा सकता है। 25 वर्ष की अल्पायु में वे [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] के सीनेट सदस्य हुए और इसके उपरान्त सत्रावधि तक उसके उपकुलपति रहे।
 
==उच्च शिक्षा प्रसार==
====उच्च शिक्षा प्रसार====
[[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] से उनका जीवन की अन्तिम घड़ी तक सम्बन्ध बना रहा। [[लॉर्ड कर्ज़न]] ने भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, [[भारत]] में उच्च शिक्षा का प्रसार रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था, किन्तु आशुतोष मुखर्जी ने उसी के माध्यम से बंगाल में उच्च शिक्षा का प्रसार कर दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय को परीक्षा की व्यवस्था करने वाली संस्था मात्र से ऊपर उठाकर उच्चतम स्नातकोत्तर शिक्षण देने वाली संस्था बना दिया। उन्होंने केवल कला संकाय में ही विभिन्न विषयों में एम.ए. की कक्षाएँ नहीं खोली, प्रयोगात्मक एवं प्रयुक्त विज्ञानों (Applied sciences) के प्रशिक्षण हेतु भी स्नातकोत्तर शिक्षा का प्रबन्ध किया, जिसके लिए इसके पूर्व कोई प्राविधान न था।
[[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] से उनका जीवन की अन्तिम घड़ी तक सम्बन्ध बना रहा। [[लॉर्ड कर्ज़न]] ने भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, [[भारत]] में उच्च शिक्षा का प्रसार रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था, किन्तु आशुतोष मुखर्जी ने उसी के माध्यम से बंगाल में उच्च शिक्षा का प्रसार कर दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय को परीक्षा की व्यवस्था करने वाली संस्था मात्र से ऊपर उठाकर उच्चतम स्नातकोत्तर शिक्षण देने वाली संस्था बना दिया। उन्होंने केवल कला संकाय में ही विभिन्न विषयों में एम.ए. की कक्षाएँ नहीं खोली, प्रयोगात्मक एवं प्रयुक्त विज्ञानों (Applied sciences) के प्रशिक्षण हेतु भी स्नातकोत्तर शिक्षा का प्रबन्ध किया, जिसके लिए इसके पूर्व कोई प्राविधान न था।
====भारतीय भाषाओं का प्रयोग====
==भारतीय भाषाओं का प्रयोग==
'''उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए''' महाराज [[दरभंगा]], सर तारकनाथ पालित एवं रास बिहारी घोष से प्रचुर दान प्राप्त किया और इस धनराशि से उन्होंने विश्वविद्यालय में पुस्तकालय और [[विज्ञान]] कॉलेजों के विशाल भवनों का निर्माण कराया, जो कि प्रयोगशालाओं से युक्त थे। इस प्रकार उन्होंने देश में शिक्षा की धारा को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने [[बांग्ला भाषा|बंगला]] तथा भारतीय भाषाओं को एम.ए. की उच्चतम डिग्री के लिए अध्ययन का विषय बनाया।
उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए महाराज [[दरभंगा]], सर तारकनाथ पालित एवं रास बिहारी घोष से प्रचुर दान प्राप्त किया और इस धनराशि से उन्होंने विश्वविद्यालय में पुस्तकालय और [[विज्ञान]] कॉलेजों के विशाल भवनों का निर्माण कराया, जो कि प्रयोगशालाओं से युक्त थे। इस प्रकार उन्होंने देश में शिक्षा की धारा को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने [[बांग्ला भाषा|बंगला]] तथा भारतीय भाषाओं को एम.ए. की उच्चतम डिग्री के लिए अध्ययन का विषय बनाया।
====भारतीयता की  झलक====
==भारतीयता की  झलक==
'''उनकी वेशभूषा और आचार व्यवहार''' में भारतीयता झलकती थी। कदाचित वह प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने रॉयल कमीशन (सैडलर समिति) के सदस्य की हैसियत से सम्पूर्ण [[भारत]] में धोती और कोट पहनकर भ्रमण किया। वह कभी इंग्लैण्ड नहीं गए और उन्होंने अपने जीवन तथा कार्य-कलापों से सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से एक सच्चा भारतीय अपने विचारों में सनातनपंथी, कार्यों में प्रगतिशील तथा विश्वविद्यालय के हेतु अध्यापकों के चयन में अंर्तराष्ट्रीयतावादी हो सकता है। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में भारतीय ही नहीं, [[अंग्रेज़]], जर्मन और अमेरिकी प्रोफ़ेसरों की भी नियुक्ति की और उसे पूर्व का अग्रगण्य विश्वविद्यालय बना दिया।  
उनकी वेशभूषा और आचार व्यवहार में भारतीयता झलकती थी। कदाचित वह प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने रॉयल कमीशन (सैडलर समिति) के सदस्य की हैसियत से सम्पूर्ण [[भारत]] में धोती और कोट पहनकर भ्रमण किया। वह कभी इंग्लैण्ड नहीं गए और उन्होंने अपने जीवन तथा कार्य-कलापों से सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से एक सच्चा भारतीय अपने विचारों में सनातनपंथी, कार्यों में प्रगतिशील तथा विश्वविद्यालय के हेतु अध्यापकों के चयन में अंर्तराष्ट्रीयतावादी हो सकता है। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में भारतीय ही नहीं, [[अंग्रेज़]], जर्मन और अमेरिकी प्रोफ़ेसरों की भी नियुक्ति की और उसे पूर्व का अग्रगण्य विश्वविद्यालय बना दिया।  


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Revision as of 05:39, 13 March 2022

आशुतोष मुखर्जी
पूरा नाम सर आशुतोष मुखर्जी
जन्म 29 जून, 1864
जन्म भूमि कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी (आज़ादी पूर्व)
मृत्यु 25 मई, 1924
पति/पत्नी जोगमाया देवी
संतान चार (इनमें से एक श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे)
कर्म भूमि भारत
विद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि सर
प्रसिद्धि बैरिस्टर व शिक्षाविद
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आशुतोष मुखर्जी ने अपना समस्त जीवन शिक्षा को अर्पित कर दिया था। उन्होंने बंगाल की जो महती सेवा की, उसके आधार पर उन्हें आधुनिक बंगाल का निर्माता कहा जा सकता है।

सर आशुतोष मुखर्जी ((अंग्रेज़ी: Sir Ashutosh Mukherjee, जन्म- 29 जून, 1864; मृत्यु- 25 मई, 1924) बंगाल के ख्याति प्राप्त बैरिस्टर और शिक्षाविद थे। वे सन 1906 से 1914 तक कोलकाता विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। उन्होंने बंगला तथा भारतीय भाषाओं को एम. ए. की उच्चतम डिग्री के लिए अध्ययन का विषय बनाया। भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी इनके पुत्र थे। सन 1908 में आशुतोष मुखर्जी ने 'कलकत्ता गणितीय सोसाइटी' की स्थापना की और सोसायटी के अध्यक्ष के रूप में 1908 से 1923 तक कार्य किया। सन 1914 में वे 'भारतीय विज्ञान कांग्रेस' के उद्घाटन सत्र के प्रथम अध्यक्ष भी रहे थे।

जन्म

आशुतोष मुखर्जी का जन्म एक मध्यम वर्ग के बंगाली ब्राह्मण परिवार में 29 जून, 1864 को कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी (आज़ादी पूर्व) में हुआ था। विद्यार्थी जीवन में ही नाम कमाने के उपरान्त 1888 ई. में उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) हाईकोर्ट में वक़ालत प्रारम्भ की।

बंगाल-निर्माता

1904 ई. से हाईकोर्ट के न्यायाधीश और 1920 ई. में स्थानापन्न मुख्य न्यायाधीश रहने के बाद 1923 ई. में उन्होंने अवकाश ग्रहण कर लिया। वे यद्यपि राजनीति से दूर रहे, फिर भी वे 1899 ई. में बंगाल विधान परिषद के सदस्य मनोनीत किये गए। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में, जिसके लिए उन्होंने अपना समस्त जीवन अर्पित कर दिया था, उन्होंने बंगाली की जो महती सेवा की, उसके आधार पर उन्हें आधुनिक बंगाल का निर्माता कहा जा सकता है। 25 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य हुए और इसके उपरान्त सत्रावधि तक उसके उपकुलपति रहे।

उच्च शिक्षा प्रसार

कलकत्ता विश्वविद्यालय से उनका जीवन की अन्तिम घड़ी तक सम्बन्ध बना रहा। लॉर्ड कर्ज़न ने भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, भारत में उच्च शिक्षा का प्रसार रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था, किन्तु आशुतोष मुखर्जी ने उसी के माध्यम से बंगाल में उच्च शिक्षा का प्रसार कर दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय को परीक्षा की व्यवस्था करने वाली संस्था मात्र से ऊपर उठाकर उच्चतम स्नातकोत्तर शिक्षण देने वाली संस्था बना दिया। उन्होंने केवल कला संकाय में ही विभिन्न विषयों में एम.ए. की कक्षाएँ नहीं खोली, प्रयोगात्मक एवं प्रयुक्त विज्ञानों (Applied sciences) के प्रशिक्षण हेतु भी स्नातकोत्तर शिक्षा का प्रबन्ध किया, जिसके लिए इसके पूर्व कोई प्राविधान न था।

भारतीय भाषाओं का प्रयोग

उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए महाराज दरभंगा, सर तारकनाथ पालित एवं रास बिहारी घोष से प्रचुर दान प्राप्त किया और इस धनराशि से उन्होंने विश्वविद्यालय में पुस्तकालय और विज्ञान कॉलेजों के विशाल भवनों का निर्माण कराया, जो कि प्रयोगशालाओं से युक्त थे। इस प्रकार उन्होंने देश में शिक्षा की धारा को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने बंगला तथा भारतीय भाषाओं को एम.ए. की उच्चतम डिग्री के लिए अध्ययन का विषय बनाया।

भारतीयता की झलक

उनकी वेशभूषा और आचार व्यवहार में भारतीयता झलकती थी। कदाचित वह प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने रॉयल कमीशन (सैडलर समिति) के सदस्य की हैसियत से सम्पूर्ण भारत में धोती और कोट पहनकर भ्रमण किया। वह कभी इंग्लैण्ड नहीं गए और उन्होंने अपने जीवन तथा कार्य-कलापों से सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से एक सच्चा भारतीय अपने विचारों में सनातनपंथी, कार्यों में प्रगतिशील तथा विश्वविद्यालय के हेतु अध्यापकों के चयन में अंर्तराष्ट्रीयतावादी हो सकता है। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में भारतीय ही नहीं, अंग्रेज़, जर्मन और अमेरिकी प्रोफ़ेसरों की भी नियुक्ति की और उसे पूर्व का अग्रगण्य विश्वविद्यालय बना दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-367

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