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अशोक कुमार [[हिन्दी]] फ़िल्मों के अभिनेता थे। अशोक कुमार को सन [[1999]] में भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया था। हिंदी सिनेमा के युगपुरुष कुमुद कुमार गांगुली उर्फ अशोक कुमार को ऐसे अभिनेता के रुप में याद किया जाता है जिन्होंने उस समय प्रचलित थियेटर शैली को समाप्त कर अभिनय को स्वाभाविकता प्रदान की और छह दशकों तक अपने बेहतरीन काम से सिनेप्रेमियों को रोमांचित किया। दादा मुनी यानी अशोक कुमार का असली नाम कुमुद गांगुली है। | अशोक कुमार [[हिन्दी]] फ़िल्मों के अभिनेता थे। अशोक कुमार को सन [[1999]] में भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया था। हिंदी सिनेमा के युगपुरुष कुमुद कुमार गांगुली उर्फ अशोक कुमार को ऐसे अभिनेता के रुप में याद किया जाता है जिन्होंने उस समय प्रचलित थियेटर शैली को समाप्त कर अभिनय को स्वाभाविकता प्रदान की और छह दशकों तक अपने बेहतरीन काम से सिनेप्रेमियों को रोमांचित किया।<ref name="याहू जागरण1">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8167.html%3E |title=युगपुरुष थे दादामुनी उर्फ अशोक कुमार |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=याहू जागरण |language=हिन्दी }}</ref> दादा मुनी यानी अशोक कुमार का असली नाम कुमुद गांगुली है। अशोक कुमार ने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया था। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
अशोक कुमार का जन्म [[बिहार]] के [[भागलपुर]] शहर के आदमपुर मोहल्ले के एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। अशोक कुमार सभी भाई-बहनों में बड़े थे। गायक एवं अभिनेता [[किशोर कुमार]] एवं अभिनेता अनूप कुमार उनके छोटे भाई थे। अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा [[मध्यप्रदेश]] के [[खंडवा]] शहर में प्राप्त की थी और बाद मे अशोक कुमार ने अपनी स्नातक की शिक्षा [[इलाहाबाद]] विश्वविद्यालय से पूरी की थी। अशोक कुमार ने अभिनय की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर दिया और अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की थी। वह कभी भी जोखिम लेने में नहीं घबराए और पहली बार हिंदी सिनेमा में एंटी हीरो की भूमिका की थी। अशोक कुमार ने सन [[1934]] मे न्यू थिएटर मे बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट काम किया था। | अशोक कुमार का जन्म [[बिहार]] के [[भागलपुर]] शहर के आदमपुर मोहल्ले के एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। अशोक कुमार सभी भाई-बहनों में बड़े थे। गायक एवं अभिनेता [[किशोर कुमार]] एवं अभिनेता अनूप कुमार उनके छोटे भाई थे। अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा [[मध्यप्रदेश]] के [[खंडवा]] शहर में प्राप्त की थी और बाद मे अशोक कुमार ने अपनी स्नातक की शिक्षा [[इलाहाबाद]] विश्वविद्यालय से पूरी की थी। अशोक कुमार ने अभिनय की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर दिया और अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की थी। वह कभी भी जोखिम लेने में नहीं घबराए और पहली बार हिंदी सिनेमा में एंटी हीरो की भूमिका की थी।<ref name="याहू जागरण1" /> अशोक कुमार ने सन [[1934]] मे न्यू थिएटर मे बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट काम किया था। | ||
अशोक, अनूप और किशोर कुमार ने [[चलती का नाम गाड़ी]] में काम किया। इस कामेडी फ़िल्म में भी अशोक कुमार ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में [[मधुबाला]] ने भी काम किया था। किशोर कुमार ने अपने कई साक्षात्कारों में यह बात स्वीकार की थी कि उन्हें न केवल अभिनय बल्कि गाने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से मिली थी क्योंकि अशोक कुमार ने बचपन में उनके भीतर बालगीतों के जरिए गायन के संस्कार डाले थे। | अशोक, अनूप और किशोर कुमार ने [[चलती का नाम गाड़ी]] में काम किया। इस कामेडी फ़िल्म में भी अशोक कुमार ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में [[मधुबाला]] ने भी काम किया था। किशोर कुमार ने अपने कई साक्षात्कारों में यह बात स्वीकार की थी कि उन्हें न केवल अभिनय बल्कि गाने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से मिली थी क्योंकि अशोक कुमार ने बचपन में उनके भीतर बालगीतों के जरिए गायन के संस्कार डाले थे।<ref name="याहू जागरण">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8250.html%3E |title=सहज अभिनय के पर्याय थे अशोक कुमार |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=याहू जागरण |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==अभिनय की शुरुआत== | ==अभिनय की शुरुआत== | ||
फ़िल्म जगत में दादामुनी के नाम से लोकप्रिय अशोक कुमार के अभिनय सफर की शुरुआत किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं थी। [[1936]] में बांबे टाकीज स्टूडियो की फ़िल्म जीवन नैया के अभिनेता अचानक बीमार हो गए और कंपनी को नए कलाकार की तलाश थी। ऐसी स्थिति में स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की नजर आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लैबोरेटरी असिस्टेंट अशोक कुमार पर पड़ी और उनसे अभिनय करने का प्रस्ताव दिया था। यहीं से उनके अभिनय का सफर शुरु हो गया। उनकी अगली फ़िल्म अछूत कन्या थी। [[1937]] में प्रदर्शित यह फ़िल्म अछूत में [[देविका रानी]] उनकी नायिका थीं। यह फ़िल्म क़ामयाब रही और उसने दादामुनी को बड़े सितारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया। उस ज़माने के लिहाज़ से यह महत्वपूर्ण फ़िल्म थी और इसी के साथ सामाजिक समस्याओं पर आधारित फ़िल्मों की शुरुआत हुई। देविका रानी के साथ उन्होंने आगे भी कई फ़िल्में की जिनमें इज्जत, सावित्री, निर्मला आदि शामिल हैं। इसके बाद उनकी जोड़ी लीला चिटनिस के साथ बनी। | फ़िल्म जगत में दादामुनी के नाम से लोकप्रिय अशोक कुमार के अभिनय सफर की शुरुआत किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं थी। [[1936]] में बांबे टाकीज स्टूडियो की फ़िल्म जीवन नैया के अभिनेता अचानक बीमार हो गए और कंपनी को नए कलाकार की तलाश थी। ऐसी स्थिति में स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की नजर आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लैबोरेटरी असिस्टेंट अशोक कुमार पर पड़ी और उनसे अभिनय करने का प्रस्ताव दिया था। यहीं से उनके अभिनय का सफर शुरु हो गया। उनकी अगली फ़िल्म अछूत कन्या थी। [[1937]] में प्रदर्शित यह फ़िल्म अछूत में [[देविका रानी]] उनकी नायिका थीं। यह फ़िल्म क़ामयाब रही और उसने दादामुनी को बड़े सितारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया। उस ज़माने के लिहाज़ से यह महत्वपूर्ण फ़िल्म थी और इसी के साथ सामाजिक समस्याओं पर आधारित फ़िल्मों की शुरुआत हुई। देविका रानी के साथ उन्होंने आगे भी कई फ़िल्में की जिनमें इज्जत, सावित्री, निर्मला आदि शामिल हैं। इसके बाद उनकी जोड़ी लीला चिटनिस के साथ बनी।<ref name="याहू जागरण1" /> | ||
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एक स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि [[1943]] में आई किस्मत फ़िल्म से बनी। पर्दे पर सिगरेट का धुंआ उड़ाते अशोक कुमार ने [[राम]] की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फ़िल्म के जरिए एंटी हीरो के पात्र को निभाने का जोखिम उठाया। यह जोखिम उनके लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ और इस फ़िल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। उसी दशक में उनकी एक और फ़िल्म महल आई, जिसमें [[मधुबाला]] थीं। सस्पेंस फ़िल्म महल को भी बेहद क़ामयाबी मिली। बाद के दिनों में जब हिंदी सिनेमा में [[दिलीप कुमार|दिलीप]], देव और राज की तिकड़ी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस समय भी उनका अभिनय लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा और उनकी फ़िल्में कामयाब होती रहीं। अपने दौर की अन्य अभिनेत्रियों के साथ-साथ अशोक कुमार ने [[मीना कुमारी]] के साथ भी कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें पाकीजा, बहू बेगम, एक ही रास्ता, बंदिश, आरती आदि शामिल हैं। अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी आशीर्वाद फ़िल्म के बिना अधूरी ही रहेगी। इस फ़िल्म में उन्होंने एकदम नए तरह के पात्र को निभाया। इस फ़िल्म में उनका गाया गीता '''रेलगाड़ी रेलगाड़ी..''' काफी लोकप्रिय हुआ था। | एक स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि [[1943]] में आई किस्मत फ़िल्म से बनी। पर्दे पर सिगरेट का धुंआ उड़ाते अशोक कुमार ने [[राम]] की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फ़िल्म के जरिए एंटी हीरो के पात्र को निभाने का जोखिम उठाया। यह जोखिम उनके लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ और इस फ़िल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। उसी दशक में उनकी एक और फ़िल्म महल आई, जिसमें [[मधुबाला]] थीं। सस्पेंस फ़िल्म महल को भी बेहद क़ामयाबी मिली। बाद के दिनों में जब हिंदी सिनेमा में [[दिलीप कुमार|दिलीप]], देव और राज की तिकड़ी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस समय भी उनका अभिनय लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा और उनकी फ़िल्में कामयाब होती रहीं। अपने दौर की अन्य अभिनेत्रियों के साथ-साथ अशोक कुमार ने [[मीना कुमारी]] के साथ भी कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें पाकीजा, बहू बेगम, एक ही रास्ता, बंदिश, आरती आदि शामिल हैं।<ref name="याहू जागरण" /> अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी आशीर्वाद फ़िल्म के बिना अधूरी ही रहेगी। इस फ़िल्म में उन्होंने एकदम नए तरह के पात्र को निभाया। इस फ़िल्म में उनका गाया गीता '''रेलगाड़ी रेलगाड़ी..''' काफी लोकप्रिय हुआ था। | ||
==चरित्र अभिनेता== | ==चरित्र अभिनेता== | ||
अशोक कुमार ने बाद के जीवन में चरित्र अभिनेता की भूमिकाएं निभानी शुरू कर दी थीं। इन भूमिकाओं में भी अशोक कुमार ने जीवंत अभिनय किया। अशोक कुमार गंभीर ही नहीं हास्य अभिनय में भी महारथ रखते थे। विक्टोरिया नंबर 203 फ़िल्म हो या शौकीन, अशोक कुमार ने हर किरदार में कुछ नया पैदा करने का प्रयास किया। उम्र बढ़ने के साथ ही उन्होंने सहायक और चरित्र अभिनेता का किरदार निभाना शुरु कर दिया लेकिन उनके अभिनय की ताजगी कायम रही। ऐसी फ़िल्मों में कानून, चलती का नाम गाड़ी, छोटी सी बात, मिली, खूबसूरत, गुमराह, एक ही रास्ता, बंदिनी, ममता आदि शामिल हैं। उन्होंने विलेन की भी भूमिका की। [[देव आनंद]] की ज्वैल थीफ में उन्होंने विलेन की भूमिका की थी। | अशोक कुमार ने बाद के जीवन में चरित्र अभिनेता की भूमिकाएं निभानी शुरू कर दी थीं। इन भूमिकाओं में भी अशोक कुमार ने जीवंत अभिनय किया। अशोक कुमार गंभीर ही नहीं हास्य अभिनय में भी महारथ रखते थे। विक्टोरिया नंबर 203 फ़िल्म हो या शौकीन, अशोक कुमार ने हर किरदार में कुछ नया पैदा करने का प्रयास किया। उम्र बढ़ने के साथ ही उन्होंने सहायक और चरित्र अभिनेता का किरदार निभाना शुरु कर दिया लेकिन उनके अभिनय की ताजगी कायम रही। ऐसी फ़िल्मों में कानून, चलती का नाम गाड़ी, छोटी सी बात, मिली, खूबसूरत, गुमराह, एक ही रास्ता, बंदिनी, ममता आदि शामिल हैं।<ref name="याहू जागरण1" /> उन्होंने विलेन की भी भूमिका की। [[देव आनंद]] की ज्वैल थीफ में उन्होंने विलेन की भूमिका की थी। | ||
==अन्य विशेषता== | ==अन्य विशेषता== | ||
'दादामुनी' मतलब बड़े भाई के नाम से मशहूर अशोक कुमार एक बेहतरीन चित्रकार, शतरंज खिलाड़ी, एक होम्योपैथ व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने कई फ़िल्मों में स्वयं गाने भी गाए। | 'दादामुनी' मतलब बड़े भाई के नाम से मशहूर अशोक कुमार एक बेहतरीन चित्रकार, शतरंज खिलाड़ी, एक होम्योपैथ व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने कई फ़िल्मों में स्वयं गाने भी गाए। | ||
फ़िल्म ही नहीं अशोक कुमार ने टीवी में भी काम किया। भारत के पहले सोप ओपेरा हम लोग में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई। सूत्रधार के रूप में अशोक कुमार हम लोग के एक अभिन्न अंग बन गए। दर्शक आखिर में की जाने वाली उनकी टिप्पणी का इंतजार करते थे क्योंकि वह टिप्पणी को हर बार अलग तरीके से दोहराते थे। इसके अलावा उन्होंने आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के जीवन पर आधारित धारावाहिक में भी बेहतरीन भूमिका की। | फ़िल्म ही नहीं अशोक कुमार ने टीवी में भी काम किया। भारत के पहले सोप ओपेरा हम लोग में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई। सूत्रधार के रूप में अशोक कुमार हम लोग के एक अभिन्न अंग बन गए। दर्शक आखिर में की जाने वाली उनकी टिप्पणी का इंतजार करते थे क्योंकि वह टिप्पणी को हर बार अलग तरीके से दोहराते थे। इसके अलावा उन्होंने आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के जीवन पर आधारित धारावाहिक में भी बेहतरीन भूमिका की।<ref name="याहू जागरण" /> | ||
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अशोक कुमार को फ़िल्मी सफर में कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया और क़रीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित किया। | अशोक कुमार को फ़िल्मी सफर में कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया और क़रीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित किया। | ||
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करने वाले दादामुनी 10 दिसंबर 2001 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। वह आज भले ही हमारे बीच नहीं हो लेकिन वह करीब 275 फ़िल्मों की ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जो हमेशा-हमेशा के लिए दर्शकों को सोचने, गुदगुदाने और रोमांचित करने के लिए पर्याप्त हैं। | करने वाले दादामुनी 10 दिसंबर 2001 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। वह आज भले ही हमारे बीच नहीं हो लेकिन वह करीब 275 फ़िल्मों की ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जो हमेशा-हमेशा के लिए दर्शकों को सोचने, गुदगुदाने और रोमांचित करने के लिए पर्याप्त हैं।<ref name="याहू जागरण1" /> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==बाहरी कड़ियाँ== | |||
*[http://www.imdb.com/name/nm0006369/ अशोक कुमार] | |||
*[http://downloads.movies.indiatimes.com/site/feb2001/tunen2.html फ़िल्मफ़ेयर] |
Revision as of 10:14, 12 October 2010
अशोक कुमार
जन्म: 13 अक्तूबर, 1911 - मृत्यु: 10 दिसंबर, 2001
अशोक कुमार हिन्दी फ़िल्मों के अभिनेता थे। अशोक कुमार को सन 1999 में भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। हिंदी सिनेमा के युगपुरुष कुमुद कुमार गांगुली उर्फ अशोक कुमार को ऐसे अभिनेता के रुप में याद किया जाता है जिन्होंने उस समय प्रचलित थियेटर शैली को समाप्त कर अभिनय को स्वाभाविकता प्रदान की और छह दशकों तक अपने बेहतरीन काम से सिनेप्रेमियों को रोमांचित किया।[1] दादा मुनी यानी अशोक कुमार का असली नाम कुमुद गांगुली है। अशोक कुमार ने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया था।
जीवन परिचय
अशोक कुमार का जन्म बिहार के भागलपुर शहर के आदमपुर मोहल्ले के एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। अशोक कुमार सभी भाई-बहनों में बड़े थे। गायक एवं अभिनेता किशोर कुमार एवं अभिनेता अनूप कुमार उनके छोटे भाई थे। अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में प्राप्त की थी और बाद मे अशोक कुमार ने अपनी स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की थी। अशोक कुमार ने अभिनय की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर दिया और अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की थी। वह कभी भी जोखिम लेने में नहीं घबराए और पहली बार हिंदी सिनेमा में एंटी हीरो की भूमिका की थी।[1] अशोक कुमार ने सन 1934 मे न्यू थिएटर मे बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट काम किया था।
अशोक, अनूप और किशोर कुमार ने चलती का नाम गाड़ी में काम किया। इस कामेडी फ़िल्म में भी अशोक कुमार ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में मधुबाला ने भी काम किया था। किशोर कुमार ने अपने कई साक्षात्कारों में यह बात स्वीकार की थी कि उन्हें न केवल अभिनय बल्कि गाने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से मिली थी क्योंकि अशोक कुमार ने बचपन में उनके भीतर बालगीतों के जरिए गायन के संस्कार डाले थे।[2]
अभिनय की शुरुआत
फ़िल्म जगत में दादामुनी के नाम से लोकप्रिय अशोक कुमार के अभिनय सफर की शुरुआत किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं थी। 1936 में बांबे टाकीज स्टूडियो की फ़िल्म जीवन नैया के अभिनेता अचानक बीमार हो गए और कंपनी को नए कलाकार की तलाश थी। ऐसी स्थिति में स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की नजर आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लैबोरेटरी असिस्टेंट अशोक कुमार पर पड़ी और उनसे अभिनय करने का प्रस्ताव दिया था। यहीं से उनके अभिनय का सफर शुरु हो गया। उनकी अगली फ़िल्म अछूत कन्या थी। 1937 में प्रदर्शित यह फ़िल्म अछूत में देविका रानी उनकी नायिका थीं। यह फ़िल्म क़ामयाब रही और उसने दादामुनी को बड़े सितारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया। उस ज़माने के लिहाज़ से यह महत्वपूर्ण फ़िल्म थी और इसी के साथ सामाजिक समस्याओं पर आधारित फ़िल्मों की शुरुआत हुई। देविका रानी के साथ उन्होंने आगे भी कई फ़िल्में की जिनमें इज्जत, सावित्री, निर्मला आदि शामिल हैं। इसके बाद उनकी जोड़ी लीला चिटनिस के साथ बनी।[1]
फ़िल्मों में प्रशंसा
वर्ष | फ़िल्म |
---|
एक स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि 1943 में आई किस्मत फ़िल्म से बनी। पर्दे पर सिगरेट का धुंआ उड़ाते अशोक कुमार ने राम की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फ़िल्म के जरिए एंटी हीरो के पात्र को निभाने का जोखिम उठाया। यह जोखिम उनके लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ और इस फ़िल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। उसी दशक में उनकी एक और फ़िल्म महल आई, जिसमें मधुबाला थीं। सस्पेंस फ़िल्म महल को भी बेहद क़ामयाबी मिली। बाद के दिनों में जब हिंदी सिनेमा में दिलीप, देव और राज की तिकड़ी की लोकप्रियता चरम पर थी, उस समय भी उनका अभिनय लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा और उनकी फ़िल्में कामयाब होती रहीं। अपने दौर की अन्य अभिनेत्रियों के साथ-साथ अशोक कुमार ने मीना कुमारी के साथ भी कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें पाकीजा, बहू बेगम, एक ही रास्ता, बंदिश, आरती आदि शामिल हैं।[2] अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी आशीर्वाद फ़िल्म के बिना अधूरी ही रहेगी। इस फ़िल्म में उन्होंने एकदम नए तरह के पात्र को निभाया। इस फ़िल्म में उनका गाया गीता रेलगाड़ी रेलगाड़ी.. काफी लोकप्रिय हुआ था।
चरित्र अभिनेता
अशोक कुमार ने बाद के जीवन में चरित्र अभिनेता की भूमिकाएं निभानी शुरू कर दी थीं। इन भूमिकाओं में भी अशोक कुमार ने जीवंत अभिनय किया। अशोक कुमार गंभीर ही नहीं हास्य अभिनय में भी महारथ रखते थे। विक्टोरिया नंबर 203 फ़िल्म हो या शौकीन, अशोक कुमार ने हर किरदार में कुछ नया पैदा करने का प्रयास किया। उम्र बढ़ने के साथ ही उन्होंने सहायक और चरित्र अभिनेता का किरदार निभाना शुरु कर दिया लेकिन उनके अभिनय की ताजगी कायम रही। ऐसी फ़िल्मों में कानून, चलती का नाम गाड़ी, छोटी सी बात, मिली, खूबसूरत, गुमराह, एक ही रास्ता, बंदिनी, ममता आदि शामिल हैं।[1] उन्होंने विलेन की भी भूमिका की। देव आनंद की ज्वैल थीफ में उन्होंने विलेन की भूमिका की थी।
अन्य विशेषता
'दादामुनी' मतलब बड़े भाई के नाम से मशहूर अशोक कुमार एक बेहतरीन चित्रकार, शतरंज खिलाड़ी, एक होम्योपैथ व कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने कई फ़िल्मों में स्वयं गाने भी गाए। फ़िल्म ही नहीं अशोक कुमार ने टीवी में भी काम किया। भारत के पहले सोप ओपेरा हम लोग में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई। सूत्रधार के रूप में अशोक कुमार हम लोग के एक अभिन्न अंग बन गए। दर्शक आखिर में की जाने वाली उनकी टिप्पणी का इंतजार करते थे क्योंकि वह टिप्पणी को हर बार अलग तरीके से दोहराते थे। इसके अलावा उन्होंने आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के जीवन पर आधारित धारावाहिक में भी बेहतरीन भूमिका की।[2]
पुरस्कार
अशोक कुमार को फ़िल्मी सफर में कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया और क़रीब छह दशक तक बेमिसाल अभिनय से दर्शकों को रोमांचित किया।
सन | पुरस्कार |
---|---|
1959 | संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। |
1962 | राखी फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। |
1967 | अफ़साना फ़िल्म के लिए सहायक अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। |
1969 | आशीर्वाद फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। |
1969 | आशीर्वाद फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला था। |
1988 | दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। |
1994 | स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। |
1995 | फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। |
1999 | पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। |
2001 | उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अवध सम्मान दिया गय। |
2007 | स्टार स्क्रीन की तरफ़ से "विशेष पुरस्कार" पुरस्कार से सम्मान दिया गया। |
मृत्यु
करने वाले दादामुनी 10 दिसंबर 2001 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। वह आज भले ही हमारे बीच नहीं हो लेकिन वह करीब 275 फ़िल्मों की ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जो हमेशा-हमेशा के लिए दर्शकों को सोचने, गुदगुदाने और रोमांचित करने के लिए पर्याप्त हैं।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 युगपुरुष थे दादामुनी उर्फ अशोक कुमार (हिन्दी) (एच टी एम एल) याहू जागरण। अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2010।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 सहज अभिनय के पर्याय थे अशोक कुमार (हिन्दी) (एच टी एम एल) याहू जागरण। अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2010।