शुजाउद्दौला: Difference between revisions
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*मुग़ल सम्राट तथा उसके सहायक [[मराठा|मराठों]] को 1761 ई0 में [[पानीपत युद्ध|पानीपत]] के [[पानीपत युद्ध तृतीय|तृतीय युद्ध]] में परास्त किया। शुजाउद्दौला ने सदैव केवल अपने वंश के ही हितों पर ध्यान दिया। | *मुग़ल सम्राट तथा उसके सहायक [[मराठा|मराठों]] को 1761 ई0 में [[पानीपत युद्ध|पानीपत]] के [[पानीपत युद्ध तृतीय|तृतीय युद्ध]] में परास्त किया। शुजाउद्दौला ने सदैव केवल अपने वंश के ही हितों पर ध्यान दिया। | ||
*1764 ई0 में उसने [[बंगाल]] से भागकर सहायतार्थ आने वाले वहाँ के नवाब मीर क़ासिम तथा शाहआलम द्वितीय से कम्पनी के विरुद्ध एक सन्धि की, पर [[बक्सर का युद्ध|बक्सर के युद्ध]] में वह पराजित हुआ। | *1764 ई0 में उसने [[बंगाल]] से भागकर सहायतार्थ आने वाले वहाँ के नवाब मीर क़ासिम तथा शाहआलम द्वितीय से कम्पनी के विरुद्ध एक सन्धि की, पर [[बक्सर का युद्ध|बक्सर के युद्ध]] में वह पराजित हुआ। | ||
*1765 ई. में उसने कड़ा और [[इलाहाबाद]] के ज़िलों सहित 50 लाख रुपये की धनराशि हरज़ाने के रूप में देकर अंग्रेज़ों से सन्धि कर ली। साथ ही उसने अंग्रेज़ों से एक सुरक्षात्मक सन्धि भी की, जिसके अनुसार उसके राज्य की सीमाओं के रक्षार्थ कम्पनी ने उसे इस क़रार के अनुसार सहायता देना स्वीकार किया कि सेना का सम्पूर्ण व्यय भार उसे वहन करना होगा। | *1765 ई. में उसने [[कड़ा]] और [[इलाहाबाद]] के ज़िलों सहित 50 लाख रुपये की धनराशि हरज़ाने के रूप में देकर अंग्रेज़ों से सन्धि कर ली। साथ ही उसने अंग्रेज़ों से एक सुरक्षात्मक सन्धि भी की, जिसके अनुसार उसके राज्य की सीमाओं के रक्षार्थ कम्पनी ने उसे इस क़रार के अनुसार सहायता देना स्वीकार किया कि सेना का सम्पूर्ण व्यय भार उसे वहन करना होगा। | ||
*1772 ई. में उसने रुहेलों से इस आशय की सन्धि की कि यदि मराठों ने उन पर आक्रमण किया तो वह मराठों को इधर न बढ़ने देगा और इसके बदले में रुहेल उसे 40 लाख रुपये की धनराशि देंगे। | *1772 ई. में उसने रुहेलों से इस आशय की सन्धि की कि यदि मराठों ने उन पर आक्रमण किया तो वह मराठों को इधर न बढ़ने देगा और इसके बदले में रुहेल उसे 40 लाख रुपये की धनराशि देंगे। | ||
*1773 में मराठों ने रुहेलखण्ड पर आक्रमण किया, किन्तु वे बिना किसी युद्ध के ही वापस लौट गये। अब शुजाउद्दौला ने रुहेलों से 40 लाख रुपयों की निर्धारित धनराशि की माँग की और रुहेल उसे देने में आनाकानी करने लगे। अतएव शुजाउद्दौला ने कम्पनी के साथ बनारस की प्रसिद्ध सन्धि कर ली, जिसकी शर्तों के अनुसार 50 लाख रुपये के बदले उन्हें कड़ा और इलाहाबाद ज़िले को पुनः प्राप्त हो गये तथा [[लखनऊ]] में कम्पनी की एक पलटन रखने के बदले उन्हें निश्चित धनराशि भी प्राप्त हुई। [[बनारस]] में ही उसे बंगाल के गवर्नर [[वारेन हेस्टिंग्स]] द्वारा यह आश्वासन मिला कि कम्पनी रुहेलों से 40 लाख रुपये प्राप्त करने में शुजउद्दौला की सहायता अंग्रेज़ पलटन के द्वारा करेगी, क्योंकि शुजाउद्दौला की दृष्टि में रुहेलों से वह धनराशि उसको मिलनी थी। | *1773 में मराठों ने रुहेलखण्ड पर आक्रमण किया, किन्तु वे बिना किसी युद्ध के ही वापस लौट गये। अब शुजाउद्दौला ने रुहेलों से 40 लाख रुपयों की निर्धारित धनराशि की माँग की और रुहेल उसे देने में आनाकानी करने लगे। अतएव शुजाउद्दौला ने कम्पनी के साथ बनारस की प्रसिद्ध सन्धि कर ली, जिसकी शर्तों के अनुसार 50 लाख रुपये के बदले उन्हें कड़ा और इलाहाबाद ज़िले को पुनः प्राप्त हो गये तथा [[लखनऊ]] में कम्पनी की एक पलटन रखने के बदले उन्हें निश्चित धनराशि भी प्राप्त हुई। [[बनारस]] में ही उसे बंगाल के गवर्नर [[वारेन हेस्टिंग्स]] द्वारा यह आश्वासन मिला कि कम्पनी रुहेलों से 40 लाख रुपये प्राप्त करने में शुजउद्दौला की सहायता अंग्रेज़ पलटन के द्वारा करेगी, क्योंकि शुजाउद्दौला की दृष्टि में रुहेलों से वह धनराशि उसको मिलनी थी। |
Revision as of 07:50, 30 October 2010
अवध का तृतीय स्वतंत्र नवाब और वहाँ के द्वितीय नवाब सफदरजंग का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। शुजाउद्दौला को आलमगीर द्वितीय (1754-59) तथा शाहआलम द्वितीय (1759-1806) नामक मुग़ल सम्राट से वज़ीर का ओहदा मिला। किन्तु उसने अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के समय सम्राट की कोई सहायता नहीं की, जब अब्दाली ने 1756 ई0 में दिल्ली को लूटा।
- 1759 ई0 में पंजाब पर पूर्ण अधिकार कर लिया।
- मुग़ल सम्राट तथा उसके सहायक मराठों को 1761 ई0 में पानीपत के तृतीय युद्ध में परास्त किया। शुजाउद्दौला ने सदैव केवल अपने वंश के ही हितों पर ध्यान दिया।
- 1764 ई0 में उसने बंगाल से भागकर सहायतार्थ आने वाले वहाँ के नवाब मीर क़ासिम तथा शाहआलम द्वितीय से कम्पनी के विरुद्ध एक सन्धि की, पर बक्सर के युद्ध में वह पराजित हुआ।
- 1765 ई. में उसने कड़ा और इलाहाबाद के ज़िलों सहित 50 लाख रुपये की धनराशि हरज़ाने के रूप में देकर अंग्रेज़ों से सन्धि कर ली। साथ ही उसने अंग्रेज़ों से एक सुरक्षात्मक सन्धि भी की, जिसके अनुसार उसके राज्य की सीमाओं के रक्षार्थ कम्पनी ने उसे इस क़रार के अनुसार सहायता देना स्वीकार किया कि सेना का सम्पूर्ण व्यय भार उसे वहन करना होगा।
- 1772 ई. में उसने रुहेलों से इस आशय की सन्धि की कि यदि मराठों ने उन पर आक्रमण किया तो वह मराठों को इधर न बढ़ने देगा और इसके बदले में रुहेल उसे 40 लाख रुपये की धनराशि देंगे।
- 1773 में मराठों ने रुहेलखण्ड पर आक्रमण किया, किन्तु वे बिना किसी युद्ध के ही वापस लौट गये। अब शुजाउद्दौला ने रुहेलों से 40 लाख रुपयों की निर्धारित धनराशि की माँग की और रुहेल उसे देने में आनाकानी करने लगे। अतएव शुजाउद्दौला ने कम्पनी के साथ बनारस की प्रसिद्ध सन्धि कर ली, जिसकी शर्तों के अनुसार 50 लाख रुपये के बदले उन्हें कड़ा और इलाहाबाद ज़िले को पुनः प्राप्त हो गये तथा लखनऊ में कम्पनी की एक पलटन रखने के बदले उन्हें निश्चित धनराशि भी प्राप्त हुई। बनारस में ही उसे बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स द्वारा यह आश्वासन मिला कि कम्पनी रुहेलों से 40 लाख रुपये प्राप्त करने में शुजउद्दौला की सहायता अंग्रेज़ पलटन के द्वारा करेगी, क्योंकि शुजाउद्दौला की दृष्टि में रुहेलों से वह धनराशि उसको मिलनी थी।
- 1774 ई0 में नवाब ने अंग्रेज़ पलटन की सहायता से रुहेलखण्ड पर आक्रमण किया, वहाँ के शासक हाफ़िज अहमद ख़ाँ को मीरनपुर कटरा के युद्ध में पराजित किया और रुहेलखण्ड को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। दूसरे ही वर्ष शुजाउद्दौला की मृत्यु हो गयी।
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