कड़ा

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कड़ा इलाहाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक नगर है। यहाँ पर ख़िलजी वंश का सुल्तान जलालुद्दीन ख़िलजी 1296 ई. में अपने भतीजे एवं दामाद अलाउद्दीन ख़िलजी के हाथों मारा गया था। मुस्लिमों के शासन के समय कड़ा राजनीतिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता था। बल्कि एक समय तो यह भी कहा जाने लगा था कि जिसके पास कड़ा है, वही दिल्ली का भावी सुल्तान है।

स्थिति तथा इतिहास

कड़ा उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद से 40 मील (लगभग 64 कि.मी.)की दूरी पर अवस्थित है। कहा जाता है कि इस स्थान पर जह्र ऋषि का आश्रम था, जैसा कि यहाँ के आधा मील पर स्थित 'जाह्रवीकुंड' से सूचित होता है। मुस्लिमों के शासन काल में कड़ा एक सूबे के रूप में मुख्य स्थान रखता था। दिल्ली के सुल्तान जलालुद्दीन ख़िलजी के शासनकाल[1] में उसका भतीजा एवं दामाद अलाउद्दीन ख़िलजी कड़ा का सूबेदार नियुक्त किया गया था।

कड़ा के ही निकट गंगा नदी को नाव से पार करते समय बूढ़े जलालुद्दीन को राज्य लोलुपता के नशे में चूर अलाउद्दीन ने धोखे से मार दिया और उसका सिर वहीं पास के किसी स्थान पर दफ़ना दिया, जिससे वह स्थान 'गुमसिरा' कहलाया।

दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ ने कड़ा के पास एक नया नगर 'स्वर्गद्वार' बसाया था। दोआबे में भयंकर अकाल पड़ने पर वह वहाँ जाकर रहने लगा। यहीं पर वह अनेक भूखों लोगों को बसाने के लिए ले गया और अयोध्या से अन्न मंगवाकर बंटवाया। राजनीतिक दृष्टि से कड़ा अपने चरमोत्कर्ष के समय बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाने लगा था। यह भी प्रसिद्ध हो चुका था कि जो कड़ा का मालिक होगा, वही दिल्ली का वास्तविक भावी सुल्तान भी होगा।

मुग़लों के शासन काल में भी कड़ा में सूबेदार रहता था। 'शहज़ादा सलीम'[2] ने जब अकबर के विरुद्ध बग़ावत की थी, तब वह कड़ा में ही रहता था। कड़ा का प्राचीन क़िला उल्लेखनीय है। यह स्थान संत मलूकदास की जन्म भूमि के रूप में भी प्रसिद्ध है।[3][4]

कृषि

अपने प्रारम्भिक समय से ही कड़ा कृषि क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता था। यहाँ चावल, गेहूँ एवं शक्कर आदि का उत्पादन बहुत बड़ी मात्रा में होता था। अपनी कृषि पैदावार के लिए भी कड़ा प्रसिद्ध था।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1290-96 ई.
  2. बाद में जहाँगीर
  3. अजगर करै ना चाकरी, पंछी करै ना काम, दास मलूका कह गये सबके दातस राम।- यह दोहा इन्हीं मलूकदास का है।
  4. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 128 |


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