भारत माता मन्दिर, वाराणसी

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भारत माता मन्दिर, वाराणसी
विवरण 'भारत माता मंदिर' वाराणसी, उत्तर प्रदेश के पर्यटन प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। मंदिर 'महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ' के परिसर में अवस्थित है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला वाराणसी
निर्माता बाबू शिवप्रसाद गुप्त
संबंधित लेख महात्मा गाँधी, शिवप्रसाद गुप्त, भारत माता मन्दिर, हरिद्वार उद्घाटनकर्ता महात्मा गाँधी
विशेष मंदिर में भू मानचित्र तैयार करने में 20 शिल्पी लगे थे, जबकि मंदिर का बाहरी कलेवर 25 शिल्पियों ने लगभग पांच वर्ष में तैयार किया।
बाहरी कड़ियाँ मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति स्थापित नहीं है। केवल भारत का भू मानचित्र है, जो संगमरमर के टुकड़ो पर उकेरा गया है।

भारत माता मन्दिर उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरियों में से एक वाराणसी के राजघाट पर स्थित अपने ढंग का अनोखा मंन्दिर है। यह मंदिर केवल 'भारत माता' को समर्पित है। मंदिर 'महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ' के परिसर में अवस्थित है। भारत माता मंदिर का निर्माण बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा करवाया गया था, जबकि इसका उद्घाटन वर्ष 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा हुआ था। मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति स्थापित नहीं है। केवल भारत का भू मानचित्र है, जो संगमरमर के टुकड़ो पर उकेरा गया है।

निर्माण

राष्ट्र रत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त को 1913 में करांची कांग्रेस से लौटते हुए मुम्बई जाने का अवसर मिला था। वहाँ से वह पुणे गये और धोंडो केशव कर्वे का विधवा आश्रम देखा। आश्रम में ज़मीन पर 'भारत माता' का एक मानचित्र बना था, जिसमें मिट्टी से पहाड़ एवं नदियां बनी थीं। वहाँ से लौटने के बाद शिवप्रसाद गुप्त ने इसी तरह का संगमरमर का भारत माता का मंदिर बनाने का विचार किया। उन्होंने इसके लिये अपने मित्रों से विचार-विमर्श किया। उस समय के प्रख्यात इंजीनियर दुर्गा प्रसाद सपनों के मंदिर को बनवाने के लिये तैयार हो गये और उनकी देखरेख में काम शुरू हुआ।[1]

उद्घाटन

1936 के शारदीय नवरात्र में महात्मा गांधी ने पहले दर्शक के रूप में मंदिर का अवलोकन किया। पांच दिन बाद यानी 'विजयादशमी' को उन्होंने मंदिर का उद्घाटन किया। भू मानचित्र तैयार करने में 20 शिल्पी लगे थे, जबकि मंदिर का बाहरी कलेवर 25 शिल्पियों ने लगभग पांच वर्ष में तैयार किया। मंदिर के संस्थापक राष्ट्र रत्न शिवप्रसाद गुप्त ने अपना नाम कहीं नहीं दिया है।

गाँधीजी का कथन

'काशी विद्यापीठ', वर्तमान में 'महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ' के परिसर में दुनिया के इस अनोखे मंदिर का निर्माण हुआ है। इसका उद्घाटन करने के बाद महात्मा गांधी ने अपने सम्बोधन में कहा था कि- "इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है। मुझे आशा है कि यह मंदिर सभी धर्मों,सभी जातियों के लोगों के लिये एक सार्वदेशिक मंच का रूप ग्रहण कर लेगा और इस देश में पारस्परिक धार्मिक एकता, शांति तथा प्रेम की भावना को बढ़ाने में योगदान देगा।"[1]

मानचित्र

भारत भूमि की समुद्र तल से उंचाई और गहराई आदि के मद्देनज़र संगमरमर बहुत ही सावधानी से तराशे गये हैं। मानचित्र को मापने के लिये धरातल का मान एक इंच बराबर 6.4 मील जबकि ऊंचाई एक इंच में दो हज़ार फ़ीट दिखायी गयी है। एवरेस्ट की ऊंचाई दिखाने के लिये पौने 15 इंच ऊँचा संगमरमर का एक टुकड़ा लगाया गया है। मानचित्र में हिमालय समेत 450 चोटियां, 800 छोटी व बड़ी नदियां उकेरी गयी हैं। बडे़ शहर सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी भौगोलिक स्थिति के मुताबिक़ दर्शाये गये हैं। बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने इस मानचित्र को ही जननी जन्मभूमि के रूप में प्रतिष्ठा दी। मंदिर की दीवार पर बंकिमचंद्र चटर्जी की कविता 'वन्दे मातरम' और उद्घाटन के समय सभा स्थल पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गयी कविता ‘भारत माता का यह मंदिर’ समता का संवाद है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भारत मंदिर उपेक्षा का शिकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 28 दिसम्बर, 2013।

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