नामकरण संस्कार: Difference between revisions
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*इससे उसके प्रति किया गया मारण, उच्चाटन तथा मोहन आदि अभिचार कर्म सफल नहीं हो पाता है। | *इससे उसके प्रति किया गया मारण, उच्चाटन तथा मोहन आदि अभिचार कर्म सफल नहीं हो पाता है। | ||
*नक्षत्र या राशियों के अनुसार नाम रखने से लाभ यह है कि इससे जन्मकुंडली बनाने में आसानी रहती है। | *[[नक्षत्र]] या राशियों के अनुसार नाम रखने से लाभ यह है कि इससे जन्मकुंडली बनाने में आसानी रहती है। | ||
*नाम भी बहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण रखना चाहिये। अशुभ तथा भद्दा नाम कदापि नहीं रखना चाहिये। | *नाम भी बहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण रखना चाहिये। अशुभ तथा भद्दा नाम कदापि नहीं रखना चाहिये। | ||
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Revision as of 05:27, 2 November 2010
- हिन्दू धर्म संस्कारों में नामकरण-संस्कार पंचम संस्कार है।
- यह संस्कार बालक के जन्म होने के ग्यारहवें दिन में कर लेना चाहिये।
- इसका कारण यह है कि पराशर स्मृति के अनुसार जन्म के सूतक में ब्राह्मण दस दिन में, क्षत्रिय बारह दिन में, वैश्य पंद्रह दिन में और शूद्र एक मास में शुद्ध होता है।
- अतः अशौच बीतने पर ही नामकरण-संस्कार करना चाहिये, क्योंकि नाम के साथ मनुष्य का घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है।
- नाम प्रायः दो होते हैं- एक गुप्त नाम दूसरा प्रचलित नाम। जैसे कहा है कि- दो नाम निश्चित करें, एक नाम नक्षत्र-सम्बन्धी हो और दूसरा नाम रुचि के अनुसार रखा गया हो। [1]
- गुप्त नाम केवल माता-पिता को छोड़कर अन्य किसी को मालूम न हो।
- इससे उसके प्रति किया गया मारण, उच्चाटन तथा मोहन आदि अभिचार कर्म सफल नहीं हो पाता है।
- नक्षत्र या राशियों के अनुसार नाम रखने से लाभ यह है कि इससे जन्मकुंडली बनाने में आसानी रहती है।
- नाम भी बहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण रखना चाहिये। अशुभ तथा भद्दा नाम कदापि नहीं रखना चाहिये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 'द्वे नामनी कारयेत् नाक्षत्रिकं नाम अभिप्रायिकं च' (चरकसंहिता)।