हठयोग

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:57, 1 July 2015 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''हठयोग''' शारीरिक और मानसिक विकास के लिए विश्व की प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

हठयोग शारीरिक और मानसिक विकास के लिए विश्व की प्राचीनतम भारतीय योग साधना पद्धति है, जिसका शताब्दियों से भारत के योगियों द्वारा अभ्यास किया जाता रहा है। यह चित्तवृत्तियों के प्रवाह को संसार की ओर जाने से रोककर अंतर्मुखी करने की प्राचीन साधना पद्धति है। इसमें प्रसुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर नाड़ी मार्ग से ऊपर उठाने का प्रयास किया जाता है और विभिन्न चक्रों में स्थिर करते हुए उसे शीर्षस्थ सहस्त्रार चक्र तक ले जाया जाता है। 'हठयोग प्रदीपिका' इस पद्धति का प्रमुख ग्रंथ है।

संक्षिप्त परीचय

'हठयोग' के विषय में धारणा है कि हठ शब्द के 'हठ्' + 'अच्' प्रत्यय के साथ 'प्रचण्डता' या 'बल' अर्थ में प्रयुक्त होता है। हठेन या हठात् क्रिया-विशेषण के रूप में प्रयुक्त करने पर इसका अर्थ बलपूर्वक या प्रचंडता पूर्वक, अचानक या दुराग्रहपूर्वक अर्थ में लिया जाता है। 'हठ विद्या' स्त्रीलिंग अर्थ में 'बलपूर्वक मनन करने' के विज्ञान के अर्थ में ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार सामान्यतः लोग हठयोग को एक ऐसे योग के रूप में जानते हैं, जिसमें हठ पूर्वक कुछ शारीरिक एवं मानसिक क्रियाएं की जातीं हैं। इसी कारण सामान्य शरीर शोधन की प्रक्रियाओं से हटकर की जाने वाली शरीर शोधन की षट् क्रियाओं[1] को हठयोग मान लिया जाता है। जबकि ऐसा नहीं है। षटकर्म तो केवल शरीर शोधन के साधन हैं, वास्तव में हठयोग तो शरीर एवं मन के संतुलन द्वारा राजयोग प्राप्त करने के पूर्व सोपान के रूप में विस्तृत योग विज्ञान की चार शाखाओं में से एक शाखा है।

शब्द रचना

'हठ' शब्द की रचना 'ह' और 'ठ' दो रहस्यमय एवं प्रतीकात्मक अक्षरों से हुई है। 'ह' का अर्थ 'सूर्य' और 'ठ' का अर्थ 'चंद्र' है। योग का अर्थ इन दोनों का संयोजन या एकीकरण है। सूर्य तथा चंद्र के एकीकरण या संयोजज का माध्यम हठयोग है। प्राण (प्रमुख जीवनी शक्ति) ही सूर्य है। हृदय के माध्यम से यह क्रियाशील होकर श्वसन तथा रक्त के संचार का कार्य संपादित करता है। 'अपान' ही चंद्र है, जो शरीर से अशुद्धियों के उत्सर्जन और निष्कासन का कार्य संपादित करने वाली सूक्ष्म जीवनी शक्ति है। सूर्य तथा चंद्र (ह एवं ठ) मानव शरीर के दो ध्रुवों के प्रतीक हैं। जीवन की सारी क्रियाओं और गतिविधियों को बनाए रखने में इन दो जीवनी शक्तियों का पारस्परिक सामंजस्य आवश्यक है। ये मानव शरीर के माध्यम से कार्यरत सार्वभौमिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। मानव हृदय में स्थित प्राण (जीवनी शक्ति) ही ग्रह, नक्षत्र, सूर्य-चंद्र की गति को नियंत्रित करता है तथा वायु, विद्युत, चुम्बकत्व, प्रकाश, ऊष्मा, रेडियो-तरंग इत्यादि शक्तियों में अभिव्यक्त होता है।[2]

क्रिया की पूर्णता

स्थूल रूप से हठयोग अथवा प्राणायाम क्रिया तीन भागों में पूर्ण होती है-

  1. रेचक - अर्थात श्वास को सप्रयास बाहर छोड़ना।
  2. पूरक - अर्थात श्वास को सप्रयास अन्दर खींचना।
  3. कुम्भक - अर्थात श्वास को सप्रयास रोके रखना।

कुम्भक दो प्रकार से संभव है-

(क) बर्हिःकुम्भक - अर्थात श्वास को बाहर निकालकर बाहर ही रोके रखना।
(ख) अन्तःकुम्भक - अर्थात श्वास को अन्दर खींचकर अन्दर ही रोके रखना।

इस प्रकार सप्रयास प्राणों को अपने नियंत्रण से गति देना हठयोग है। यह हठयोग राजयोग की सिद्धि के लिए आधारभूमि बनाता है। बिना हठयोग की साधना के राजयोग (समाधि) की प्राप्ति बड़ा कठिन कार्य है। अतः हठयोग की साधना सिद्ध होने पर राजयोग की ओर आगे बढ़ने में सहजता होती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नेति, धौति, कुंजल वस्ति, नौलि, त्राटक, कपालभाति
  2. हठयोग क्या है (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 01 जुलाई, 2015।

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः