वीसलदेव रासो

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  • वीरगीत के रूप में सबसे पुरानी पुस्तक 'बीसलदेवरासो' मिलती है, यद्यपि उसमें समयानुसार भाषा के परिवर्तन का आभास मिलता है। जो रचना कई सौ वर्षों से लोगों में बराबर गाई जाती रही हो, उसकी भाषा अपने मूल रूप में नहीं

रह सकती। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण 'आल्हा' है जिसको गाने वाले प्राय: समस्त उत्तरी भारत में पाए जाते हैं।

  • वीरगाथा काल के ग्रंथ, जिनकी या तो प्रतियाँ मिलती हैं या कहीं उल्लेख मात्र पाया जाता है। यह ग्रंथ 'रासो' कहलाते हैं। कुछ लोग इस शब्द का संबंध 'रहस्य' से बतलाते हैं। पर 'बीसलदेवरासो' में काव्य के अर्थ में 'रसायण' शब्द बार-बार आया है। अत: हमारी समझ में इसी 'रसायण' शब्द से होते-होते 'रासो' हो गया है।
  • वीसलदेव पश्चिमी राजस्थान के राजा थे।
  • वीसलदेव रासो की रचना तिथि सं. 1400 वि. के आसपास की है।
  • इसके रचयिता नरपति नाल्ह हैं।
  • रचना वीर गीतों के रुप में उपलब्ध है।
  • इसमें वीसलदेव के जीवन के 12 वर्षों के कालखण्ड का वर्णन किया गया है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।

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