कोलकाता की संस्कृति

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:26, 4 June 2011 by लक्ष्मी गोस्वामी (talk | contribs) ('{{पुनरीक्षण}} उपनिवेशवादी अंग्रेज़ों के द्वारा भव्य ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

उपनिवेशवादी अंग्रेज़ों के द्वारा भव्य यूरोपीय राजधानी के रूप में अभिकल्पित कोलकाता अब भारत के सबसे अधिक निर्धन और सर्वाधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है। यह अत्यधिक विविधताओं और अंतर्विरोधों के शहर के रूप में विकसित हुआ है। कोलकाता को अपनी अलग पहचान पाने के लिए तीव्र यूरोपीय प्रभाव को आत्मसात करना था और औपनिवेशिक विरासत की सीमाओं से बाहर आना था। इस प्रक्रिया में शहर ने पूर्व और पश्चिम का एक संयोग बना लिया, जिसे 19वीं शताब्दी के कुलीन बंगालियों के जीवन कार्यों में अभिव्यक्ति मिली। इस वर्ग के सबसे विशिष्ट व्यक्तित्व थे, कवि और रहस्यवादि रवीन्द्रनाथ टैगोर भारतीय शहरों में सबसे बड़ा और सबसे अधिक जीवन्त यह शहर अजेय लगने वाली आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं के बीच फला-फूला है। यहाँ के नागरिकों ने अत्यधिक जीवंतता दिखाई है, जो कला व संस्कृति में उनकी अभिरुचि और एक स्तर की बौद्धिक ओजस्विता में प्रदर्शित होती है। यहाँ की राजनीतिक जागरुकता देश में अन्यत्र दुर्लभ है। कोलकाता के पुस्तक मेलों, कला प्रदर्शनियों और संगीत सभाओं में जैसी भीड़ होती है, वैसी भारत के किसी अन्य शहर में नहीं होती। दीवारों पर वाद-विवाद का अच्छा-ख़ासा आदान-प्रदान होता है, जिसके कारण कोलकाता को इश्तहारों का शहर कहा जाने लगा है।

प्रबल जीवन शक्ति के बावजूद कोलकाता शहर में कई निवासी सांस्कृतिक पर्यावरण से बहुत दूर ख़ासी ख़राब स्थितियों में जीवन-यापन करते हैं। हालाँकि शहर की ऊर्जा, सबसे पिछड़ी झोपड़ियों तक भी प्रवाहित होती है, क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में कोलकातावासी ऐसे लोगों की सहायता गम्भीरतापूर्वक करते हैं, जो ग़रीब व पीड़ित लोगों की मदद में जुटे हैं। संक्षेप में, कोलकाता विदेशियों के साथ-साथ अनेक भारतीयों के लिए भी रहस्यमय बना हुआ है। यह नवागतों के लिए पहेली है और वहाँ रहने वाले लोगों के मन में एक स्थायी लगाव उत्पन्न करता है।

जनजीवन

कोलकाता शहर में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक, लगभग 33,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। शहर के कई इलाक़ों में भीड़भाड़ असहनीय अनुपात में पहुँच गई है। कोलकाता में लगभग एक सदी से अधिक समय से उच्च जनसंख्या वृद्धि दर रही है, किन्तु 1947 में भारत के विभाजन और 1970 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में हुए बांग्लादेश युद्ध ने जनसंख्या के अवक्षेप को तेज़ी से बढ़ाया। उत्तरी व दक्षिणी उपनगरों में बड़ी शरणार्थी बस्तियाँ एकाएक उभर आईं। इसके साथ ही, दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में आप्रवासी, अधिकांशतः पड़ोसी राज्य बिहार, उड़ीसा और पूर्वी उत्तर प्रदेश से रोज़गार की तलाश में कोलकाता आ गए। यहाँ की 4/5 भाग से अधिक जनसंख्या हिन्दू है। मुस्लिम और ईसाई सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय हैं, पर कुछ सिक्ख, जैन और बौद्ध मतावलंबी भी रहते हैं। मुख्य भाषा बांग्ला है, लेकिन उर्दू, उड़िया, तमिल, पंजाबी और अन्य भाषाएँ भी बोली जाती हैं। कोलकाता एक सर्वदेशीय नगर है; यहाँ पर रहने वाले अन्य समूहों में एशियाई (मुख्यतः बांग्लोदेशी और चीनी), यूरोपीय, उत्तर अमेरिकी और आस्ट्रलियाई लोगों की उपजातियाँ शामिल हैं। कोलकाता में प्रजातीय विभाजन ब्रिटिश शासन में प्रारम्भ हुआ, यूरोपवासी शहर के मध्य में रहते थे और भारतीय उत्तर और दक्षिण में रहते थे। यह विभाजन नए शहर में भी विद्यमान है, हालाँकि अब विभाजन के आधार पर धर्म, भाषा, शिक्षा और आर्थिक हैसियत हैं। झुग्गियाँ और निम्न आय आवासीय क्षेत्र सम्पन्न क्षेत्रों के साथ-साथ ही मौजूद हैं।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः