शनि देव

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 15:57, 26 April 2010 by Ashwani Bhatia (talk | contribs) (Text replace - "सूर्य" to "सूर्य")
Jump to navigation Jump to search

शनि / Shani

'शनैश्चर की शरीर-कान्ति इन्द्रलीलमणि के समान है। इनके सिर पर स्वर्णमुकुट गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। ये गिध्द पर सवार रहते हैं। हाथों में क्रमश: धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं।'

परिचय

शनि भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र है। ये क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्म पुराण में इनकी कथा इस प्रकार आयी है- बचपन से ही शनि देवता भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। वयस्क होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी सती साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु स्नान करके पुत्र प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुँची, पर यह श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गयी। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिये उसने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जायगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। पत्नी को भी अपनी भूल पर पश्चात्ताप हुआ, किन्तु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि यह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी-शकट भेदन कर दे तो पृथ्वी पर बारह वर्ष घोर दुर्भिक्ष पड़ जाये और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाय। शनि ग्रह जब आनेवाला था, तब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ से बताया कि यदि शनि का योग आ जायगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प-तड़पकर मर जायगी। प्रजा को इस कष्ट से बचाने के लिये महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मण्डल में पहुँचे। पहले तो महाराज दशरथ ने शनि देवता को नित्य की भाँति प्रणाम किया और बाद में क्षत्रिय-धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया। शनि देवता महाराज की कर्तव्यनिष्ठा से परम प्रसन्न हुए और उनसे वर माँगने के लिये कहा। महाराज दशरथ ने वर माँगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप शकट भेदन न करें। शनिदेव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट कर दिया।

शनि के अधिदेवता

शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गिध्द तथा रथ लोहे का बना हुआ है। यह एक-एक राशि में तीस-तीस महीन रहते हैं। यह मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है।

शान्ति के उपाय

इनकी शान्ति के लिये मृत्युंजय जप, नीलम-धारण तथा ब्राह्मण को तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, नीलम, काली गौ, जूता, कस्तूरी और सुवर्ण का दान देना चाहिये।

जप का वैदिक मन्त्र

इनके जप का वैदिक मन्त्र- ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:॥',

पौराणिक मन्त्र

पौराणिक मन्त्र-

'नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्॥'

बीज मन्त्र

बीज मन्त्र - 'ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।', तथा

सामान्य मन्त्र

सामान्य मन्त्र - 'ॐ शं शनैश्चराय नम:' है। इनमें से किसी एक का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। जप का समय सन्ध्या काल तथा कुल संख्या 23000 होनी चाहिये।


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः