अरिष्ट

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'आरुरोह गिरिश्रेष्ठमरिष्टमरिमर्दन:,
तुंगपद्मकजुष्टाभिर्नीलाभिर्वनराजिभि:'।

  • इसी के सामने भारत में समुद्र के दूसरे तट पर महेंद्र पर्वत स्थित था।[2]
  • हनुमान के अरिष्ट पर आरूढ़ होने के पश्चात् इस पर्वत की दशा का अद्भुत वर्णन वाल्मीकि ने किया है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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