छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-1 से 5

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  • आदित्य ही परब्रह्म है।
  • इन पांच खण्डों में आदित्य के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम व उत्तर भागों तथा उर्ध्व में स्थित रसों की व्याख्या मधुमक्खियों के छत्ते के रूपक द्वारा की गयी है।
  • ऋषि का कहना है कि सूर्य के समस्त दृश्य, स्थूल रंगों (सप्तरंग) के साथ सूक्ष्म चेतना प्रवाह से जुड़े हैं।
  • 'ॐकार' रूप यह आदित्य ही देवों का मधु है।
  • समस्त वेदों- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्वेवेद- की ऋचाएं ही मधुमक्खियां हैं, चारों वेद पुष्प हैं और सोम ही अमृत-रूप जल है।
  • इस ब्रह्माण्ड में आदित्य की जो दृश्य प्रक्रिया चल रही हे, उसके पीछे चैतन्य का संकल्प अथवा आदेश ही कार्य कर रहा है।


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