जैन प्रीति संस्कार

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:20, 4 December 2011 by स्नेहा (talk | contribs)
Jump to navigation Jump to search
  • यह संस्कार जैन धर्म के अंतर्गत आता है।
  • प्रीति संस्कार गर्भाधान के तीसरे माह में किया जाता है।
  • प्रथम ही गर्भिणी स्त्री को तैल, उबटन आदि लगाकर स्नानपूर्वक वस्त्र-आभूषणों से अलंकृत करें तथा शरीर पर चन्दन आदि का प्रयोग करें।
  • इसके बाद प्रथम संस्कार की तरह हवन क्रिया करें।
  • प्रतिष्ठाचार्य कलश के जल से दम्पति का सिंचन करें।
  • पश्चात त्रैलोक्यनाथो भव, त्रैकाल्यज्ञानी भव, त्रिरत्नस्वामी भव, इन तीनों मन्त्रों को पढ़कर दम्पति पर पुष्प (पीले चावल छिड़के) शान्ति पाठ-विसर्जन पाठ पढ़कर थाली में भी ये पुष्प क्षेपण करें।
  • 'ओं कं ठं व्ह: प: असिआउसा गर्भार्भकं प्रमोदेन परिरक्षत स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर पति गन्धोदक से गर्भिणी के शरीर का सिंचन करें, स्त्री अपने उदर पर गन्धोदक लगा सकती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः