मेरा परिवार -महादेवी वर्मा

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मेरा परिवार -महादेवी वर्मा
कवि महादेवी वर्मा
मूल शीर्षक मेरा परिवार
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी 2008
ISBN 978-81-8031-282
देश भारत
भाषा हिंदी
प्रकार संस्मरण संग्रह
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द

मेरा परिवार एक संस्मरण-संग्रह है जिसकी रचायिता महादेवी वर्मा हैं। इसमें उन्होंने अपने पालतू पशुओं के संस्मरण लिखे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में महदेवी वर्मा जी ने 7 संस्मरण लिखे हैं।

पुस्तकांश

इसमें महादेवी जी ने उत्कृष्ट कहानियों का संकलन किया है। यह सभी कहानियाँ वन्य जीवन पर आधारित है। महाकवयित्री श्रीमती महादेवी वर्मा ने अत्यन्त विनयवश ही अपनी इस कृति को ‘मेरा परिवार’ नाम दिया गया है। वास्तविकता यह है कि इस महाप्राणशील कवयित्री का परिवार बहुत विशाल हैं- कल्पनातीत रूप से विशाल। पंचतंत्र के जिस पशु-पात्र ने घोर स्वार्थ की प्रवृत्ति से प्रेरित होकर एक दूसरे पशु-पात्र के कानों में यह उपदेश भरा था कि ‘‘उदारचरितानान्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’, उसके भीतर जीव-मात्र के प्रति प्रेम की संवेदना नहीं वरन् अत्यन्त दुष्टतापूर्ण चातुरी भरी थी।

उच्च स्तरीय संवेदना

इसलिए महादेवी जी की उच्चतम-स्तरीय संवेदना के लिए उक्त बहुउद्धत और पिष्टपेषित ‘सूक्ति’ का उपयोग करने में अत्यन्त संकोच का अनुभव होता है, क्योंकि कवयित्री की संवेदना अत्यन्त मार्मिक और जन्म-जन्मान्तर की मानवीय अनुभूति के शोधन, परिशोधन और परिशोधन के सुदार्घ योगाभ्यास के फलस्वरूप वर्षाकालीन निविड़ मेघ के स्वत:स्फूर्त वर्षण और गहन पर्वत-प्रसूत निर्झर के अनिरुद्ध प्रवाह की तरह सहज-विमुक्त और निश्चल सृजनशील प्रकृति के आदिम गतिशीलता की तरह एकांत स्वाभाविक है। अपने एक-एक लघुत्तम और सर्वथा उपेक्षित मानवेतर पात्र की सूक्ष्म से संवेदना को प्रकृति-माता के जिस अति-संवेदनशील राडार की तरह पकड़कर जो मर्ममोहक अभिव्यक्ति दी है, वैसी स्पर्शातीत और ईथरीय भावग्राहिता कोमल से कोमल अनुभूति वाले कवियों में भी अधिक सुलभ नहीं है, पंचतंत्र के पशु-पात्रों की तो बात ही क्या है।
वास्तविकता तो यह है कि महादेवी जी ने कुछ विशिष्ट मानवेतर प्राणियों के प्रति जिस अपनी सहज, सौहार्द्र और एकांत आत्मीयता की अभिव्यंजना का जो अपूर्व कला-कौशल अपने इन चित्रों में व्यक्त किया है, वह केवल उनकी अपनी ही कली की विशिष्टता की दृष्टि से नहीं वरन् संसार-साहित्य की इस कोटि की कला के समग्र क्षेत्र में भी बेमिसाल और बेजोड़ हैं। ये कृतियाँ मानवीय भावज्ञता, संवेदना और कलात्मक प्रतिभा के अपूर्व निदर्शन की दृष्टि से शाब्दिक अर्थ में अपूर्व और अद्भुत कलात्मक चमत्कार के नमूने हैं। करौं काह मुख एक प्रशंसा ?’ एक मुख से उनकी कला की प्रशंसा कैसे करूँ ! क्योंकि ये शब्द-चित्रण अनेक दृष्टिकोणों से प्रशंसा की अतिशयोक्ति की सीमा को भी पार कर जाते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मेरा परिवार (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 31 मार्च, 2013।

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