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मानव ममता है मतवाली।
अपने ही कर में रखती है सब तालों की ताली।
अपनी ही रंगत में रंगकर रखती है मुँह लाली।
ऐसे ढंग कहा वह जैसे ढंगों में हैं ढाली।
धीरे-धीरे उसने सब लोगों पर आँखें डाली।
अपनी-सी सुन्दरता उसने कहीं न देखी-भाली।
अपनी फुलवारी की करती है वह ही रखवाली।
फूल बिखेरे देती है औरों पर उसकी गाली।
भरी व्यंजनों से होती है उसकी परसी थाली।
कैसी ही हो, किन्तु बहुत ही है वह भोली-भाली।