कुटुम्बसर गुफ़ा

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कुटुम्बसर गुफ़ा छत्तीसगढ़ में जगदलपुर के निकट 'कांकेर राष्ट्रीय उद्यान' में स्थित है। यह गुफ़ा मानव द्वारा निर्मित है, जिसे 'केम्पीओला शंकराई गुफ़ा' भी कहा जाता है। इस गुफ़ा के अंधेरे में कई रहस्य छुपे हुए हैं, जिनका पता आज भी लगाया जा रहा है। यह माना जाता है कि कभी कुटुम्बसर गुफ़ा में आदिमानवों का बसेरा था। कुटुम्बसर गुफ़ा में अंधी मछलियाँ पाई जाती हैं। कई वैज्ञानिकों तथा जन्तु विज्ञान शास्त्रियों ने यहाँ पर अपना शोध कार्य किया है, जिसे लेकर पूरे विश्व में इस गुफ़ा की प्रसिद्धि है।

खोज

इस गुफ़ा की खोज 1951 में प्रसिद्ध भूगोल वैज्ञानिक डॉ. शंकर तिवारी ने की थी। स्थानीय भाषा में 'कोटमसर' का अर्थ "पानी से घिरा क़िला" है। भू-गर्भ शास्त्रियों ने इस गुफ़ा में प्रागैतिहासिक मनुष्यों के रहने के अवशेष भी पाए हैं। उनके अध्ययन के अनुसार पूर्व में यह समूचा इलाका पानी में डूबा हुआ था और कोटमसर की गुफ़ाओं के बाहरी और आंतरिक हिस्से के वैज्ञानिक अध्ययन से इसकी पुष्टि भी होती है।[1]

निर्माण

गुफ़ा का निर्माण भी प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण पानी के बहाव के कारण ही हुआ है। लाइम स्टोन से बनी इस गुफ़ा की बाहरी और आन्तरिक सतह का अध्ययन बताता है कि इसका निर्माण लगभग 250 करोड़ वर्ष पूर्व का हुआ है। 'फ़िजीकल रिसर्च लेबोरेटरी', अहमदाबाद; 'बीरबल साहनी इंस्टीटयूट ऑफ़ पेल्कोबाटनी', लखनऊ और 'भू-गर्भ अध्ययनशाला'. लखनऊ के भू-गर्भ वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च में 'कार्बन डेटिंग प्रणाली' से अध्ययन कर इस गुफ़ा में प्रागैतिहासिक मानवों के रहने की भी बात की है।

देवी-देवताओं की आकृतियाँ

पहले इन गुफ़ाओं में केवल 30 या 40 फुट तक ही जाया जा सकता था। आगे बढ़ने का रास्ता केवल कुटुम्बसर गाँव के आदिवासियों को ही मालूम था। गुफ़ाओं के अंदर कैल्सियम की विभिन्न चटटानें बिखरी पड़ी हैं। इनकी विभिन्न आकृतियाँ हैं। इन्हें देवी-देवता समझा जाता है और स्थानीय लोगों द्वारा इनकी पूजा की जाती है। गुफ़ाओं में कुछ चटटानें भगवान शिव और नन्दी के आकार की हैं और कुछ शिवलिंग के समान लगती हैं। इस स्थान को शिवालय भी कहा जाता है और यहाँ भयंकर नाग आदि भी पाए जाते हैं।[1]

कैल्सियम निर्मित स्तम्भ

शिवालय से नीचे जाने पर एक के बाद एक तीन जलप्रपात या झरने मिलते हैं। पहला झरना तीस फिट उँचाई का है। इससे नीचे उतरने के बाद लगभग साढे तीन इंच चौड़ा, पैंतालीस इंच उँचा व 65 इंच लंबा एक अंधकारमय गलियारा मिलता है। इसके दाहिनी ओर चूने की चटटाने हैं, जिन पर जल के बहने के निशान तथा बांयी ओर बंद छत पर लटकते हुए स्तंभों के दर्शन होते हैं। इस गुफ़ा की सबसे ख़ास बात यह है कि यहाँ जो स्तंभ बने हैं, वह अपने आप प्राकृतिक तरीके से बने हैं। पानी की बूंदों के साथ जो कैल्सियम गिरता गया, उसने धीरे-धीरे स्तंभों का रूप ग्रहण कर लिया और अब गुफ़ा में चमकते हुए स्तम्भ दिखाई देते हैं। इस गुफ़ा के पत्थरों को आकाशवाणी केन्द्र ने वादय यंत्रों की तरह इस्तेमाल किया था, इनसे विभिन्न तरह के स्वर निकाले गए थे।

झील

कुटुम्बसर गुफ़ा के अंदर एक छोटी-सी झील बहुत सुंदर दिखाई देती है। झील की गहराई अधिक नहीं है। यह केवल साढें चार फुट गहरी है और इसकी लंबाई 17 फुट है। इस कुंड का नाम 'शंकरकुंड' है और यह शिवालय से 90 फुट नीचे है। यहाँ का तापमान बाहर के तापमान से लगभग दस डिग्री तक कम होता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 कुटुम्बसर की रहस्यमय गुफ़ा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 08 जुलाई, 2013।

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  1. REDIRECT साँचा:छत्तीसगढ़ राज्य के ऐतिहासिक स्थान


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